मंगलवार को नई दिल्ली में जनजातीय कार्यालय मंत्रालय द्वारा सिकल सेल रोग की जागरुकता को लेकर प्रोग्राम लॉन्च किया गया था. इसमें सिकल सेल के लिए जागरुकता और ट्रेनिंग अभियान के बारें में बात की गई थी. इस प्रोग्राम की शुरुआत राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के तहत किया गाया था. राष्ट्रीय सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन में सरकार का यह उद्येश्य है कि सिकल सेल रोग को 2047 तक देश से खत्म कर दिया जाए.
इस प्रोग्राम में सभी राज्यों के 140 ट्रेनर शामिल हुए थे. ये सभी ट्रेनर जिले के कुछ लोगों को प्रशिक्षण देने आए थे. ज़िला स्तर पर ट्रेनिंग के बाद ये लोग गांव और तहसील में जाकर आदिवासियों की स्क्रिनिंग करेंगें.
जागरूकता अभियान ज़रुरी है
जनजातीय कार्य मंत्री ने कहां कि जागरुकता अभियान को देश के सभी आदिवासी क्षेत्रों में सहीं तरीके से लागू करने की जरुरत है. ताकि इस बिमारी के बारे में कोविड -19 की तरह कोई भी नकारात्मकता ना फैले.
साथ ही उन्होंने कहां कि जब वो आदिवासी क्षेत्रों में गए तो उन सभी के मन में यहीं सावाल था कि आखिर सिकल सेल रोग को लेकर सरकार आदिवासियों के ही बल्ड टेस्ट क्यों करना चाहती है ? साथ ही उन्होंने कहां की हमें एक ऐसी परिस्थिति बनानी पड़ेगी. जिसमें ज़्यादा से ज़्यादा आदिवासी खुद शामिल होना चाहे.
किन किन आदिवासी क्षेत्रों में मिलता सिकल सेल रोग
मध्य प्रदेश राज्य के 45 जिलों में से 27 जिलों में सिकल सेल पाया जाता है. मध्य प्रदेश में सबसे ज़्यादा सिकल सेल रोग से पीड़ित आदिवासी मिलते हैं. सिकल सेल रोग भील, मादिया, पवारा, और प्रधान आदिवासियों में 20 से 35 प्रतिशत मिलता है. वहीं महाराष्ट्र के गढ़चिरोली, चंद्रपुर, नागपुर, बांदरा, यवतमाल और नंदुरबार जिले में इस रोग के 5000 से ज़्यादा केस मिले थे.
दक्षिण भारत में केरल के वायनाड में एक लाख से ज़्यादा लोगों का स्क्रिनिंग की गई थी. इसमें से 18 से 34 प्रतिशत तक आदिवासी इस रोग से जूझ रहे हैं.
क्या है सिकल सेल और इसे कैसे पहचानें?
सिकल सेल ( skill cell virus disease) किसी भी व्यकित में उसके माता- पिता द्वारा आता है. यह एक जेनेटिक (genetic) बीमारी है. इसमें व्यक्ति के रक्त (blood) में असामान्य हीमोग्लोबिन आ जाते हैं. इन असामान्य हीमोग्लोबिन की वजह से लाल रक्त (blood) में कोशिकाएं (cell) सिकल (दरांती) के आकार की हो जाती हैं. यह उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता और रक्त प्रवाह की मात्रा को कम कर देती है.
रक्त (blood) हमारे शरीर के अंग में ऑक्सीजन पहुंचाने का कार्य करता है. इसमें सओक्लुसिव क्राइसिस ( शरीर की नसे ब्लॉक हो जाना), फेफड़ो में संक्रमण (lungs infection), एनीमिया गुद्रे और युक्त की विफलता सांस छोड़ने और लेने में दिक्कत ( problem in inhale and exhale of oxygen), स्ट्रोक (मस्तिष्क में खून की कमी या अचानक सिर के अंदर खून बहना) आदि जैसी बीमारियों से व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.
माता पिता से बच्चों में बीमारी आने की कितनी आशंका
हर व्यक्ति में दो तरह के जीन होते हैं जो माता पिता द्वारा व्यक्ति में आते हैं. जीन में सामान्य या आसामन्य प्रकार में से कोई एक या दोनों ही तरह हीमोग्लोबिन मौजूद हो सकते हैं.
आसामान्य व्यक्ति या माता पिता से बच्चों में भी रोक दो तरीके से पनप सकता है.
•पहला बच्चों में सिलक सेल रोग आ सकता है. इसमें बच्चें के जीन में सामान्य हीमोग्लोबिन मौजूद नहीं होता. वहीं आसामान्य हीमोग्लोबिन 50 से 80 प्रतिशत पाया जाता है.
•दूसरा, बच्चों में सिलक सेल वाहक (sIickle cell virus) भी आ सकता है. इसमें शिशु के जीन में सामान्य हीमोग्लोबिन 50 प्रतिशत से अधिक मौजूद होता है. वहीं आसामान्य हीमोग्लोबिन 50 प्रतिशत से कम मौजूद होता है.
जैसा की हम सभी जानते हैं कि सामान्य हीमोग्लोबिन से किसी भी व्यक्ति को कोई खतरा नहीं है मगर आसामन्य हीमोग्लोबिन से खतरा हो सकता है.
कैसे करें सिकल सेल रोग की पहचान
सिकल सेल रोग को कई तरीकों से पहचनां जा सकता है इनमें से कुछ सिमटम्स है
• अगर किसी व्यक्ति को कई बार पीलिया हुआ हो.
• खून की कमी रहती है.
• जोड़ो में दर्द होता है.
• चेहरे में पीलापन अनुभव करते हैं.
ये सभी सिकल सेल रोग के प्रमुख सिमटम्स है. वहीं सिकल सेल वाहक रोग नहीं बल्कि केरियर है. जबकि सिकल सेल रोग एक रोग है.
बीमार व्यक्ति कौन से उपाय करें
• जितना हो सकें उतना पानी पीना चाहिए
• हर दिन फ़ॉलिक एसिड (5 मिली ग्राम) की एक गोली खानी चाहिए
• उल्टी या दस्त के समय पानी की कमी की होने पर डॉक्टर को दिखाए
• हर महीने हीमोग्लोबिन का स्तर चेक कराए
2014 में हमारा देश पोलियो की बीमारी से मुक्त हो गया था. वहीं सरकार ने कई सालों से एचआईवी को लेकर जागरुकता अभियान चला रही है. इसका प्रभाव हमारें समाज में भी देखने को मिला है. कई लोग एचआईवी को लेकर पहले से ज़्यादा जागरुक हो गए है.
उसी तरह सिकल सेल रोग को भी खतम किया जा सकता है लेकिन सरकार को ये ध्यान रखना होगा की किसी भी पीड़ित व्यक्ति के साथ समाज में भेदभाव ना कि जाएं.
समाज में भेदभाव दूर करने के लिए सरकार को अपने जागरुक अभियान में इस बात पर जोर देना होगा की यह कोई छूआछूत नहीं है अर्थात ये बिमारी छूने से नहीं फैलती.
व्यक्तिगत रुप से अगर कोई इस बीमारी से पीड़ित है तो वो शादी करने के बाद बच्चें ना करें क्योंकि बच्चें में भी इस बीमारी की आने की संभावना हो सकती है.
वहीं गर्भवती महिला 10 से 12 महीनें होने के बाद बच्चें का टेस्ट करा सकती है और अगर बच्चा इस रोग से पीड़ित होता है तो महिला को गर्भपात कराने का अधिकार भी है.