HomeAdivasi Dailyझारखंड के आदिवासी, किसकी क्या स्थिति है

झारखंड के आदिवासी, किसकी क्या स्थिति है

झारखंड में 30 जनजातियों में से 8 जनजातियों को पीवीटीजी की श्रेणी में रखा गया है. इन समुदायों में से कुछ के अस्तित्व पर ख़तरा मंडरा रहा है.

झारखंड जनजातियों का राज्य है. यहां 30 अनुसूचित जनजातियां रहती है जिसमें 22 बड़ी जनजातियां हैं. जबकि आठ यानी असूर, बिरजिया, बिरहोर, कोरवा, मालपहाड़िया, परहिया, हिल खड़िया, सौरिया पहाड़िया को आदिम जनजाति (PVTG) के श्रेणी में रखा गया है. आदिम जनजाति अल्पसंख्यक हैं. इनमें से ज़्यादतर समुदाय गरीबी रेखा के नीचे जीते हैं. हालांकी अब ये धीरे-धीरे इनमें से कुछ समुदायों की स्थिति में सुधार भी देखा जा रहा है.

झारखंड की जनजातियों की स्थिती

2011 की जनगणना के अनुसार झारखंड की कुल जनसंख्या में जनजातियों की कुल आबादी 26.2 प्रतिशत है.
वहीं 2001 की जनगणना में आदिवासियों की जनसंख्या 26.3 प्रतिशत थी. यह देखा गया है कि लगभग हर जनगणना में जनजातियों की जनसंख्या कम होती जा रही है.

2001 और 2011 की जनगणना की तुलना 0.1 प्रतिशत जनजातियों की कमी आयी है. कुल जनजातियों की घटती हुई आबादी की अलग-अलग व्याख्या की गयी. यह देखा गया है कि कुछ आदिवासी समुदायो में अन्य जातियों की तुलना में सामान्य से कम प्रजनन है.

झारखंड की जनजातियों की स्थिती

काफ़ी हद तक इन जनजातियों का विकास न हो पाना सरकार की ग़ैर जिम्मेदारी का नतीजा भी है. ग़रीबी और ज़रूरी सुविधाओं के अभाव के कारण इन जनजातियों में मातृ-मृत्यु दर, शिशु-मृत्यु दर अधिक है. बीमारियों में इलाज-उपचार न होने के कारण इनकी अधिक मृत्यु होती है.

जंगल के कटने से वर्षा की कमी और सूखा पड़ने से इनके जीवन में बुरा प्रभाव पड़ा है और साथ ही जनजातियों के क्षेत्रों में बहुत सारे कारखाना और खदानों के खोलने के कारण उस क्षेत्र की जनजातीय आबादी भारी संख्या में विस्थापित हुए हैं.वैसे यह भी एक धारणा है कि अनुसूचित जनजातियों में कुछ ऐसे विकसित समूह हैं जो अति पिछड़े और कमजोर जनजातियों के विकास की योजनाओं का लाभ उठा लेते हैं.

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झारखंड की कमजोर जनजातियां

सौरिया पहाड़ी, करमाली, चिक बैराक और चेरों झारखंड की चार ऐसी जनजातियां हैं. जिनकी आबादी आदिवासियों की कुल आबादी का 1 प्रतिशत से भी कम है. ये आदिवासी समुदाय आर्थिक, सामाजिक और राजनितिक रुप से पिछड़े हुए हैं. सौरिया पहाड़ियां और सावर ऐसी पिछड़ी जनजातियों में से हैं जिनकी आबादी घटती जा रही है. इसकी जानकारी 2001 और 2011 के जनगणना रिर्पोट से मिलती है.

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झारखंड की आदिम जनजातियां

1961 में आदिवासियों की सामाजिक और आर्थिक स्थिति का अध्य्यन करने वाले ढेवर आयोग ने आदिवासी समुदायों को कई श्रेणियों में बांटा था. इस बंटवारे के लिए कुछ मापदंड भी तय किये गये थे. इन मापदंडों के आधार पर कुछ आदिवासी समुदायों को आदिम जनजाति के तौर पर पहचाना गया था.

झारखंड की आदिम जनजातियां

आजकल इन जनजातियों को पीवीटीजी या फिर विशेष रूप से पिछड़ी जनजातियां कहा जाता है. इन जनजातियों की पहचान के लिए आयोग ने तीन मुख्य मापदंड माने थे. पहला कि जो आदिवासी समुदाय अभी भी खेती करने में माहिर नहीं हैं और उनकी तकनीक पुरातन है. दूसरा उनमें साक्षरता दर बेहद कम है. तीसरा और सबसे महत्वपूर्ण था कि उनकी जनसंख्या में ठहराव या कमी.

इस आधार पर झारखंड में 8 आदिवासी समुदायों को आदिम जनजाति की सूचि में रखा गया है.ये हैं: असूर, बिरहोर, बिरजिया, कोरवा, माल पहाड़िया, परहरिया, सावर और सौरिया पहाड़िया.असूर आदिवासी झारखंड के गुमला, दुमका, लातेहार और लोहरदगा, पलामू में रहते हैं और इनकी अधिक जनसंख्या गुमला बसी है. इनकी सबसे कम अबादी दुमका है. ये आदिवासी आमतौर से लोहा का काम करते हैं.

बिरजिया आदिम जनजाति के लोग गुमला, लातेहार, और लोहरदगा में निवास करते हैं. इनकी अधिक आबादी लातेहार और कम जनसंख्या लोहरदगा में है. बिरहोर आदिवासी जंगल के राजा हैं और इनका कोई ठिकाना नहीं होता. भोजन की तलाश में जंगल से दूसरे जंगल में घूमते रहते हैं. शिकार के अलावा रस्सी और शहद बेचने का काम करते हैं.

आदिम जनजाति बसी है बोकारो, चतरा, धनबाद, पूर्वी सिंहभूम, लोहरदगा, लातेहार, हजारीबाग, गिरिडीह में हैं लेकिन अधिक बिरहोर की जनसंख्या हाजारीबाग में बसी है और इनकी सबसे कम आबादी सिंहभूम और लहरदगा में है.

कोरवा आदिम जनजाति गढ़वा, गुमला, लातेहार, पलामू और सिमडेगा तक ही सीमित है. इनकी अधिक अबादी लातेहार और सबसे कम आबादी लोहरदगा में बसी है. कोरवा आदिम जनजाति पहाड़ो और जंगलो के क्षेत्रों में बसे हैं.

माल पहाड़िया का निवास देवघर, दुमका, गोड्डा, जामताड़ा, साहेबगंज, पाकुड़ पलामू, पूर्वी सिंहभूम और रांची में केंद्रित हैं. जिनकी अधिक जनसंख्या दुमका और कुछ जनसंख्या रांची में बसी है. माल पहाड़िया जीवन व्यतीत करने के लिए लकड़ी और कुरवा चुनते है. पहरिया आदिम जनजाति देवघर, चतरा, गढ़वा, गुमला, लातेहार, लोहरदगा और पलामू में बसी है.

झारखंड के आदिवासी

अधिक जनसंख्या पलामू और कम जनसंख्या लोहरदगा में है. पहरिया आदिम जनजाति सदियों से पहाड़ो और जंगलो में बसी है.जंगलों में शिकार और फल- फूल से इनकी परिवार चलता है. जंगलों में शिकार पर भी पाबंदी लगा दी गयी है. इसलिए पहरिया जनजाति को बहुत सारी मुसीबतों का सामना करना पड़ता है. शिकार न होने के कारण आज अधिक पहरिया किसान मजदूर बनकर रह गए हैं.

सावर आदिम जनजाति मुख्य रुप से पर्वी सिंहभू गोड्डा, पलामू और सरायकेला में रहते हैं. जिनकी ज्यादातर आबादी पूर्वी सिंहभूम है और गोड्डा में इनकी जनसंख्या कम है. सावर आदिम जनजाति को हिल पहाड़ी के नाम से भी जाना जाता है.

इनका जीवन महुआ का शराब बेचकर बीतता है. सौरिया पहाड़िया साहेबगंज, गोड्डा, पाकुड़, पर्वी सिंहभू, रांची और सरायकेला में रहते हैं. साहेबगंज में इनकी अधिक आबादी है और सबसे कम रांची में है.

कुछ आदिम जनजाति बिहार के पूर्णिया जिले में बसे हैं. सौरिया पहाड़िया खासकर पहाड़ो के क्षेत्रों में निवास करते हैं और इनका घर बांस, पत्ता और घास से बना हुआ होता है. सौरिया पहाड़िया रोजी रोटी के लिए झूम की खेती करते हैं. ये अपने बाड़ी में सब्जियां भी उगाते हैं.

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