HomeAdivasi Dailyझारखंड में आदिवासी आबादी घटने के पीछे की वजह क्या है?

झारखंड में आदिवासी आबादी घटने के पीछे की वजह क्या है?

बीजेपी झारखंड में एक और संवेदनशील मुद्दे को हवा देने की कोशिश कर रही है. वह इस मुद्दे के सहारे झारखंड मुक्तिमोर्चा के गढ़ को ढहाना चाहती है?

4 फरवरी को झारखंड (Jharkhand) के देवघर में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) की विजय संकल्प रैली को संबोधित करते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने राज्य के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (Hemant Soren) पर “इस तथ्य से आंखें मूंद लेने का आरोप लगाया कि राज्य में आदिवासी आबादी 35 फीसदी से घटकर 24 फीसदी हो गई है.”

आधिकारिक आंकड़े अमित शाह के बयान की पुष्टि करती है. क्योंकि 1931 से 2011 के बीच राज्य में आदिवासी आबादी में 11.9 फीसदी का अंतर आया है. 1931 की जनगणना में आदिवासी आबादी 38 प्रतिशत थी, 80 वर्षों की अवधि में यह घटकर 26.2 प्रतिशत (2011 की जनगणना) हो गई.

1991 की जनगणना के मुताबिक राज्य में आदिवासी आबादी 27.7 प्रतिशत थी, 2001 की जनगणना के मुताबिक 26.3 प्रतिशत और 2011 की जनगणना के मुताबिक 26.2 प्रतिशत थी.

भारत हाल ही में चीन को पीछे छोड़कर सबसे अधिक आबादी वाला देश बन गया है. ऐसे में झारखंड में आदिवासी आबादी में ‘कमी’ के पीछे के कारणों को समझना जरूरी है.

बदलती जनसांख्यिकी

झारखंड की आबादी 3.29 करोड़ है. वहीं अनुसूचित जनजाति कुल आबादी का 86.5 लाख है.

बीजेपी ने संथाल परगना की “बदलती जनसांख्यिकी” का मुद्दा बार-बार उठाया है. संथाल परगना झारखंड के डिवीजनों में से एक है जिसमें गोड्डा, देवघर, दुमका, जामताड़ा, साहिबगंज और पाकुड़, ये छह जिले शामिल हैं. यह झारखंड के पूर्वी और उत्तर-पूर्वी हिस्से को पश्चिम बंगाल के साथ सीमा साझा करता है.

पार्टी का दावा है कि बांग्लादेश से अवैध आप्रवासन के कारण राज्य में आदिवासियों और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी में गिरावट आई है. बीजेपी ने संथाल परगना में एक “मिनी एनआरसी” (National Register of Citizens) का भी वादा किया है. लेकिन संयोग से यह क्षेत्र कांग्रेस और झारखंड मुक्ति मोर्चा (Jharkhand Mukti Morcha-JMM) के सत्तारूढ़ गठबंधन का गढ़ है.

बीजेपी का दावा है कि संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठिए बस गए हैं और वर्तमान राज्य सरकार ने उन्हें वोट के लिए यहां बसने की अनुमति दी है और उन्हें सभी सुविधाएं प्रदान की हैं.

बेरोजगारी और गरीबी

हांलाकि आदिवासी मसलों के जानकार कहते हैं कि घटती आदिवासी आबादी के लिए पलायन, गरीबी, बेरोजगारी, कुपोषण बड़े कारण हैं

ये जानकार कहते हैं कि आदिवासी आबादी कम नहीं हो रही है; वे बस बेरोजगारी के कारण बाहर जा रहे हैं. विशेष रूप से गुमला, सिमडेगा और लातेहार जिलों से स्थानीय लोग काम के लिए बड़े शहरों में जा रहे हैं.

वैसे यह बात विश्वसनीय लगती है कि रोज़गार की तलाश में आदिवासी बड़ी संख्या में अपने गांव-घर छोड़ कर दूसरे राज्यों में निकल जाते हैं.

अपनी ग्राउंड रिपोर्ट्स के दौरान हमने यह बात झारखंड के ज़्यादातर इलाकों में नोटिस भी की है.

पहले लॉकडाउन के दौरान के आंकड़े बताते हैं कि अप्रैल और जून 2020 के बीच राज्य विभाग को आदिवासियों सहित 11 लाख प्रवासी मजदूरों के फोन आए, जो विभिन्न शहरों में फंसे हुए थे.

उनमें से अधिकांश ने अपनी नौकरी खो दी थी और अपने गृह राज्य में रोजगार के अवसरों की तलाश कर रहे थे.

सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (CMIE) के सर्वेक्षण के मुताबिक, मई 2020 में झारखंड की बेरोजगारी दर बढ़कर 59.2 प्रतिशत हो गई.

राज्य विधानसभा में पेश किए गए आर्थिक सर्वेक्षण से पता चला 2021-22 में राज्य में बेरोजगारी की दर प्री-कोविड लेवल से अधिक बनी रही.

2021 में जारी नीति आयोग की पहली बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index) रिपोर्ट के अनुसार, झारखंड में 42.2 प्रतिशत लोग गरीब हैं. बिहार इस सूची में सबसे ऊपर है, झारखंड दूसरे स्थान पर है.

सेफ एंड रिस्पांसिबल माइग्रेशन इंसेंटिव (SRMI) के निष्कर्षों से पता चलता है कि आदिवासी माइग्रेंट आउटफ्लो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं.

झारखंड से बड़ी संख्या में ग्रामीण आदिवासी आबादी के देश के अन्य हिस्सों में प्रवास में गरीबी और बेरोजगारी ने बहुत बड़ी भूमिका निभाई है.

घोर गरीबी के कारण कुपोषण और एनीमिया जैसी समस्याएं भी व्याप्त हैं. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के मुताबिक, झारखंड में 45 प्रतिशत बच्चे अपनी उम्र के हिसाब से बहुत छोटे कद के हैं और 22 प्रतिशत बच्चे अपनी लंबाई के हिसाब से बहुत पतले हैं. रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि राज्य में 6 से 59 महीने के 67 प्रतिशत बच्चे एनीमिया के शिकार हैं.

खनन के कारण विस्थापन एक अन्य कारक है जिसके कारण खनिज संपन्न राज्य से पलायन हुआ है. मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक ग्लैडसन डुंगडुंग (Gladson Dungdung) ने अपनी पुस्तक विकास की कब्रगाह में लिखा है कि झारखंड में 1951 और 1995 के बीच 15 लाख से अधिक लोग विस्थापित हुए थे जिनमें 80-90 प्रतिशत आदिवासी और स्वदेशी समुदायों से संबंधित थे.

रोजगार के लिए प्रवास

भारतीय आर्थिक सर्वेक्षण के आंकड़ों से पता चलता है कि प्रवास के कारण 2001 से 2011 के बीच झारखंड ने अपनी कामकाजी उम्र की आबादी के करीब 5 मिलियन लोगो को खो दिया.

हालांकि, कोविड संकट के दौरान राज्य से संबंधित लगभग 8.5 लाख प्रवासी श्रमिकों ने वापस झारखंड आए. 2021 में स्रोत के साथ-साथ गंतव्य जिलों में निगरानी और विश्लेषण के लिए प्रवासी श्रमिकों के व्यवस्थित पंजीकरण को सक्षम करने के लिए राज्य सरकार ने सेफ एंड रिस्पांसिबल माइग्रेशन इंसेंटिव (SRMI) शुरू की.

शुरुआती निष्कर्षों में से एक से पता चला है कि आदिवासी समुदायों के लोग झारखंड की लगभग 26.2 प्रतिशत आबादी माइग्रेंट आउटफ्लो का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है.

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