आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले (Alluri Sitarama Raju District) के अंगालरू गाँव (Angaluru village) में कई सालों से पोलावरम सिंचाई परियोजना (Polavaram Project) चल रही है. जिसकी वज़ह से यहां पर रहने वाले आदिवासियों को विस्थापन झेलना पड़ रहा है.
दरअसल कुछ साल पहले ही बांध निर्माण के लिए सरकार ने आदिवासियों की ज़मीन ले ली थी. लेकिन उन्हें अभी तक इसका कोई भी मुआवजा उपलब्ध नहीं करवाया गया है.
इसके साथ ही यहां पर रहने वाले सभी आदिवासी किसान रोज़गार के लिए खेती पर ही निर्भर थे.
अब उनके पास कोई भी विकल्प उपलब्ध नहीं है. यही कारण है की उन्हें मजबूरन अपने गाँव से 25 से 50 किलोमीटर की दूरी पर दैनिक मजदूरी के लिए जाना पड़ता है.
यह भी पता चला है की कोंडामोडालु पंचायत के तल्लुरु गांव में भी करीब 100 से अधिक लोग पोलावरम सिंचाई परियोजना के तहत प्रभावित हो रहे हैं. ये परिवार कई वर्षो से मुआवजे का इंतजार कर रहे हैं.
बांध निर्माण के कार्य के अंतर्गत आदिवासियों का जीवन
इस परियोजना के अतंर्गत 80 फीसदी आदिवासी और 20 फीसदी गैर आदिवासी लोग प्रभावित हो रहे हैं. आदिवासियों का बड़ा समूह इस परियोजना के चलते प्रभावित है.
इसके साथ ही 2008 में सरकार ने भूमि अधिग्रहण अधिसूचना जारी की थी. जिसके तहत बांध के निर्माण और पोलावरम परियोजना से संबंधित अन्य कार्यों के लिए 38 किसानों से 44 एकड़ भूमि ली गई.
जिसके बाद 2012 में जमीन का मुआवजा दिए बिना ही सरकार ने जमीन पर कब्जा कर लिया.
वहीं अंगालुरु गांव की निवासी कोसु सावित्री बताती है की ज्यादातर गाँव के निवासी धान और मक्का की खेती करते थे. लेकिन अब वे सभी रोज़ी-रोटी के लिए मजदूरी करने पर मजबूर है.
वहीं आदिवासी महिला वलाला पोसम्मा का कहना है की उन्होनें परियोजना के अंतर्गत आने वाले कार्यो के लिए 10 एकड़ ज़मीन दी थी. लेकिन उन्हें अभी तक कोई भी मुआवज़ा प्राप्त नहीं हुआ है. उनके घर में पांच से सात सदस्य रहते हैं और ऐसी स्थिति में पेट भरना मुश्किल होता जा रहा है.
इसके अलावा आदिवासियों ने मामले से जुड़े अधिकारियों से भी बात-चीत की थी. लेकिन उन्हें कोई मदद नहीं मिली. इसी क्रम में आरटीआई के माध्यम से भी उन्हें कोई जानकारी हासिल नहीं हुई है.
आदिवासियों को बाढ़ की स्थिति का सामना भी करना पड़ता है. बाढ़ आने पर वह दूसरे स्थान पर आ जाते हैं और मामला ठीक होते ही वो फिर से अपने घर की ओर लौट आते हैं.
जब तक उन्हें सरकार की तरफ से कोई मुआवज़ा या ज़मीन के बदले ज़मीन नहीं दी जाती. उनके पास कहीं और जाने का विकल्प भी नहीं है.