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MP-CG Election Results: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आदिवासी का भरोसा जीतने में कामयाब रहे

2018 के विधानसभा चुनावों में एसटी सीटों पर स्थिति अलग थी. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी. कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की 29 एसटी सीटों में से 25, मध्य प्रदेश की 47 एसटी सीटों में से 31 और राजस्थान की 25 एसटी सीटों में से 12 पर जीती मिली थी.

मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान और तेलंगाना विधानसभा चुनाव (Assembly Election 2023) में लड़ाई आदिवासी वोटों की थी…और भाजपा ने आदिवासी आबादी (Tribal Population) पर जीत हासिल की और छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में ज्यादातर एसटी सीटें हासिल कीं. हालांकि तेलंगाना में कांग्रेस ने एसटी की अधिकांश सीटें जीत लीं.

बीजेपी ने 2014 से आदिवासी समुदाय पर ध्यान केंद्रित किया हुआ है और आदिवासी वोटों को लुभाने के लिए हर संभव कोशिश की है.

देश की सबसे बड़ी आदिवासी आबादी मध्य प्रदेश में रहती है. सरकार बनाने के लिए भी उनके वोट निर्णायक रहते हैं. प्रदेश की 84 सीटों पर आदिवासी मतदाता किसी को भी जिताने-हराने की क्षमता रखते हैं.

2018 के चुनावों में आदिवासियों की नाराजगी बीजेपी पर भारी पड़ी थी और कांग्रेस पार्टी को जीत मिली थी. वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने रमन सिंह सरकार के खिलाफ मोर्चा खोलकर जीत दर्ज की थी. लेकिन इस बार के चुनाव परिणाम चौंकाने वाले हैं क्योंकि बीजेपी ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चुनावी परिणाम को पलट दिया है.

भाजपा और कांग्रेस दोनों ने अपनी जनजातीय पहुंच को लोकलुभावनवाद और प्रतीकवाद पर आधारित किया लेकिन आखिर में भाजपा ने इस प्रमुख सामाजिक जनसांख्यिकीय पर जीत हासिल की.

पीएम नरेंद्र मोदी (Prime Minister Narendra Modi) ने रविवार को बीजेपी के दिल्ली मुख्यालय में अपने संबोधन में कहा, “गुजरात में कांग्रेस की हार में आदिवासी समुदाय ने अहम भूमिका निभाई और उन्होंने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ में एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ अपना जनादेश दर्शाया है.”

रविवार शाम को चुनाव आयोग द्वारा जारी आंकड़ों से पता चला कि बीजेपी ने छत्तीसगढ़ की 29 एसटी सीटों में से 17 पर जीत हासिल की है, जबकि कांग्रेस ने 11 सीटें जीती हैं. वहीं मध्य प्रदेश में बीजेपी को 47 एसटी सीटों में से 24 और कांग्रेस को 22 सीटें मिलीं.

जबकि राजस्थान में 25 एसटी आरक्षित सीटों में से बीजेपी ने 12 पर जीत हासिल की और कांग्रेस को 10 सीटें मिलीं हैं. हालांकि, तेलंगाना में 12 एसटी सीटों में से 9 कांग्रेस के पास गईं और 3 बीआरएस के पास गईं.

2018 के विधानसभा चुनावों में एसटी सीटों पर स्थिति अलग थी. कांग्रेस ने छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश और राजस्थान में अच्छे अंतर से जीत हासिल की थी. कांग्रेस को छत्तीसगढ़ की 29 एसटी सीटों में से 25, मध्य प्रदेश की 47 एसटी सीटों में से 31 और राजस्थान की 25 एसटी सीटों में से 12 पर जीती मिली थी.

आदिवासी वोटों पर बीजेपी की जीत का आधार

इन विधानसभा चुनावों में बीजेपी की तरफ से आदिवासी वोटों को आकर्षित करने के काम का नेतृत्व पीएम मोदी ने किया. उन्होंने मुख्यत तीन प्रमुख मुद्दों पर आदिवासियों के साथ संवाद कायम किया. जो कि था प्रतिनिधित्व (Representation) पहले आदिवासी राष्ट्रपति (First tribal president) और आदिवासी मंत्रिमंडल के सदस्यों (Tribal Ministers) की नियुक्ति पर जोर देना.

आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों और उनके संघर्षों को मान्यता देने के केंद्र सरकार के प्रयासों पर जोर देकर एक राष्ट्रवादी आदिवासी पहचान बनाने की भूमिका निभाई.

दरअसल, भाजपा ने 2014 के बाद से हर चुनाव में आदिवासी समुदाय पर ध्यान केंद्रित किया है. बीजेपी ने राष्ट्रपति के रूप में द्रौपदी मुर्मू की नियुक्ति कर आदिवासी सशक्तिकरण का बहुत बड़ा दांव चला है. इसका असर सबसे पहले गुजरात में ही दिखा था, जहां पहली बार एसटी सीटों पर भी बीजेपी अप्रत्याशित तरीके से जीती थी.

वहीं चुनाव के बीच में झारखंड में आदिवासी योद्धा बिरसा मुंडा के गांव में मोदी की यात्रा आदिवासियों को अपनी ओर करने की एक बड़ी कोशिश थी. यहां पर प्रधानमंत्री ने योजनाओं को विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों तक ले जाने के लिए 24,000 करोड़ रुपये की योजना शुरू करने की घोषणा की. यह भी आदिवासियों को संकेत देने का एक तरीका था.

पिछली बार चुनाव (2018 assembly election) में पिछड़ने के बाद बीजेपी ने गोंड रानी कमलापति, दुर्गावती, टंट्या मामा के प्रतीकों के जरिये आदिवासी वोटों को साधने की कोशिश की. खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भोपाल में जनजातीय गौरव दिवस पर पहुंचे थे और रानी कमलापति स्टेशन (RKMP) की नई बिल्डिंग का शुभारंभ किया था. पीएम मोदी के दौरे के एक दिन पहले ही हबीबगंज स्टेशन का नाम बदलकर रानी कमलापति के नाम पर किया गया था.

प्रतीकवाद से अलग देखें तो केंद्र ने एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों और मॉडल गांवों के निर्माण जैसे विकास कार्यों पर ध्यान केंद्रित किया है. भाजपा को यह श्रेय देना होगा जब इसे आदिवासियों के बीच सांस्कृतिक मोर्चे पर समान नागरिक संहिता के विरोध जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ा तो इसने उनके गुस्से को शांत करने के लिए तुरंत अपने कदम पीछे खींच लिए.

वहीं दूसरी तरफ बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में धर्मांतरण और अत्याचार की घटनाओं को प्रमुख मुद्दा बना दिया.

इस बार आदिवासी वोटों का कांगेस से बीजेपी की ओर शिफ्ट होने का सबसे बड़ा उदाहरण छत्तीसगढ़ में देखा जा सकता है. छत्तीसगढ़ में बीजेपी ने चुनाव से पहले परिवर्तन यात्रा में आदिवासियों को साधने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी.

यहां माना जाता है कि ‘बस्तर में जिसकी भी जीत होती है, उसी की सरकार बनती है.’ यहां पहले चरण में 7 नवंबर को मतदान हुआ था और भाजपा को यहां मिली बड़ी बढ़त से राज्य जीतने में सहायता मिली है.

2018 में बस्तर डिविजन की 12 में से 11 सीटें कांग्रेस ने जीती थी. एकमात्र दंतेवाड़ा भी 2019 के उपचुनाव में उसके खाते में चली गई थी. लेकिन इस बार बस्तर-सरगुजा ने कांग्रेस को बाहर का रास्ता दिखाया है.

कांग्रेस कैसे रह गई पीछे

कांग्रेस तीनों राज्य में चुनाव को अपने पक्ष में करने के लिए एसटी समुदाय पर भरोसा कर रही थी. याद होगा जब एक आदिवासी के ऊपर पेशाब करने की घटना सामने आयी थी तो कांग्रेस ने उसे आत्म-सम्मान के हनन से जोड़ा था. साथ ही आदिवासियों के लिए कल्याणकारी वादे भी किए थे. बावजूद इसके आदिवासियों ने भाजपा पर भरोसा जताया

कांग्रेस ने अपने इतिहास के उलट विधानसभा चुनावों के दौरान ‘सामाजिक न्याय’ की राजनीति करने की कोशिश की. खुद को दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों की हिमायती बताते हुए, भाजपा पर वंचितों की उपेक्षा का आरोप लगाया.

हालांकि इस कोशिश से कांग्रेस को राजनीतिक सफलता नहीं मिली. उल्टा भाजपा ने दलितों और आदिवासियों के लिए आरक्षित सीटों पर कांग्रेस की तुलना में बेहतर प्रदर्शन किया है.

2018 और 2023 चुनाव में अंतर

पिछले विधानसभा चुनाव की तुलना में मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा का आदिवासियों के बीच जनाधार बढ़ा है. मध्य प्रदेश के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 46 प्रतिशत भाजपा को और 42.9 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है. एसटी सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 7.1 प्रतिशत बढ़ है और कांग्रेस का 0.1 प्रतिशत घटा है.

छत्तीसगढ़ के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 43.3 प्रतिशत भाजपा को और 41.7 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है. वहीं एसटी सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 11 प्रतिशत बढ़ा है और कांग्रेस का 3.4 प्रतिशत घटा है.

राजस्थान के आंकड़े थोड़े अलग हैं. एसटी सीटों पर भाजपा और कांग्रेस दोनों का वोट कम हुआ है. राजस्थान के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 38.5 प्रतिशत भाजपा को और 35.4 प्रतिशत कांग्रेस को मिला है.

एसटी सीटों पर भाजपा का वोट प्रतिशत 0.2 प्रतिशत कम हुआ है और कांग्रेस का 4.3 प्रतिशत घटा है. तेलंगाना में कांग्रेस ने आदिवासी सीटों पर अच्छा प्रदर्शन किया है. तेलंगाना के आदिवासी सीटों पर कुल जितने वोट पड़े हैं, उसका 48.3 प्रतिशत कांग्रेस को और 36.2 प्रतिशत भाजपा को मिला है. एसटी सीटों पर कांग्रेस का वोट प्रतिशत 12.3 प्रतिशत बढ़ा है और भाजपा का 5.4 प्रतिशत कम हुआ है.

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