HomeAdivasi Dailyआदिवासी मौताणा प्रथा: मौत की कीमत्त या इंसाफ़ की गारंटी

आदिवासी मौताणा प्रथा: मौत की कीमत्त या इंसाफ़ की गारंटी

दक्षिण राजस्थान में रहने वाले आदिवासी परिवार अपने किसी सदस्य की दुर्घटना में मृत्यु होने पर ज़िम्मेदार व्यक्ति से पैसे लेते हैं. मौत पर पैसे लेने की इस प्रथा को मौताणा कहा जाता है. मौतणा शब्द मौत + आणा का मेलजोल है, इसमें आणा का अर्थ है ‘ पैसा ’. इस प्रथा की तुलना किसी हद तक ब्लड मनी (Blood Money) से भी की जाती है.

दक्षिण राजस्थान (south rajasthan) में अरावली पर्वत श्रृंखला से सटे उदयपुर, बांसवाड़ा, सिरोही और पाली ज़िले में रहने वाले आदिवासियों में सादियों से एक ऐसी प्रथा चलती आ रही है, जो शायद ही कहीं और देखने को मिलेगी.

इन इलाकों में रहने वाले आदिवासी दुर्घटना में मृत्यु होने पर ज़िम्मेदार व्यक्ति से कीमत्त (take money from culprit) लेते हैं. मौत पर पैसे लेने की इस प्रथा को मौताणा (mautana) कहा जाता है. मौतणा शब्द मौत + आणा का मेलजोल है, इसमें आणा का अर्थ है ‘ पैसा ’.

मौताणा प्रथा दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों की कई कहानियां से बयां होती है.

राजस्थान के आदिवासी जिले डूंगरपुर के चुंडावाड़ा गांव में लगभग 30 घंटे से आदिवासी मुकेश के शव को परिवार वालों द्वारा जीप में रखा गया था.

3 अगस्त की शाम को 5 लोगों ने मिलकर मुकेश पर चाकू से हमला किया. जिसके बाद उसकी मौत हो गई. हत्या के बाद परिवार वालों ने आरोपियों से मौत के बदले पैसे मांगे.

पोस्टमार्टम के लिए भी परिवार वालों ने मुकेश का शव 20 घंटे बाद दिया. पोस्टमार्टम के बाद शव मिलने पर उसे जलाया नहीं गया. उसे गाड़ी में तब तक रखा गया, जबतक मृतक के परिवार वालों को आरोपियों से पैसे नहीं मिले.

एक ऐसा ही मामला उदयपुर के कोटरा इलाके में घाटित हुआ था. पुलिस आधिकारी से मिली जानकारी के मुताबिक कोटरा इलाके के उमरियां गाँव में एक व्यक्ति ने आत्महत्या की थी.

जिसके बाद मृतक के परिवार वालों ने 6 लाख रुपये के मुआवजे की मांग करते हुए उसके ससुराल वालों के दो घरों में आग लगा दी.

आत्महत्या हो या फिर हत्या दोनों में मौताणा प्रथा का पालन किया जाता है. 7 नवंबर को झाड़ोल के मगवास गांव में 54 वर्षीय महिला ने आत्महत्या की थी. जिसके बाद उसके परिवार ने महिला के ससुराल वालों से मौताणा के तौर पर 2 लाख रुपये की मांग की थी.

महिला के परिवार वालों ने उसके सुसराल वालों पर आत्महत्या का आरोप लगाया. परिवार ने विरोध प्रदर्शन किया और पोस्टमॉर्टम की अनुमति देने से भी इनकार कर दिया.

इसी सिलसिले में डूंगरपुर के चिखली गांव में रहने वाले किसान तेजसिंह चौहान बताते है की वह मौताणा प्रथा का समर्थन करते हैं क्योंकि यह आदिवासियों को अन्याय के विरोध में लड़ने की अनुमति देता है.

उन्होंने कहा कि सभी अमीर लोग पैसे का इस्तेमाल करके बच निकलते हैं. अगर गरीब लोगों को अपने प्रियजनो को खोने के बाद अपना जीवनयापन के लिए कुछ मुआवजा मिलता है तो इसमें गलत क्या है? हमारे पास पुलिस या अदालतों में जाने और न्याय मांगने के लिए समय या संसाधन नहीं है.

इस प्रथा से कई आदिवासियों को न्याय तो मिलता है लेकिन इसका कई बार दुरूपयोग भी किया जाता है. सरवन के परिजनों ने हत्या का आरोप लगाते हुए शव का पोस्टमॉर्टम कराने से इनकार कर दिया. सभी गाँव वालों ने मिलकर ये फैसला किया की 1.6 लाख की मुआवजा राशि सरवन के परिवार को दी जाएगी.

सहमत राशि मिलने के बाद ही परिवार वालों ने पुलिस को पोस्टमॉर्टम करने की अनुमति दी और पुलिस की मौजूदगी में शव का अंतिम संस्कार भी किया गया.

हालांकि बाद में मृत व्यक्ति के रिश्तेदारों ने ससुराल वालों के घरों पर फिर से हमला किया. बर्तन, टीवी और बिस्तर जैसी कई वस्तुएं तोड़ दिए. हालांकि, इस तोड़ फोड़ में किसी के भी घायल होने की खबर नहीं आई क्योंकि उस समय कोई भी घर में मौजूद नहीं था.

इस साल जुलाई में राजस्थान विधानसभा ने राजस्थान मृत शरीर सम्मान बिल, 2023 को मंजूरी दे दी है. ये बिल विशेष रूप से शवों से जुड़े विरोध प्रदर्शन को ध्यान में रख कर पास किया गया है.

कानून में इस प्रथा को दंडनीय अपराध माना गया है. इसलिए जो भी इस प्रथा का पालन करता है उसे छह महीने से लेकर पांच साल तक की अवधि तक कारावास में रखा जाता है.

अगर कोई भी व्यक्ति शव के साथ विरोध प्रदर्शन में भाग लेता हुआ पाया गया, चाहे वह सड़कों पर हो, पुलिस स्टेशनों के बाहर, या किसी अन्य सार्वजनिक स्थान पर, उसे कारावास और जुर्माना दोनों ही सज़ा के रूप में सुनाए जा सकते हैं.

इसी कड़ी में राजस्थान के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने विधानसभा में मौताणा प्रथा के बारे बात की. जिसमें उन्होंने बताया की 2014 से 2018 तक, 82 ऐसी घटनाएं दर्ज की गईं जहां परिवारों ने शव के साथ बैठकर विरोध प्रदर्शन किया. वहीं 2019 और 2023 के बीच, ऐसी घटनाओं की आवृत्ति बढ़कर 306 हो गई.

मौताणा प्रथा आदिवासी इलाकों में उनके साथ हो रहे अन्याय के खिलाफ लड़ने का साधान है. क्योंकि आदिवासियों के पास इतने पैसे और साधान नहीं है की वो कानून से न्याय की उम्मीद कर सकें. इसलिए जो भी आदिवासी इलाकों में पंचायत फैसला करती है उसे ही वे अपना लेते हैं.

जहां तक कानूनी तौर पर इस प्रथा को बंद करने के प्रयास का सवाल है तो यह बात ध्यान में रखनी होगी कि जब तक समाज का भरोसा नहीं जीता जाएगा, ऐसा कोई भी कानून कामयाब होगा, ऐसी उम्मीद नहीं की जा सकती है.

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