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आदिवासी बने स्पेशल एजुकेटर, सिखा रहे हैं छात्रों को पक्षियों के लिए घोंसले बनाना

अब तक यह परियोजना उत्तरपाड़ा के मखला हाई स्कूल, बिरती हाई स्कूल और बेल्घोरिया में उदयपुर हरदयाल नाग आदर्श विद्यालय जैसे उपनगरीय स्कूलों में शुरू हो गई है. अब तक हर स्कूल में करीब 20 से 30 घोंसलों को लगाया जा चुका है.

पुरुलिया, बीरभूम और रांची जैसे क्षेत्रों के लगभग 50 आदिवासी एक साथ आए हैं, जो हरित कार्यकर्ताओं को कोलकाता और इसके बाहरी इलाके में स्कूल परिसरों में पेड़ों में घोंसला बनाने में मदद करते हैं. इनका उद्देश्य पक्षियों के प्रजनन के लिए उपयुक्त स्थान उपलब्ध कराना है.

दरअसल तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के कारण जहां पक्षी अपना प्राकृतिक आवास खो रहे हैं, वहीं ये कृत्रिम घोंसले स्थानीय जीवों के लिए आश्रय के रूप में काम करेंगे.

पिछले कुछ महीनों में ये “स्पेशल एजुकेटर” स्कूलों में पहुंच रहे हैं और छात्रों को नारियल फाइबर का उपयोग करके घोंसले बनाने और उन्हें स्थापित करने के तरीके सिखाने के लिए कार्यशालाओं का आयोजन कर रहे हैं. इतना ही नहीं वे अपने परिसरों में पक्षियों की संख्या के बारे में स्कूलों से फीडबैक भी ले रहे हैं और यह भी जांच कर रहे हैं कि पक्षी मानव निर्मित घोंसलों में अंडे दे रहे हैं या नहीं.

इस पहल से प्रेरणा लेते हुए कुछ छात्र पक्षियों के कृत्रिम घोंसले बनाने को शौक के रूप में अपना रहे हैं और वे अपने पड़ोसियों और दोस्तों को भी पक्षियों के आश्रय बनाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. उदयपुर हरदयाल नाग आदर्श विद्यालय, बेल्घोरिया की ग्यारहवीं कक्षा की छात्रा तनीषा रॉय ने कहा, “मैं अपने स्कूल में चल रहे पक्षियों का घोंसला बनाने की पहल को लेकर उत्साहित हूं. मैं अपने घर पर भी पक्षियों के लिए घोंसला बना रही हूं.”

अब तक यह परियोजना उत्तरपाड़ा के मखला हाई स्कूल, बिरती हाई स्कूल और बेल्घोरिया में उदयपुर हरदयाल नाग आदर्श विद्यालय जैसे उपनगरीय स्कूलों में शुरू हो गई है. अब तक हर स्कूल में करीब 20 से 30 घोंसलों को लगाया जा चुका है.

बेल्घोरिया स्कूल के प्रिसिंपल सौमेन पाल ने कहा, “यह हमारे लिए इकोलॉजिकल बैलेंस के बारे में सोचने का समय है क्योंकि हमने वर्षों से शहरीकरण के कारण पर्याप्त हरियाली को खो दिया है.”

बिरती हाई स्कूल के सहायक शिक्षक अंजन घोष ने कहा, “हमारे छात्र ग्रामीणों को घोंसले बनाने और फिर उन्हें पेड़ों में स्थापित करने में मदद करने के लिए उत्साहित हैं.”

आदिवासी प्रति घोंसला 35 रुपये कमाते हैं. बीरभूम की अनीता टुडू ने कहा, “पिछले दो वर्षों में हमारी आय में भारी कमी आई है. लेकिन अब हमें घोंसला बनाकर अपनी आय बढ़ाने का मौका मिला है. पीस फाउंडेशन ट्रस्ट नामक एक एनजीओ हमें इस पहल के लिए साथ लाया है.”

ट्रस्ट के अध्यक्ष सायन बनर्जी ने कहा, “विशाल परिसरों वाले स्कूल अधिक घोंसले स्थापित करने के इच्छुक हैं. उदाहरण के लिए, रामकृष्ण मिशन रहारा का परिसर कई पेड़ों का घर है और उन्होंने लगभग 150 घोंसले की स्थापना के लिए कहा है. हम अपनी परियोजना के तहत शहर के स्कूलों और कॉलेजों से संपर्क करने की प्रक्रिया में हैं. निकट भविष्य में हम गेटेड कम्युनिटी के परिसर में भी घोंसले स्थापित करने की योजना बना रहे हैं.”

पूर्व क्रिकेटर और पक्षी प्रेमी अरुण लाल ने कहा, “तोता, स्टर्लिंग, मैगपाई रॉबिन, स्पैरो और मैना जैसे पक्षी ऐसे मानव निर्मित घोंसलों में आश्रय लेते हैं. पूरे शहर में बड़े पैमाने पर पक्षियों का घोंसला बनाया जाना चाहिए.”

(Image Credit: Times Of India)

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