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महाराष्ट्र: आदिवासियों के स्वास्थ्य की बेहतर जांच के लिए समझौता, विश्व आदिवासी दिवस पर होगी योजना की शुरुआत

महाराष्ट्र स्वास्थ्य विज्ञान विश्वविद्यालय (Maharashtra University of Health Sciences – MUHS) नागपुर में जनजातीय विकास विभाग के साथ मिलकर एक महत्वाकांक्षी परियोजना शुरू करने जा रहा है. इस परियोजना के तहत महाराष्ट्र के चंद्रपुर, गोंदिया और गढ़चिरौली जिलों के दूरदराज़ के आदिवासी गांवों में गैर-संचारी रोगों (non- communicable diseases) के लिए लोगों की जांच की जाएगी, और ज़रूर हस्तक्षेप का प्लान तैयार किया जाएगा.

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी 9 अगस्त को विश्व आदिवासी दिवस के दिन नागपुर में एक समारोह के दौरान इस आदिवासी अनुसंधान परियोजना ‘ब्लॉसम’ का शुभारंभ करेंगे.

MUHS की कुलपति (वीसी) लेफ्टिनेंट जनरल (रिटायर्ड) माधुरी कानितकर ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “अगले तीन महीनों में लगभग 22 टीमें दूरदराज़ के गांवों में 10,000 आदिवासी लोगों की स्क्रीनिंग करेंगी.”

महाराष्ट्र सरकार के अतिरिक्त जनजातीय आयुक्त (Additional Tribal Commissioner) रवींद्र ठाकरे ने बताया कि MUHS के नागपुर क्षेत्रीय केंद्र ने परियोजना के लिए आदिवासी विकास विभाग के साथ करार किया है. शुरुआत में इन ज़िलों के 18 गांवों में स्क्रीनिंग की जाएगी.

एक एसोसिएट प्रोफेसर MUHS के तहत मेडिकल कॉलेजों से ग्रैजुएट, पोस्ट-ग्रैजुएट और आशा कार्यकर्ताओं के साथ इन गांवों में आदिवासी आबादी की पूरी तरह से जांच करने के लिए टीम का नेतृत्व करेंगे. परियोजना के लिए ऐसी 22 टीमों का गठन किया गया है.

स्क्रीनिंग एक सामान्य जांच से बढ़कर होगी. इसमें स्तन कैंसर, कलेजे और जीवन शैली से जुड़ी बीमारियों, सिकल सेल रोग, यौन संचारित संक्रमण, ऑस्टियोपोरोसिस और कुपोषण वाले व्यक्तियों की पहचान की जाएगी.

परियोजना के दूसरे चरण में डेटा का विश्लेषण किया जाएगा और आबादी के लिए बेहतर स्वास्थ्य देखभाल सुनिश्चित करने के लिए योजना बनाई जाएगी.

महाराष्ट्र के आदिवासियों का स्वास्थ्य

महाराष्ट्र की कुल जनसंख्या का दस प्रतिशत हिस्सा आदिवासी है. राज्य के ज़्यादातर आदिवासी समूह अलग-थलग दुर्गम जंगलों और पहाड़ी इलाकों में रहते हैं.

ज़्यादातर आदिवासियों की स्वास्थ्य स्थिति खराब है, उनकी स्वास्थ्य ज़रूरतें अलग हैं, और लाल रक्त कोशिका आनुवंशिक विकारों (red blood cell genetic disorders) का व्यापक प्रसार है, जो उनकी स्वास्थ्य समस्याओं को और जटिल बनाता है.

इसके अलावा, आदिवासी इलाक़ों में इस तरह की जटिल स्वास्थ्य समस्याओं से निपटने के लिए ज़रूरी स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की भारी कमी है.

सरकारी आंकड़ों के अनुसार महाराष्ट्र जनसंख्या में दूसरे और क्षेत्रफल के हिसाब से देश में तीसरे स्थान पर है. अनुमान के मुताबिक़ 2022 में राज्य की कुल जनसंख्या क़रीब 12.54 करोड़ है. राज्य में कुल आदिवासी आबादी एक करोड़ से ज़्यादा है, जो राज्य की कुल आबादी का लगभग 10 प्रतिशत है. ये समूह ख़ासतौर से स्वास्थ्य, शिक्षा और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं में काफ़ी पिछड़े हैं.

राज्य में आदिवासी आबादी की स्वास्थ्य समस्याएं संक्षेप में कुछ इस तरह हैं:  

  • आहार में ज़रूरी घटकों की कमी से कुपोषण, प्रोटीन कैलोरी कुपोषण और सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी (विटामिन ए, आयरन और आयोडीन) आम हैं. कुछ जनजातीय क्षेत्रों में विभिन्न ग्रेड के घेंघा भी स्थानिक है।
  • जल जनित और संचारी रोग (Water borne and communicable diseases): गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल विकार, ख़ासतौर से पेचिश और परजीवी संक्रमण बहुत आम हैं, जिससे कुपोषण होता है. मलेरिया और तपेदिक अभी भी कई आदिवासी क्षेत्रों में एक बड़ी समस्या है.
  • आनुवंशिक विकारों (genetic disorders) का उच्च प्रसार जैसे सिकल सेल एनीमिया, ग्लूकोज 6 फॉस्फेट डिहाइड्रोजनेज की कमी और थैलेसीमिया के विभिन्न रूप भी आम हैं.
  • शराब का अधिक सेवन: महुआ के फूल और फलों से शराब बनाना आदिवासी परंपरा है. हालांकि, व्यावसायिक रूप से उपलब्ध शराब की सेवन आजकल एक बड़ी समस्या है.

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