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देश में बीजेपी के वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए आदिवासी आबादी पर फोकस है

मोदी सरकार लगातार दावा करती रही है कि आदिवासियों के विकास के लिए जितना काम अब हो रहा है पहले कभी नहीं हुआ. सरकार ने कहा है कि आदिवासियों को इंसाफ देने के लिए एक तरफ जहां संसद में आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने के लिए विधेयक लाए गए वहीं दूसरी ओर सरकार ने उनसे जुड़ी योजनाओं के लिए अधिक धन उपलब्ध कराया है. आदिवासी आबादी प्रत्येक राज्य में राजनीतिक तौर पर बेहद महत्वपूर्ण हैं. कई राज्यों में तो अनुसूचित जनजाति की आबादी काफी ज्यादा है. ऐसे में बीजेपी के लिए यह जरूरी हो जाता है कि वह जीत हासिल करने के लिए उनका समर्थन हासिल करे.

देश के 9 राज्यों और 1 केंद्र शासित प्रदेश में इस साल विधासभा के चुनाव होने है. फरवरी और मार्च के बीच पूर्वोत्तर के तीन राज्यों- त्रिपुरा, मेघालय और नगालैंड में चुनाव होंगें.

वहीं, अप्रैल-मई में दक्षिण भारत के राज्य कर्नाटक में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया पूरी होगी. साल के अंत में मध्यप्रदेश, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मिजोरम और तेलंगाना राज्य भी विधानसभा चुनाव का सामना करेंगे. इसी साल केंद्र शाषित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में भी चुनाव हो सकते हैं.

वहीं अगले साल यानी 2024 में देश में आम चुनाव होंगे. लोकसभा चुनावों के साथ ही आंध्र प्रदेश, ओडिशा, सिक्किम और अरुणाचल प्रदेश जैसे चार और राज्यों में विधानसभा के चुनाव होंगे.

अगले डेढ़ साल में जिन 13 राज्यों में विधानसभा चुनाव होने हैं, वहां आदिवासियों की संख्या अच्छी खासी है. इन राज्यों में कुल 404 सीटें हैं जो अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित हैं.

लोकसभा में ST के लिए 47 सीटें आरक्षित हैं. इसलिए इन राज्यों में सभी राजनीतिक दल आदिवासियों की खूब चर्चा कर रहे हैं. सभी दल आदिवासी वोट बैंक को लुभाने में लगे है.

दिल्ली में बीजेपी राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक

हाल ही में समाप्त हुई दो दिवसीय भाजपा राष्ट्रीय कार्यकारिणी में, पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने 2023 के लिए निर्धारित सभी 9 विधानसभा चुनावों को जीतने का लक्ष्य रखा है.

जबकि भाजपा के वरिष्ठ नेता अमित शाह ने दावा किया है कि उनकी पार्टी को 2019 की तुलना में बड़ा जनादेश मिलेगा. 2019 में भाजपा ने 303 लोकसभा सीटें जीती थीं.

हाल के विधानसभा चुनावों में गुजरात के आदिवासी बेल्ट को जीतने के बाद नरेंद्र मोदी सरकार और भाजपा की कार्ययोजना में आदिवासियों पर ध्यान केंद्रित कर दिया गया है.

नड्डा ने कहा कि साल 2023-24 के लक्ष्य को हासिल करने में आदिवासी अहम भूमिका निभाएंगे. क्योंकि बीजेपी के निरंतर आदिवासी-केंद्रित दृष्टिकोण ने गुजरात की 27 आदिवासी सीटों में से 24 पर पार्टी को भारी जीत दिला दी थी.

हालांकि वहीं 1967 के बाद से हिमाचल प्रदेश के हाटियों को आदिवासी टैग देने के बावजूद, हट्टी बहुल सिरमौर जिले की चार में से दो विधानसभा सीटों पर भाजपा हार गई.

हालांकि कुल मिलाकर बीजेपी हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस से “सिर्फ 37,000 वोटों” के अंतर से हार गई थी.

हिमाचल प्रदेश की हाटी जनजाति

अनुसूचित जनजाति, कांग्रेस, तृणमूल कांग्रेस और बीजू जनता दल जैसे विपक्षी दलों के लिए भी एक महत्वपूर्ण निर्वाचन क्षेत्र है. आदिवासी परंपरागत रूप से कांग्रेस के समर्थक रहे हैं, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने भाजपा और अन्य गैर-कांग्रेसी संस्थाओं के प्रति अपनी निष्ठा बदल ली है.

पिछले एक साल में, आदिवासी समुदायों पर मोदी सरकार का खासा जोर देखने को मिला है. मसलन, मोदी सरकार ने साल 2022 में क्रांतिकारी आदिवासी आइकन बिरसा मुंडा की जयंती को चिह्नित करने के लिए हर साल 15 नवंबर को जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की.

देश भर में आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के संग्रहालय बनाए गए. आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों के नाम पर रेलवे स्टेशनों का नाम बदलना और बाद में संसदीय प्रक्रिया के माध्यम से अनुसूचित जनजाति सूची में तमिलनाडु, कर्नाटक और यूपी के कई समुदायों को शामिल करना जैसे कार्य किए.

बीजेपी क्षेत्रिय दलों से भिड़ रही है

आदिवासी इलाक़ों में कांग्रेस पार्टी का परंपरागत वर्चस्व रहा था. लेकिन इस वर्चस्व को बीजेपी के अलावा कई क्षेत्रिय दलों ने तोड़ दिया है. इसके बावजूद अभी भी कांग्रेस पार्टी का कई आदिवासी इलाक़ों में मज़बूत है.

मध्य प्रदेश और गुजरात के पिछले विधान सभा चुनाव में आदिवासियों ने कांग्रेस पार्टी पर भरोसा जताया था. लेकिन हाल के गुजरात चुनाव ने यह साबित कर दिया है कि अब आदिवासी इलाक़ों में भी कांग्रेस पार्टी का वर्चस्व टूट रहा है.

बीजेपी यह जानती है कि की राज्यों में आदिवासी वोट के लिए उसे क्षेत्रिय दलों से मुक़ाबला करना पड़ेगा. मसलन पश्चिम बंगाल में तृणमूल कांग्रेस उसके रास्ते का बड़ा रोड़ा है.

बीजेपी आदिवासी समुदाय से आने वाली द्रौपदी मुर्मू को भारत का राष्ट्रपति बनाया है. उस समय विपक्ष ने राष्ट्रपति के चुनाव में तृणमूल के नेता यशवंत सिन्हा को उम्मीदवार को तौर पर खड़ा किया था.

राष्ट्रपति के इस चयन को बीजेपी ने चुनावी लाभ के लिए इस्तेमाल किया. गुजरात के आदिवासी बेल्ट में बीजेपी ने अपनी रैलियों में इसे विपक्ष की “आदिवासी विरोधी मानसिकता” के रूप में प्रदर्शित किया.

राष्ट्रपित द्रौपदी मुर्मू के साथ प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी

तब से भाजपा तृणमूल को बंगाल में भी आदिवासी विरोधी बता रही है, जिससे उसके प्रमुख और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी को समुदाय तक पहुंचने के लिए मजबूर होना पड़ा.

2019 में 42 लोकसभा सीटों में से 18 पर जीत हासिल करने वाली बीजेपी ने बंगाल की आदिवासी बहुल सीटों पर बहुत अच्छा प्रदर्शन किया था.

इसने बांकुरा, पुरुलिया और पश्चिम मिदनापुर के आदिवासी जिलों की छह में से पांच लोकसभा सीटों के अलावा उत्तर बंगाल की आठ लोकसभा सीटों में से सात पर जीत हासिल की थी.

तृणमूल कांग्रेस 2021 के विधानसभा चुनावों में आदिवासी जिलों की 94 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत हासिल करने में सफल रही थी.

अपनी राष्ट्रीय आकांक्षाओं को देखते हुए ममता बनर्जी, बीजेपी को 2024 में अपने 2019 के प्रदर्शन को दोहराने की अनुमति नहीं दे सकती हैं. टीएमसी की सीटों का हिस्सा जितना बड़ा होगा, विपक्षी खेमे से प्रधान मंत्री पद के लिए उसका दांव उतना ही भारी होगा.

ओडिशा– राज्य में, भाजपा 2024 में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए आदिवासी और महिला आबादी पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है ताकि नवीन पटनायक के नेतृत्व वाली बीजद व्यवस्था को उखाड़ फेंका जा सके.

पटनायक ने घोषणा की है कि बीजद 100 साल तक सत्ता में रह सकती है. उन्होंने बिरसा मुंडा के नाम पर राउरकेला में दुनिया के सबसे बड़े हॉकी स्टेडियमों में से एक का नामकरण करने जैसे कदम उठाकर आदिवासी कार्ड खेला है.

खेल परिसर वर्तमान में FIH पुरुष हॉकी विश्व कप की सह-मेजबानी कर रहा है. ओडिशा में विधानसभा में अनुसूचित जनजाति के लिए 24 सीटें आरक्षित है.

त्रिपुरा – भाजपा को त्रिपुरा में मुश्किल हो रही है जहां 20 एसटी सीटें हैं और आदिवासी संगठन तिपराहा इंडिजिनस पीपुल्स रीजनल एलायंस (टिपरा) मोथा अपने आधार और प्रभाव का विस्तार कर रहा है.

यहां तक ​​कि राज्य में भाजपा सहयोगी आईपीएफटी को भी अपनी पार्टी में शामिल करने के लिए कोशिश कर रहा है.टिपरा और IPFT दोनों की मांगे एक ही है- एक अलग तिप्रालैंड राज्य. वहीं कांग्रेस और सीपीआईएम (CPIM) ने भी सैद्धांतिक तौर पर हाथ मिला लिया है. ऐसे में बीजेपी के लिए इस राज्य की डगर मुश्किल दिखाई दे रही है.

टिपरा मोथा के अध्यक्ष प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा

नागालैंड– राज्य की 60 विधानसभा में से 59 सीटें अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित है.राज्य के आदिवासी संगठन विधानसभा चुनाव से पहले नागा राजनीतिक मुद्दे के समाधान की मांग कर रहे हैं.

ऐसे में भाजपा और उसके मुख्यमंत्री नेफ्यू रियो के लिए मुश्किल हो सकती है. नागालैंड पीपुल्स एक्शन कमेटी के बैनर तले आए आदिवासी संगठनों द्वारा बंद और विरोध प्रदर्शन किया गया है.

हालांकि नागालैंड में पिछले 1 साल से विपक्ष रहित सरकार है. राज्य में यूनाइटेड डेमोक्रेटिक एलायंस (यूडीए) सरकार में एनडीपीपी, बीजेपी और दो निर्दलीय विधायक भागीदार हैं और नागा पीपुल्स फ्रंट (एनपीएफ) ने उनके साथ हाथ मिलाया है.

मेघालय – आदिवासी बहुल राज्य मेघालय में फिलहार कॉनराड संगमा के नेतृत्व में एनपीपी, बीजेपी और अन्य दलों का गठबंधन हैं. 2018 विधानसभा चुनावों में एनपीपी को समर्थन देकर बीजेपी गठबंधन सरकार में किंगमेकर बन गई थी.

हालांकि इस बार एनपीपी और भाजपा दोनों ही दल अलग-अलग चुनाव लड़ने का ऐलान कर चुके हैं. मेघालय ईसाई आदिवासी बहुल राज्य है.

यहां की आबादी में लगभग 75 प्रतिशत ईसाई आदिवासी है. राज्य के लोगों में बीजेपी के ईसाई विरोधी होने की धारणा बनने से कॉनराड संगमा और बीजेपी के बीच दूरियां बढ़ती चली गई.

जानकारों के मुताबिक भाजपा 2018 की तुलना में बेहतर स्थिति में हो सकती है, लेकिन पार्टी के पास कोई स्थानीय चेहरा नहीं है जिसे वह एनपीपी और टीएमसी के विपरीत पेश कर सके.वहीं तृणमूल कांग्रेस राज्य में सबसे मुखर विपक्षी दल के रुप में उभरी है.

राजस्थान – राज्य में एसटी के 25 सीटें है. अशोक गहलोत सरकार अपने आदिवासी आउटरीच अभियान में आदिवासी खेल और खेल टूर्नामेंट जैसे आयोजन करती रही है.

इसने युवा मतदाताओं तक राज्यव्यापी पहुंच बनाने के लिए ग्रामीण ओलंपिक का भी आयोजन किया. वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पिछले साल ऐतिहासिक और राजनीतिक रूप से महत्वपूर्ण मनगढ़ का दौरा किया था.

राजस्थान, गुजरात और मध्य प्रदेश की एसटी की 99 विधानसभा सीटों पर इस क्षेत्र के आदिवासियों का बोलबाला है.

मध्यप्रदेश – शिवराज सिंह चौहान की सरकार ने राज्य की 47 एसटी सीटों पर नजर रखते हुए कई आदिवासी-केंद्रित पहल शुरू की है.

इसमें अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायत विस्तार (PESA) अधिनियम, 1996 को लागू करने, अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभाओं को विशेष अधिकार देने के लिए, विशेष रूप से प्राकृतिक संसाधनों के प्रबंधन के लिए तेंदू पत्ते पर बोनस और वन से इमारती लकड़ी को प्राप्त करने पर राजस्व का 20 प्रतिशत देने का फ़ैसला शामिल है.

इसके साथ ही आदिवासी नायक टंट्या ‘मामा’ की 10 फीट की अष्टधातु (आठ धातु) की मूर्ति का अनावरण करने जैसे कार्य शामिल है.

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