गुजरात से सांसद राजेश नारणभाई चुड़ासमा ने लोक सभा में जनजातीय मंत्रालय से एक सवाल किया. इस सवाल में चार बातें पूछी गई हैं. पहली बात पूछी गई है कि पिछले 3 सालों में विस्थापित हुए आदिवासियों या आदिवासी परिवारों की संख्या क्या है.
दूसरी बात उन्होंने पूछी कि राज्यवार कितने आदिवासी परिवार विस्थापित हुए हैं. तीसरी बात यह पूछी गई कि पिछले 3 साल में अगर आदिवासी विस्थापित हुए हैं तो उसका कारण क्या था.
चौथी और आख़री बात यह पूछी गई कि विस्थापित आदिवासियों की सहायता के लिए सरकारी उपबंध क्या है.
अब आपकी या हमारी नज़र में यह एक महत्वपूर्ण सवाल है. लेकिन अगर आप संसद में जनजातीय कार्य मंत्रालय की तरफ़ से दिए जवाब को पढ़ेंगे तो आपको यह समझ नहीं पाएँगे की आप हालात पर हंसे या रोएँ.
जनजातीय कार्य राज्य मंत्री की तरफ़ से इस सवाल का काफ़ी विस्तार से जवाब दिया गया. लेकिन बात बस इतनी सी है कि उन्होंने इस सवाल के जवाब में जो काम की बात बताई वो इतनी सी है कि सरकार के पास पिछले 3 साल में विस्थापित हुए आदिवासियों की संख्या की जानकारी नहीं है.
अब यह अपने आप में कमाल की बात है कि जब सरकार को यह पता ही नहीं है कि पिछले 3 साल में कितने आदिवासी और किस किस राज्य में विस्थापित हुए हैं, तो फिर जवाब के विस्तार में मंत्री जी ने बताया क्या है.
आप सोचेंगे कि शायद मंत्री जी ने इस सवाल में पूछी गई बाक़ी बातों का जवाब दिया होगा. मसलन आदिवासी विस्थापन के कारण या फिर विस्थापित आदिवासियों को सरकारी मदद का ब्यौरा उन्होंने दिया होगा.
जी नहीं आपका यह अंदाज़ा भी ग़लत है. तो चलिए आपको बताते हैं जनजातीय कार्य राज्यमंत्री विश्वेश्वर टुडू ने अपने उतर के विस्तार में क्या जानकारी संसद को दी है.
सबसे पहले मंत्री जी ने संसद को बताया की ग्रामीण विकास मंत्रालय का भूमि संसाधन विभाग भूमि अधिग्रहण से निपटने वाला नोडल मंत्रालय है. आगे मंत्री जी बताते हैं ग्रामीण विकास मंत्रालय ने जानकारी दी है कि केन्द्र या राज्य सरकारें 2013 के क़ानून के तहत भूमि अधिग्रहण करते हैं.
इसके बाद मंत्री जी बताते हैं कि अनुसूचित जनजाति और परंपरागत रूप से जंगल में रहने वाले समुदायों को तब तक उनकी भूमि से नहीं हटाया जा सकता है जब तक कि मान्यता और सत्यापन का कार्य पूरा नहीं हो जाता है.
उन्होंने यह भी बताया कि आदिवासी इलाक़ों में ग्राम सभा के परामर्श के बिना लोगों को विस्थापित नहीं किया जा सकता है.
उन्होंने फ़ॉरेस्ट राइट्स एक्ट 2006 का भी ज़िक्र अपने जवाब में किया है. बस जिस बात का ज़िक्र उनके जवाब में नहीं था, वो वही बात थी जो सांसद नारणभाई चूडासमा ने मंत्री जी से पूछी थी.