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छत्तीसगढ़ सरकार ने तेलंगाना में बस्तर के विस्थापित आदिवासियों की सुध ली, सर्वे टीम गठित की गई

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ़ से जमीन छोड़कर चले जाने के फरमान से हजारों आदिवासियों परेशान हैं. 5 हजार से अधिक की संख्या में आदिवासी ग्रामीण तेलंगाना में मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. परिवार वालों ने छत्तीसगढ़ सरकार से भी मदद की गुहार लगाई थी.

छत्तीसगढ़ सरकार ने राज्य से विस्थापित हो कर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के जंगलों में बस गए आदिवासियों का सर्वे कराने का फ़ैसला किया है. इस सिलिसले में राज्य सरकार ने अधिकारियों की सर्वे टीम बनाई है. 

सर्वे टीम में दंतेवाड़ा, सुकमा और बीजापुर के तीन अधिकारी शामिल हैं. सर्वे टीम तेलंगाना और आंध्र प्रदेश जाकर बस्तर के से विस्थापित आदिवासियों की जानकारी लेगी. इन विस्थापित आदिवासियों को तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सरकार जंगल से हटाना चाहती है. यह मसला पिछले दो सप्ताह से मीडिया में चर्चा में आया है. 

मीडिया रिपोर्ट बताती हैं कि वन विभाग के अधिकरी और कर्मचारियों ने आदिवासियों के मकानों पर बुलडोजर भी चला दिया है. लगभग 5 हजार से अधिक की संख्या में बस्तर के आदिवासी बेघर हो गए हैं. इन ख़बरों के बाद हरकत में आयी राज्य सरकार ने बेघर आदिवासियों की सुध लेने का फैसला किया. 

सर्वे टीम को प्रभावित ग्रामीणों का बयान दर्ज कर राज्य सरकार को रिपोर्ट सौंपने का जिम्मा दिया. छत्तीसगढ़ के सुकमा, दंतेवाड़ा और बीजापुर से करीब 10 साल पहले नक्सली भय के कारण घर, जंगल, जमीन और गांव छोड़कर आदिवासी चले गए थे. 

3 नोडल अफ़सर नियुक्त


हिंसा प्रभावित हजारों आदिवासी ग्रामीण बस्तर से पलायन कर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में शरण ली थी. आदिवासी फॉरेस्ट की जमीन पर कच्चे मकान बनाकर वर्षों से रह रहे थे, लेकिन कुछ सप्ताह पहले अचानक विस्थापित आदिवासियों के घरों पर वन विभाग ने बुलडोजर चला दिया. इन इलाक़ों में बसे आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि उनके साथ मारपीट भी की गई है.

तेलंगाना और आंध्र प्रदेश सरकार की तरफ़ से जमीन छोड़कर चले जाने के फरमान से हजारों आदिवासियों परेशान हैं. 5 हजार से अधिक की संख्या में आदिवासी ग्रामीण तेलंगाना में मजदूरी कर परिवार का पालन पोषण कर रहे थे. परिवार वालों ने छत्तीसगढ़ सरकार से भी मदद की गुहार लगाई थी.  

हिंसा प्रभावित बस्तर से हज़ारों आदिवासी परिवार पलायन कर तेलंगाना में बस गए थे

इस पूरे मामले पर छत्तीसगढ़ सरकार ने गंभीरता दिखाई है. राज्य सरकार की ओर से बीजापुर ,सुकमा और दंतेवाड़ा से तीन नोडल अफसर बनाए गए हैं. ये अफसर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के गांवों का दौरा करने के साथ प्रभावितों से बातचीत भी कर रहे हैं. बीजापुर जिले से नोडल अफसर के तौर पर एडिशनल कलेक्टर मनोज बंजारे को जिम्मेदारी दी गई है. 

सुकमा जिले से कोंटा एसडीएम और दंतेवाड़ा से डिप्टी कलेक्टर कमल किशोर को नोडल अधिकारी बनाया गया है. सभी अफसर तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में पीड़ितों से बात कर रहे हैं. जानकारी के मुताबिक तीनों अफसरों को विस्थापित आदिवासियों ने दो टूक कह दिया है कि अब बस्तर वापस नहीं आना चाहते.

हालांकि आधिकारिक तौर पर अभी किसी भी अफसर ने कुछ नहीं कहा है. आदिवासियों की स्थिति की रिपोर्ट अधिकारी सीधे सरकार को सौंपेंगे और मामले में सरकार की तरफ से रिपोर्ट पूरी होने के बाद बयान दिया जाएगा.

गृह मंत्री को लिखा पत्र

जानकारी के मुताबिक तेलंगाना और आंध्र में रहने वाले प्रभावितों ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एक पत्र लिखा है. बताया जा रहा है कि अमित शाह को लिखे पत्र में यहाँ बसे आदिवासियों ने उन्हें ज़बरदस्ती बेदख़ल किये जाने की कार्यवाही को रोकने का आग्रह किया है.  

प्रभावित ग्रामीणों का कहना है कि सरकार फॉरेस्ट राइट एक्ट में जमीन के बदले यही जमीन दिलवा दे. आदिवासी ग्रामीण तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में ही रहना चाहते हैं क्योंकि अगर वापस बस्तर आये तो नक्सली मार देंगे. 

तेलंगाना सरकार का क्या कहना है

तेलंगाना सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ से विस्थापित आदिवासियों ने जंगल में अपने घर बनाने के साथ साथ खेत भी बना लिए हैं. राज्य सरकार और वन विभाग का कहना है कि खेत बनाने के लिए बड़ी संख्या में पेड़ों को काट दिया गया. वन विभाग का आरोप है कि छत्तीसगढ़ से यहाँ आए आदिवासी अभी भी बड़े पैमाने पर पेड़ काट रहे हैं.

वन विभाग का दावा है कि इस जंगल कटाई से राज्य का फ़ॉरेस्ट कवर लगातार कम हो रहा है. तेलंगाना राज्य सरकार ने इस इलाक़े में फिर से पौधारोपण का काम शुरू करने का दावा किया है.

राज्य सरकार का कहना है कि छत्तीसगढ़ से आ कर यहाँ बसे आदिवासियों के पास इस ज़मीन का मालिकाना हक़ नहीं है. इसके अलावा जानकारी यह भी मान रहे हैं कि तेलंगाना सरकार को यह आशंका भी है कि नक्सल संगठनों पर छत्तीसगढ़ में बढ़ते दबाव के कारण उनके लोग इस इलाक़े में प्रवेश कर सकते हैं.

ऐसी स्थिति में राज्य में नक्सल हिंसा बढ़ सकती है. कई जानकार मानते हैं कि राज्य सरकार नक्सलों और यहाँ पर आ कर बसे गए आदिवासियों के बीच टकराव की स्थिति नहीं चाहते हैं.

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