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केरल: मुथुवन आदिवसी समाज में नहीं हो रही संतान प्राप्ति, ये है मुख्य वज़ह

2001 में मुथुवन आदिवासी की आबादी 15.48 प्रतिशत से 2011 तक 6.15 प्रतिशत हो चुकी है. मिली जानकारी के मुताबिक इसका मुख्य कारण है की मुथुवन समाज में महिलाएं बहुत कम उम्र से ही गर्भनिरोधक गोलियाँ खाने लगती है.

मुथुवन आदिवासी (Muthuvans tribe) मुख्य रूप से केरल (kerala ) के इडुक्की ज़िले (Idukki district) ) के एडमलाक्कुडी (Edamalakkudy) में रहते हैं. इन्हें जड़ी-बूटी के उपयोग के लिए खास तौर पर जाना जाता है. इसके साथ ही ये राज्य के विशेष रूप से कमज़ोर जनाजतीयों समूह (PVTGs) में से एक है. शायद ऐसा इसलिए है क्योंकि वे बाकी दुनिया से इतने अलग-थलग हैं.

वहीं इनकी जनसंख्या 2001 के 15.48 प्रतिशत से 2011 तक 6.15 प्रतिशत हो चुकी है. जिसका मुख्य कारण एडमलाक्कुडी के लेखक सुभाष चंद्रयान (Subhash chandran) की किताब में मिलता है. सुभाष के अनुसार मुथुवन समाज में अधिकतर महिलाएं बहुत छोटी उम्र से ही गर्भनिरोधक गोलियाँ (Contraceptive tablets) लेना शुरू कर देती हैं.

क्योंकि मुथुवन आदिवासी समाज में आज भी माहवारी या पीरियड्स (Periods) से जुड़ी कई भ्रांतिया मानी जाती है. जिसकी वज़ह से महिलाएं पीरियड्स को रोकने के लिए गर्भनिरोधक गोलियों का इस्तेमाल करती है. जिसके बाद उन्हें आने वाले समय में संतान प्राप्ति में दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.

वहीं मुथुवन समुदाय की 29 साल की सुशीला ए अपने समाज की परंपराओं को तोड़ आगे बढ़ी. हालांकि, सुशीला और उनके माता-पिता के लिए ये सफर आसान नहीं था.
सुशीला बताती हैं कि दूरदराज के इलाके में स्थित बस्ती और बुनियादी सुविधाओं की कमी एक अभिशाप थी जिसके साथ निवासियों को रहना पड़ता था. उसकी माँ ने अपनी पहली बेटी को खो दिया क्योंकि उसे एक मुश्किल प्रसव के दौरान समय पर दूर के अस्पताल नहीं ले जाया गया.

ऐसे में इस अभिशाप को हटाने और अपने आने वाले बच्चों के अस्तित्व को सुनिश्चित करने के लिए माता-पिता ने मरयूर में बस्ती सुसन्नाक्कुडी में जाने का फैसला किया.
सुशीला कहती हैं, “बुनियादी सुविधाओं की कमी के अलावा समुदाय के सदस्यों के इर्द-गिर्द घूमने वाली सदियों पुरानी मान्यताएं उनके लिए सबसे बड़ा अभिशाप साबित हुई हैं.”
उन्होंने कहा, ” एडमलाक्कुडी में अवसाद या चिंता से पीड़ित एक पुरुष या महिला को राक्षसी रूप से ग्रस्त करार दिया जाता है और पारंपरिक नीम-हकीमों द्वारा इलाज किया जाता है.”

सुशीला बताती हैं कि जब उसकी बड़ी बहन को सांप ने काट लिया था और उसका इलाज हर्बल दवा से किया गया था. लेकिन जब मेरे पिता को एहसास हुआ कि वह अपनी बेटी को खो देंगे, तो वह उसे मरयूर के एक निजी अस्पताल में ले गए, जिससे मेरी बड़ी बहन की जान बच गई, जिसकी अब शादी हो चुकी है.

वहीं जब उनकी बड़ी बहन को बिहार के एक मूल निवासी से प्यार हो गया तो उनके परिवार ने परंपरा तोड़ने का फैसला किया और बस्ती से बाहर चले गए. सुशीला कहती हैं, ”एक मुथुवन केवल मुथुवन से शादी कर सकता है और समुदाय के बाहर शादी करने पर उस परिवार का बहिष्कार कर दिया जाता है.”उनका पूरा परिवार, जिसमें तीन बेटियाँ, बेटा और माता-पिता शामिल थे, बस्ती छोड़कर मरयूर में एक किराए के घर में रहने लगे.

उन्होंने कहा, “जंगल में कैद जीवन से लेकर, गाय के गोबर से लिपे फर्श पर सोना और जो कुछ भी उपलब्ध था उसे खाना हमने देखा… लेकिन हमने नए जीवन का अनुभव किया, आधुनिक स्वास्थ्य देखभाल का लाभ उठाया और सामाजिक जीवन का आनंद लिया.”

सुशीला बताती है की उसके पिता आलकर स्वामी को एक दिन स्ट्रोक हुआ था. अच्छी बात ये रही की वो बिना किसी परेशानी के अपने पिता को अस्पताल में सही समय पर भर्ती करवा सकी जिससे उनकी जान बच गई. सुशीला का मानना है कि हालाँकि कुछ परंपराओं को संरक्षित करने की आवश्यकता है लेकिन आदिवासी समुदायों के कुछ रीति-रिवाजों से अत्यधिक मानवाधिकारों के उल्लंघन की बू आती है.

सिर्फ मुथुवन समाज ही नहीं बल्कि पूरे देश में ऐसे कई आदिवसी समुदाय हैं जो आज भी कई अंधविश्वासों और काला जादू जैसी प्रथाओं से जूझ रहें हैं. इसके कई कारण हो सकते हैं. हमें अपनी संस्कृति से हमेशा जुड़े रहना चाहिए. लेकिन अंधविश्वास और भ्रांतिया ऐसी जड़ है जो किसी भी समाज को खोखला बना सकता है.

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