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जम्मू-कश्मीर: बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, लेकिन प्रशासन आदिवासी छात्रों के लिए सामुदायिक क्लास चलाने के लिए वाहवाही चाहता है

आदिवासियों ने सरकार के सामने शिक्षा, स्वरोज़गार, पशुपालन, और स्वास्थ्य से संबंधित चिंताएं जताई हैं. ऐसे में सामुदायिक कक्षाओं की यह पहल इन आदिवासी समुदायों की चिंताएं दूर करने में पहला क़दम हो सकता है, अगर इसमें सभी बुनियादी ज़रूरतें मौजूद हों तो.

जम्मू और कश्मीर प्रशासन खानाबदोश आदिवासी समुदायों के बच्चों की शिक्षा सुनिश्चित करने के लिए कई पहल करने का दावा कर रहा है. इनमें से एक है पीरपंजाल रेंज के ऊंचाई वाले इलाक़ों में सामुदायिक कक्षाएं. यह कक्षाएं उन समुदाय के बच्चों के लिए हैं जो साल के छह महीनों के लिए ऊपरी इलाकों की ओर चले जाते हैं.

इस तरह के सात सामुदायिक केंद्र पीरपंजाल रेंज के ऊंचे इलाकों में चल रहे हैं ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि पलायन की वजह से इन खानाबदोश समुदायों के बच्चों की शिक्षा प्रभावित न हो.

आदिवासियों ने सरकार के सामने शिक्षा, स्वरोज़गार, पशुपालन, और स्वास्थ्य से संबंधित चिंताएं जताई हैं. ऐसे में सामुदायिक कक्षाओं की यह पहल इन आदिवासी समुदायों की चिंताएं दूर करने में पहला क़दम हो सकता है, अगर इसमें सभी बुनियादी ज़रूरतें मौजूद हों तो.

इन सामुदायिक कक्षाओं को चलाने वाली एक टीचर रुखसाना कौसर ने एएनआई को बताया, “हमने यहां पीरपंजाल इलाक़े में आदिवासी छात्रों के लिए सामुदायिक कक्षाएं शुरू की हैं. हमारे पास आने वाले छात्र पढ़ाई में अच्छे हैं. लेकिन हमें अभी तक कोई शेड नहीं दिया गया है. मेरा अनुरोध है कि कम से कम एक टेंट हमें मिले ताकि इनकी पढ़ाई में मौसम की बाधा ना आए.”

13,000 फ़ीट की ऊंचाई वाले इस इलाक़े में गुर्जर और बकरवाल आदिवासी साल के छह महीने रहते हैं. इनमें कक्षा नौ तक के छात्र हैं. टेंट के अभाव में अगर उस ऊंचाई पर मौसम बिगड़ जाता है तो क्लास भी जल्दी बंद करनी पड़ती है. ऊपर से इस ऊंचाई पर ठंड भी काफ़ी होती है, और बच्चों के लिए पढ़ाई करना मुश्किल हो जाता है.

टेंट के अलावा किताबें, स्टेशनरी, सोलर लाइट, और कंप्यूटर की भी ज़रूरत है, ताकि बच्चों का संपूर्ण विकास हो सके, और वो देश के दूसरे हिस्सों में रहने वाले बच्चों के साथ कंपीट कर सकें. अच्छे इंटरनेट कनेक्शन के लिए मोबाइल टावर भी चाहिएं.

प्रशासन का दावा है कि जम्मू-कश्मीर के आदिवासी समुदायों को विभिन्न सुविधाओं से जोड़ने के लिए कई योजनाएं बनाने पर काम चल रहा है. जम्मू-कश्मीर के जनजातीय मामलों के विभाग के सचिव डॉ शाहिद इकबाल चौधरी ने बताया कि प्रशासन ने हाल ही में ऐसे इलाक़े में बस्तियों की पहचान करने के लिए एक सर्वेक्षण किया जहां स्कूलों की ज़रूरत है.

जम्मू-कश्मीर के आदिवासी कठिन परिस्थितियों में रहते हैं. यह लोग साल के छह महीने अपने पशुओं के झुंड के साथ आजीविका के लिए अपने घरों से दूर रहते हैं. इनके विकास पर ख़ास ध्यान देने की ज़रूरत है.

स्कूलों और सामुदायिक कक्षाओं के अलावा आदिवासी समुदायों के बच्चों के लिए रेज़िडेंशियल स्कूल बनाने पर भी ज़ोर दिया जा रहा है. इससे पलायन करने वाले परिवारों के बच्चे सालभर हॉस्टल में रहकर अपनी पढ़ाई जारी रख सकेंगे.

(Photo Credit: ANI)

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