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आंध्र प्रदेश में रिकॉर्ड से कटे ये पांच आदिवासी गांव सरकारी लाभ से वंचित

कई विरोध प्रदर्शनों के बाद राजस्व अधिकारियों ने गोपालरायुडुपेटा ग्राम पंचायत में उनके नाम शामिल किए और कुछ परिवारों को आधार और राशन कार्ड भी दिए. लेकिन उनके गांवों को राजस्व रिकॉर्ड में नहीं जोड़ा गया.

आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के विजयनगरम के बोब्बिली मंडल में गोपालरायुडुपेटा (Gopalarayudupeta ) ग्राम पंचायत के अंतर्गत कृपावलसा, सियोनुवलसा, दीवेनवलसा, रामनवलसा और चिन्ना अक्कीवलसा में रहने वाले कम से कम 100 आदिवासी परिवारों को सरकारी लाभ से वंचित कर दिया गया है. क्योंकि इन गांवों को राजस्व विभाग से मान्यता नहीं मिली है.

इन आदिवासियों को पिछले 15 वर्षों से सड़क, स्वास्थ्य सेवा, पेयजल, बिजली, आंगनबाड़ी और प्राथमिक विद्यालय जैसी बुनियादी सुविधाओं तक पहुंच नहीं है. पांच साल से कम उम्र के बच्चे दो से सात किलोमीटर पैदल चलकर नजदीकी आंगनबाड़ी केंद्र या आसपास के गांवों के प्राथमिक विद्यालय में जाने को मजबूर हैं.

अधिकारियों से हस्तक्षेप करने का आग्रह करने वाली दलीलों का भी कोई फायदा नहीं हुआ. जबकि बोब्बिली में मंडल मुख्यालय इन बस्तियों से सिर्फ सात किलोमीटर दूर है. लेकिन इसके बावजूद इन आदिवासियों की पीड़ा को समझने वाला कोई नहीं है.

जथापु (Jathapu) और कोंडाडोरा (Kondadora) समुदायों से संबंधित कम से कम 100 आदिवासी परिवार 2007 में आजीविका की तलाश में आंध्र-ओडिशा सीमा के साथ विवादित कोटिया क्षेत्र से गोपालरायुडुपेटा के पास वन भूमि में चले गए.

इस पूरी ख़बर का सबसे दुखद पहलू ये है कि ये दोनों समुदाय विशेष रूप से कमजोर आदिवासी समूह (PVTG) से हैं और पारंपरिक पोडू खेती करते थे. यानि ये आदिवासी समुदाय बेहद सीमित संसाधनों में जीते हैं और सरकार यह मानती है कि इन्हें विशेष मदद की ज़रूत है.

हालांकि, वे पिछले 15 वर्षों से वन अधिकार अधिनियम के तहत राइट ऑफ फर्स्ट रिफ्यूज (Right Of First Refusal) पट्टों के लिए यहां के आदिवासी प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन प्रशासन इसके बावजूद कार्रवाई करने में विफल रहा है.

कई विरोध प्रदर्शनों के बाद राजस्व अधिकारियों ने गोपालरायुडुपेटा ग्राम पंचायत में उनके नाम शामिल किए और कुछ परिवारों को आधार और राशन कार्ड भी दिए. लेकिन उनके गांवों को राजस्व रिकॉर्ड में नहीं जोड़ा गया.

अब उनके पास आधार कार्ड हैं लेकिन स्थानीय नेताओं ने उन्हें वोटर कार्ड देने से इनकार कर दिया है. ऐसे में उन्हें डर है कि वे स्थानीय निकाय चुनावों में आरक्षण खो सकते हैं.

हर बार जब कोई मेडिकल इमरजेंसी की स्थिति होती है तो इन पांच गांवों के निवासियों को  गाड़ी चलाए जाने लायक सड़क तक पहुंचने के लिए मरीज को डोली पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ता है.

आदिवासी संकेशमा परिषद के सचिव, तुम्मी अप्पलाराजू डोरा ने कहा, “हम वर्षों से राजस्व, वन, आदिवासी कल्याण कार्यालयों से संपर्क कर रहे हैं. उपमुख्यमंत्री (आदिवासी कल्याण) पीडिका राजन्ना डोरा और बोब्बिली के विधायक संबांगी चिन्ना अप्पलनायडू ने इन गांवों में एक बैठक की और हमें आश्वासन दिया कि वे हमारी समस्याओं का समाधान निकालेंगे. लेकिन वे हमें बिजली सुविधा देने में विफल रहे हैं.”

वर्षों से अधिकारियों की उदासीनता के बाद आदिवासियों ने खुद ही अपने गांव के लिए कुछ करने का फ़ैसला किया. उन्होंने श्रमदान के तहत सड़कों का निर्माण किया और सामाजिक कार्यकर्ताओं की मदद से हर एक बस्ती में एक बोरवेल खोदा. इसके साथ ही उनमें से कुछ सामाजिक कार्यकर्ताओं द्वारा दिए गए सौर पैनलों का इस्तेमाल अपनी झोपड़ियों में एक बल्ब जलाने के लिए करते हैं.

आंध्र प्रदेश ही नहीं बल्कि तेलंगाना, ओड़िशा, छत्तीसगढ़ और कई अन्य राज्यों में अक्सर यह समस्या आती है जब जंगल में बसाए गए आदिवासी गांवों को सरकार राजस्व गांव घोषित नहीं करती है.

इस सूरत में आदिवासियों को जंगल की जमीन का अतिक्रमणकारी माना जाता है. कई मामलों में आदिवासी और वन विभाग का टकराव भी होता है.

लेकिन इस तरह के मामलों में सबसे बड़ी मुश्किल ये होती है कि आदिवासियों को मूलभूत सुविधाओं से भी वंचित होना पड़ता है.

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