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क्या मणिपुर के लोगों का बीरेन सिंह सरकार से भरोसा उठ गया है!

मणिपुर में कुकी समुदाय का पहाड़ियों पर प्रभुत्व है, जबकि मैतेई समुदाय घाटी में बहुसंख्यक हैं, जिसमें इंफाल भी शामिल है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की 28 लाख आबादी में मैतेई लगभग 15 लाख हैं, जबकि 8 लाख कुकी, 6 लाख नागा और मणिपुरी मुसलमानों सहित अन्य शामिल हैं.

एक मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक मणिपुर के नागा विधायकों के एक प्रतिनिधिमंडल ने केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से बुधवार को एक बैठक के दौरान बताया कि 3 मई को मणिपुर में भड़की हिंसा के जवाब में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह सरकार की प्रतिक्रिया “बहुत धीमी” थी. जिसके कारण लोगों का “राज्य सरकार पर से विश्वास उठ गया है”.

10 विधायकों और एक सांसद के प्रतिनिधिमंडल ने अमित शाह को यह भी बताया कि नागा केंद्र सरकार द्वारा राज्य के लिए तय की गई किसी भी व्यवस्था के खिलाफ नहीं हैं. लेकिन जो भी व्यवस्था की जाती है उससे नागा क्षेत्रों का उल्लंघन नहीं होना चाहिए.

29 मई से शुरू हुई मणिपुर की अपनी चार दिवसीय यात्रा के दौरान उनसे मिलने में असमर्थ रहने के बाद अमित शाह ने प्रतिनिधिमंडल को दिल्ली आमंत्रित किया था.

मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग का विरोध करने के लिए ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के बाद मणिपुर मई की शुरुआत से ही हिंसा में घिर गया है. हिंसा में अब तक राज्य भर से 100 से अधिक मौतों की सूचना मिली है जबकि 300 से अधिक लोग अब तक घायल हुए हैं.

बाहरी मणिपुर के सांसद लोरहो एस. पोफोज़ के हवाले से कहा गया है, “हमने गृह मंत्री से कहा कि सामान्य स्थिति करने के लिए लोगों और सरकार के बीच बातचीत होनी चाहिए. जनता संवाद के लिए तभी आएगी जब उनका सरकार पर विश्वास होगा. लेकिन राज्य की जनता का बिरेन सिंह सरकार पर से भरोसा उठ गया है. वे पूरी स्थिति को संभालने में सक्षम नहीं थे.”

पोफोज़ ने कहा कि अगर सामान्य स्थिति जल्द से जल्द बहाल नहीं की गई तो राज्य में संघर्ष और बढ़ने की आशंका है. उन्होंने कहा कि इससे ​​राज्य को नुकसान होगा.

नागा भूमि का हनन नहीं होना चाहिए

मणिपुर में कुकी समुदाय का पहाड़ियों पर प्रभुत्व है, जबकि मैतेई समुदाय घाटी में बहुसंख्यक हैं, जिसमें इंफाल भी शामिल है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, राज्य की 28 लाख आबादी में मैतेई लगभग 15 लाख हैं, जबकि 8 लाख कुकी, 6 लाख नागा और मणिपुरी मुसलमानों सहित अन्य शामिल हैं.

बाहरी मणिपुर सांसद ने कहा कि नागा बड़े पैमाने पर पांच जिलों- उखरुल, सेनापति, तमेंगलोंग, चंदेल और टेंग्नौपाल में केंद्रित है. नोनी और कामजोंग में नागा भी रहते हैं.

पोफोज़ इस बात पर अड़े हुए हैं कि राज्य में भूमि के मुद्दे पर किसी भी परामर्श में नागाओं को भी शामिल किया जाना चाहिए.

उन्होंने कहा, “राज्य में पिछले कांग्रेस शासन के दौरान मणिपुर में पहाड़ियों में नए जिले बनाए गए थे. इनमें से कुछ नागा क्षेत्रों से तराशे गए थे. कुकी आदिवासी अब वहां रह रहे हैं. वे नागा क्षेत्रों से अलग किए गए क्षेत्रों में कुकी होमलैंड की मांग कर रहे हैं, जिसका नगाओं ने विरोध किया है.”

इस बीच नागा विधायक जंगमलुंग पनमेई, जो प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा भी थे. उन्होंने इसी मीडिया रिपोर्ट में बताया कि नागा शांतिप्रिय लोग हैं और उन्होंने संघर्ष में किसी का पक्ष नहीं लिया है.

उन्होंने कहा, “हम तटस्थ बने हुए हैं और हमने मैतेई या कुकी में से किसी का पक्ष नहीं लिया. हमने गृह मंत्री को बता दिया है कि हम चाहते हैं कि शांति बहाल हो और जमीन पर किसी भी चर्चा में हम सहित सभी हितधारक शामिल होने चाहिए.”

इस बीच, हिंसा के दौरान लूटे गए हथियारों और गोला-बारूद के बारे में बोलते हुए, पोफोज़ ने कहा कि केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को अब यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन सभी का हिसाब रखा जाए और वापस किया जाए.

दोनों प्रभावित समुदाय – कुकी और मैतेई एक दूसरे के खिलाफ आरोप लगा रहे हैं. कुकी दावा कर रहे हैं कि भीड़ को पुलिस स्टेशनों के अंदर से हथियार और गोला-बारूद लूटने की अनुमति दी गई थी, जबकि मैतेई दावा कर रहे हैं कि कूकी उग्रवादी हथियारों के साथ एसओओ (ऑपरेशन के निलंबन) शिविरों से बाहर आए हैं और हिंसा में भाग लिया है.

उन्होंने कहा, “हम चाहते हैं कि जो भी बेहिसाब हथियार लोगों के पास हैं उसे जल्द से जल्द जब्त कर लिया जाए, अन्यथा यह भविष्य में आंतरिक सुरक्षा में परेशानी ला सकता है.”

नहीं थम रही हिंसा

उधर राज्य में हिंसा की घटनाएं थमने का नाम नहीं ले रही है. शुक्रवार को राजधानी इंफाल में वेस्ट जिले के एक गांव खोकेन में शुक्रवार को सुरक्षाकर्मियों के भेष में आए उग्रवादियों ने तीन लोगों को तलाशी अभियान के बहाने उनके घर से बाहर बुलाया और उन पर गोली चला दी. जिसमें एक बुर्जुग महिला समेत तीनों लोगों की मौत हो गई.

यह हमला मणिपुर सरकार के सुरक्षा सलाहकार कुलदीप सिंह के यह कहने के कुछ देर बाद हुआ कि राज्य ने 48 घंटे से हिंसा नहीं देखी है. पिछले एक महीने से अधिक समय से जातीय संघर्षों ने राज्य को हिला कर रख दिया है.

ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि हमलावरों ने पुलिस और आईआरबी (इंडिया रिजर्व बटालियन) की वर्दी पहन रखी थी.

कुकी लोगों की बस्ती खोकेन गांव के निवासियों ने आरोप लगाया कि हथियारबंद लोग सुबह करीब 4 बजे आए और गांव में करीब दो घंटे तक रुके रहे और गोलियां चलाईं.

खोकेन इंफाल पश्चिम के साथ कांगपोकपी जिले की सीमा पर स्थित है। इंफाल पश्चिम जिले के अंतर्गत आने वाले संगाईथेल से यह गांव महज एक किलोमीटर की दूरी पर है.

खोकेन के निवासियों ने मारे गए तीनों लोगों की पहचान 65 वर्षीय डोमखोहोई, 52 वर्षीय खाइजामंग गुइते और 40 वर्षीय जंगपाओ तौथांग के रूप में की है.

वहीं इंडिजिनस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) ने आरोप लगाया कि यह हमला सेना की वर्दी में छिपे घाटी के विद्रोहियों द्वारा किया गया था. फोरम ने कहा कि मारे गए लोग आम नागरिक थे.

आदिवासी संगठन ने कहा, “कुकी-ज़ो के ग्रामीणों ने हमलावरों की असली पहचान पर संदेह नहीं किया और यह मानते हुए कि यह एक तलाशी अभियान था और उन्होंने गांव में जाने दिया लेकिन ऑटोमैटिक राइफल से फायरिंग हुई जिसके परिणामस्वरूप ग्रामीणों की दुखद मौत हो गई.”

इस बीच, केंद्रीय जांच ब्यूरो ने छह प्राथमिकी फिर से दर्ज की हैं और एक डीआईजी-रैंक अधिकारी के तहत एक विशेष जांच दल (SIT) का गठन किया है, जो मणिपुर में मैतेई और कुकी के बीच जातीय हिंसा से संबंधित मामलों की जांच के लिए है, जिसमें लगभग 100 लोगों की जान चली गई है. एसआईटी में 10 अधिकारी शामिल हैं.

भरोसा बहाली प्राथमिकता होनी चाहिए

फिलहाल मणिपुर में घाटी और पहाड़ी दोनों ही इलाकों में लोग एक दूसरे से बहुत नाराज़ नज़र आते हैं. उनके प्रतिनीधि जिस तरह की बातें कर रहे हैं उससे ऐसा लगता है कि कोई बीच का रास्ता निकलना मुश्किल है.

दोनों ही इलाकों के समुदायों के बीच एक गहरी खाई बन गई है. एक दूसरे पर वे विश्वास करने के लिए तैयार नहीं हैं. लेकिन उससे भी अफ़सोसनाक स्थिति यह है कि राज्य के मुख्यमंत्री पर राज्य की लगभग आधी आबादी भरोसा करने को तैयार नहीं है.

ऐसी सूरत में मुख्यमंत्री बिरेन सिंह की यह ज़िम्मेदारी है कि वे निष्पक्ष हो कर काम करें और यह निष्पक्षता नज़र भी आनी चाहिए.

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