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MP में आदिवासी अधिकार से ज़्यादा प्रतीकों और पहचान पर बीजेपी का दांव

आदिवासियों के अधिकारों से जुड़े कानूनों और योजनाओं को लागू करने में मध्य प्रदेश फ़िस्सडी राज्य है. राज्य सरकार पहचान और प्रतीकों के भरोसे आदिवासी वोट हासिल करने की फिराक में है.

मध्य प्रदेश में विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी सत्ता में बने रहने के लिए आदिवासी वर्ग के वोट बैंक को साधने में जुटी है. मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शुक्रवार को रीवा जिले में त्योंथर तहसील के तत्कालीन कोल जनजाति शासकों से जुड़े कोलगढ़ी किले के जीर्णोद्धार की आधारशिला रखी.

सीएम चौहान ने किले के जीर्णोद्धार कार्य का शिलान्यास करने के बाद किले के नजदीक कोल महासम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा, “कोलगढ़ी कोल समुदाय के लिए गर्व और स्वाभिमान की बात है. भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) हमेशा कोल समुदाय के गौरव के लिए काम करेगी. भाजपा ने रामायण में भगवान राम को बेर चढ़ाने वाली आदिवासी महिला शबरी और बिरसा मुंडा से प्रेरणा ली है… हम गढ़ी में शबरी और बिरसा मुंडा की मूर्तियां स्थापित करेंगे.”

दरअसल, राज्य सरकार द्वारा आदिवासी समुदाय के 3 हज़ार परिवारों को पट्टा वितरण के लिए यह कार्यक्रम आयोजित किया गया था.

शिवराज चौहान ने कहा, “कोल समुदाय उन लोगों में से है, जिन्होंने भगवान राम के वनवास के दौरान उनके लिए पत्तों से बनी झोपड़ी का निर्माण किया था. यह समुदाय भाजपा के बहुत करीब है.”

कोलगढ़ी आदिवासी कोल राजाओं के वैभवशाली शासन का प्रतीक है. कोलगढ़ी रीवा जिले के त्योंथर कस्बे के एक ऊंचे टीले पर टमस नदी के किनारे स्थित है. यहां का किला जर्जर हालत में है. सीएम ने इसके जीर्णोद्धार की घोषणा की थी.

राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक, बीजेपी इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में भील और गोंड के बाद राज्य में तीसरी सबसे अधिक आबादी वाली जनजाति, कोल का समर्थन हासिल करने की ओर देख रही है.

कोल समुदाय राज्य की जनजातीय आबादी का 11 फीसदी हिस्सा है और मुख्य रूप से विंध्य क्षेत्र में रहता है. विशेषज्ञों ने कहा कि भाजपा 2018 के विधानसभा चुनावों में अपने प्रदर्शन को दोहराना चाह रही है, जब उसने इस क्षेत्र की 30 में से 24 सीटें जीती थीं.

यह महासम्मेलन पिछले चार महीनों में राज्य में कोल समुदाय के लिए आयोजित इस तरह का दूसरा बड़ा आयोजन था. इससे पहले फरवरी में सतना जिले में ‘शबरी महाकुंभ’ का आयोजन किया गया था जिसमें केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह मुख्य अतिथि थे.

अमित शाह और सीएम चौहान ने कोल समुदाय के लिए कई योजनाओं की घोषणा की थी. जिसमें स्टार्ट-अप के लिए लोन सुविधा, कोल समुदाय के युवाओं का औद्योगिक प्रशिक्षण और समुदाय के सदस्यों के लिए छात्रावास की सुविधा शामिल थी.

विंध्य क्षेत्र के राजनीतिक विशेषज्ञ जयराम शुक्ला कहते हैं, ‘कोल समुदाय का विंध्य क्षेत्र की 15 सीटों पर प्रभाव है. इसका एक उदाहरण से अंदाजा लगाया जा सकता है कि 2008 में रामगरीब कोल ने रीवा की त्योंथर सीट से चुनाव लड़ा था और बसपा प्रत्याशी के तौर पर जीत हासिल की थी. भाजपा उन्हें लुभाने की कोशिश कर रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि वे कम से कम 24 सीटें जीतें.”

उन्होंने आगे कहा, “एंथ्रोपोलॉजिस्ट वाल्टर जी ग्रिफिथ्स ने अपनी किताब में कहा था कि कोल मध्य भारत के हैं लेकिन शबरी माता दक्षिण भारत की हैं. फिर भी भाजपा कोल को भगवान राम से जोड़ रही है. मुख्यमंत्री हमेशा अपने भाषणों में कोल समुदाय और भगवान राम का संदर्भ देते हैं.”

बीजेपी प्रवक्ता रजनीश अग्रवाल ने कहा, ‘बीजेपी सभी समुदायों के कल्याण के लिए काम कर रही है. कांग्रेस के विपरीत, हम हर गरीब और वंचित परिवारों तक पहुंच रहे हैं. हम केवल अपनी विचारधारा का पालन कर रहे हैं.’

हालांकि, कांग्रेस ने कहा कि सत्तारूढ़ भाजपा अपने “एजेंडे” में विफल रहेगी. राज्य कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता जेपी धनोपिया ने कहा, ‘बीजेपी इतिहास को तोड़-मरोड़ कर कोल मतदाताओं को लुभाना चाहती है. हम शबरी माता और रामायण का सम्मान करते हैं लेकिन इस तरह के बयान देकर कि शबरी माता कोल समुदाय से हैं और उन्होंने भगवान राम के लिए झोपड़ी बनाई थी, राजनीतिक लाभ के लिए एक एजेंडा के अलावा कुछ नहीं है.”

आदिवासी वोटबैंक पर नज़र

राज्य विधानसभा चुनाव से पहले दोनों प्रमुख राजनीतिक दल जोर-शोर से तैयारियों में जुट गए हैं. दोनों ही राजनीतिक दलों की निगाहें आदिवासी वोटर्स पर टिकी हैं. क्योंकि ऐसा माना जाता है कि मध्य प्रदेश में आदिवासी वर्ग जिसके साथ खड़ा होता है उसी पार्टी की सरकार बनती है.

इसलिए मध्य प्रदेश कांग्रेस के तमाम बड़े नेता लगातार आदिवासी इलाकों में दौरे करके 2018 के प्रदर्शन को बरकरार रखना चाहते हैं. वहीं कांग्रेस के इस किले में बीजेपी सेंधमारी की कोशिश कर रही है. राज्यसभा सांसद और कद्दावर आदिवासी नेता डॉ. सुमेर सिंह सोलंकी 20 जून को निमाड़ के महेश्वर में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन करने जा रहे हैं.

बताया जा रहा है इस रथयात्रा में एक लाख से अधिक श्रद्धालु शामिल होंगे. इनमें बड़ी संख्या में मालवा-निमाड़ के जनजातीय वर्ग के लोग होंगे, जो परंपरागत वेशभूषा में इस रथ यात्रा में शामिल होंगे.

मध्य प्रदेश का किंगमेकर है मालवा-निमाड़

दरअसल, प्रदेश की सत्ता के लिए मालवा-निमाड़ सबसे अहम होता है. ऐसे में बीजेपी ने यहां खास प्लान बना रखा है. क्योंकि ये वो इलाका है जहां से राजधानी भोपाल का रास्ता तय होता है यानि मालवा-निमाड़ को प्रदेश की सत्ता की चाबी कहा जाता है.

क्योंकि छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद से ही मालवा-निमाड़ मध्य प्रदेश का एक तरह से किंगमेकर बनकर उभरा है. इस ज़ोन में जिस पार्टी को यहां कामयाबी मिलती है, प्रदेश की सत्ता पर उसी का राजतिलक होता है. पिछले पांच विधानसभा चुनावों के नतीजे तो यही कहते हैं.

मालवा-निमाड़ में विधानसभा की 66 सीटें

मालवा-निमाड़ में विधानसभा की 66 सीटें आती हैं, 2018 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी की हार की सबसे बड़ी वजह यही रहा था. क्योंकि फिलहाल यहां की 66 सीटों में से सबसे ज्यादा 35 सीटों पर कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी जबकि बीजेपी को केवल 28 सीटें मिली थी. जिससे कांग्रेस 15 साल बाद प्रदेश की सत्ता वापसी में सफल रही थी.

जबकि 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मालवा-निमाड़ को एकतरफा जीतते हुए 57 सीटों पर अपना कब्जा किया था. वहीं कांग्रेस को केवल 9 सीटें मिली थी. जिससे बीजेपी को बंपर बहुमत मिला था.

2013 और 2018 के नतीजों के आधार पर सीटों का यही बड़ा अंतर बीजेपी और कांग्रेस की सरकारें बनवाने में अहम साबित हुआ था. लिहाजा भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए मालवा-निमाड़ सबसे महत्वपूर्ण साबित होता रहा है.

मालवा निमाड़ पश्चिमी मध्य प्रदेश के इंदौर और उज्जैन संभागों में फैला है और इस अंचल में आदिवासी और किसान तबके के मतदाताओं की संख्या सबसे ज्यादा है.

मध्य प्रदेश में कुल 47 विधानसभा सीटें आदिवासी वर्ग के लिए आरक्षित हैं, जिनमें सबसे ज्यादा मालवा-निमाड़ में आती हैं. पिछले चुनाव में इन सीटों पर बीजेपी को नुकसान हुआ था लेकिन इस बार पार्टी यहां बूथ मैनेजमेंट को फिर मजबूत करना चाहती है.

2018 विधानसभा चुनाव में एसटी आरक्षित 47 सीटों में से 30 सीटों पर कांग्रेस के प्रत्याशियों ने जीत हासिल की थी. इसके दम पर ही कांग्रेस 2018 में सत्ता पर काबिज हुई थी.

ऐसे में एक तरफ कांग्रेस पार्टी पिछले चुनाव में हाथ आई इन सीटों को हरगिज भी निकलने देने के मूड में नहीं है. वहीं दूसरी तरफ बीजेपी की कोशिश है कि वो इन सीटों पर फिर से कब्जा कर सके.

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