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आजादी के बाद पहली बार छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित गांव में आदिवासियों को मिले वोटर कार्ड

प्रशासन ने माओवाद के केंद्र में बसे आदिवासियों के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र बनवाए ताकि वे छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकें.

छत्तीसगढ़ के रायपुर से लगभग 380 किलोमीटर दक्षिण में बस्तर के सुदूर माओवाद प्रभावित बीजापुर जिले में रहने वाले आदिवासियों को अपना पहला पहचान पत्र प्राप्त हुआ है.

आज़ादी के 75 साल बाद दूरदराज के इलाके में स्थित गमपुर गांव के 233 आदिवासियों को पहली बार उनका मतदाता पहचान पत्र जारी किया गया.

बीजापुर प्रशासन के लिए गमपुर के निवासियों तक पहुंचना आसान काम नहीं था. यहां संपर्क और संचार के साधनों का नितांत अभाव है. गांव के ज़्यादातर लोगों ने स्कूल का मुंह तक नहीं देखा है.

इस गांव में कोई भी परिवार ऐसा नहीं मिला जिसके पास मोबाइल फोन मौजूद है. यहां पर प्रशासन आज भी सभी परिवारों को आधार कार्ड उपलब्ध नहीं करा पाया है.

बीजापुर कलेक्टर राजेंद्र कटारा ने मीडिया से कहा, “मतदाता सूची में नाम दर्ज होने के बाद गमपुर के ग्रामीण अब अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकते हैं. हम स्थानीय साप्ताहिक हाट बाजार जैसे सुविधाजनक स्थानों पर शिविरों का आयोजन करके माओवादियों के गढ़ों में ऐसे स्थानों तक पहुंचने की कोशिश कर रहे हैं जहां ग्रामीण अच्छी संख्या में समूहों में आते हैं.”

प्रशासन ने माओवाद के केंद्र में बसे आदिवासियों के लिए चुनाव आयोग द्वारा जारी मतदाता पहचान पत्र बनवाए ताकि वे छत्तीसगढ़ में इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों में मतदान कर सकें.

वैसे प्रशासन का दावा है कि आईडी कार्ड के अलावा, ग्रामीणों को आधार, राशन, आयुष्मान और श्रमिक कार्ड भी जारी किए गए.

गमपुर गांव में नक्सली सरकारी पहचान पत्र का विरोध करते हैं इसलिए उनके डर से कई ग्रामीण कार्ड बनवाने के लिए नहीं आ रहे थे. अब फोर्स की मौजूदगी से परिस्थितियां बदली हैं तो लोग पहचान पत्र बनवाने के लिए आ रहे हैं.

बीजापुर जिला प्रशासन के मुताबिक अभी भी ऐसे आदिवासी गांव हैं जहां लोगों के पास वोटर आईडी कार्ड नहीं है. यह खोए हुए पहचान प्रमाण या वामपंथी चरमपंथियों के बढ़ते प्रभाव के कारण हो सकता है.

प्रशासन उन तक भी पहुंचने की योजना बना रहा है. चुनाव बहिष्कार की माओवादियों की चुनौती के बावजूद उन्हें नामांकित करने के प्रयास जारी हैं.

बीजापुर के अधिकारियों ने स्वीकार किया कि जिले की 40 प्रतिशत से अधिक वामपंथी चरमपंथियों के प्रभाव में है नतीजतन किसी भी कार्यक्रम या योजना को माओवादियों से निहित सहमति की आवश्यकता होती है.

बस्तर में एक शिविर तक पहुंचने के लिए स्थानीय जनजातियां अक्सर 20 से 25 किलोमीटर की दूरी तय करती हैं. बीजापुर के गमपुर आदिवासियों को दंतेवाड़ा जिले से सटे किरंदुल में शिविर में भाग लेना था.

इस बात में कोई दो राय नहीं है कि लोकतंत्र में सभी नागरिकों की वोट मायने रखती है. लेकिन प्रशासन माओवादी इलाकों में सिर्फ वोटर कार्ट बना कर यह नहीं मान सकता है कि वहां लोग वोट भी डाल पाएँगे.

इसके अलाव प्रशासन की अन्य योजनाओं का लाभ पहुंचाना भी माओवादी इलाकों में आसान काम नहीं है.

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