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आंध्र प्रदेश : PVTG में शामिल होने के लिए डिडायी समुदाय का संघर्ष

अल्लूरी सीताराम राजू जिले में डिडायी समुदाय को परजा या पोरजा जनजाति के हिस्से के रूप में दर्ज किया गया है. पर यह समुदाय लंबे समय से पीवीटीजी में शामिल होने की मांग कर रहा है.

आदिवासी समुदायों को जनजाति की सूचि में शामिल करने की प्रक्रिया देश में लंबे समय से विवाद और बहस का विषय रही है. हाल के दिनों में यह बहस काफ़ी तेज हुई है.

इस बहस के बीच आंध्र प्रदेश (Andhra Pradesh) के आदिवासी बहुल अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले (Alluri sitaraman raju district) में डिडायी समुदाय ने अपनी पीड़ा दर्ज कराई है.

बल्कि यह कहना सही होगा कि लंबे समय से यह समुदाय खुद को जनजाति की सूचि में सही जगह दिलाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले में डिडायी समुदाय (Didayi tribe) को परजा या पोरजा जनजाति (poraja community) के हिस्से के रूप में दर्ज किया गया है. लेकिन पड़ोसी राज्य ओडिशा में डिडायी को विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति (PVTGs) की सूचि में शामिल किया गया है.

डिडायी समुदाय के अलावा पेंगु आदिवासी द्वारा भी लंबे समय से पीवीटीजी में शामिल होने की मांग की जा रही है.

आंध्र प्रदेश के इस ज़िले में डिडायी समुदाय का कहना है कि वे लोग पश्चिम घाट (Western Ghats) के बाकी आदिवासियों से अलग है. उनकी भाषा, संस्कृति भी बाकी आदिवासियों से अलग है. इसके अलावा भौगोलिक और आर्थिक रूप से पिछड़े हुए है.

आंध्र प्रदेश में रहने वाली जनजातियों में से 6 समुदायों को पीवीटीजी की श्रेणी में रखा गया है. जिनमें से चार पीवीटीजी समुदाय राज्य के अल्लूरी सीताराम राजू ज़िले में रहे रहें हैं.

डिडायी समुदाय की भौगोलिक स्थिति

डिडायी आदिवासी रंगबयालु पहाड़ी श्रृंखला में रहते हैं. इस पूरे क्षेत्र में 11 आदिवासी गाँव है. जिसमें 1900 से 2000 डिडायी आदिवासी रहते हैं. इसके अलावा लक्ष्मीपुरम पहाड़ी श्रृंखला में पेंगु आदिवासी रहते हैं. इस पूरी श्रृंखला के 14 गाँव में पेंगु आदिवासी निवास कर रहे हैं जिनकी कुल जनसंख्या 2400 बताई गई है.

इन दोनों ही आदिवासी इलाकों में कोई भी सड़क मौजूद नहीं है और सबसे पास की सड़क गाँव से 18 किलोमीटर दूर है.

मुख्यधारा से दूर होने की वज़ह इन आदिवासियों को कई सरकारी कल्याण योजनाओं से वंचित रहना पड़ता है.

MBB ने इस ज़िले के अलावा ओडिशा के कई डिडायी आदिवासी इलाकों से रिपोर्ट की हैं. इस दौरान हमारी टीम ने यह पाया है कि ये आदिवासी अभी भी मुख्य धारा से कटे हुए हैं.

इन आदिवासियों की बस्ती दुर्गम पहाड़ी इलाकों में होने की वजह से सरकारी अधिकारी या अन्य ज़िम्मेदार लोग या फिर मीडिया भी इन बस्तियों तक जाने में हिचकती है.

इस समुदाय में भीषण ग़रीबी और कुपोषण व्याप्त है.

डिडायी समुदाय की भाषा कैसे है अलग

डिडायी समुदाय की भाषा अन्य समुदाय की भाषा से काफी अलग है. इनकी भाषा तीन अलग अलग भाषाओं से मिलकर बनी है. जिनमें मुंडारी(ऑस्ट्रो-एशियाई, तेलगु और ओड़िया (ओडिशा की भाषा) शामिल है.

अक्सर भक्ता और गदबा या गडबा आदिवासियों द्वारा डिडायी समुदाय के साथ भेदभाव किया जाता है. क्योंकि ये माना जाता है की पोरजा समुदाय आदिवासियों में सबसे नीचे स्तर पर आते हैं.

क्या डिडायी को पीवीटीजी में शामिल किया जा सकता है?

किसी आदिवासी समुदाय को पीवीटीजी समुदायों की सूचि में डालने के लिए कुछ मापदंड तय हैं. मसलन उनके उत्पादन के औज़ार और तकनीकि अभी भी पुरातन हो. वे अभी भी खेती में निपुण नहीं हो. इसके अलावा उनमें साक्षरता का स्तर काफी कम हो और मुख्यधारा से वे अभी भी कटे हुए हो.

इन सभी मानकों पर डिडायी समुदाय को पीवीटीजी का दर्जा दिया जा सकता है. लेकिन आंध्र प्रदेश के अल्लुरी सीताराम राजू ज़िले के डिडायी समुदाय का ही मामला ऐसा नहीं है.

बल्कि कई राज्यों में इस तरह की शिकायतें मिलती हैं जहां आदिवासी समुदायों को जनजाति की सूचि में शामिल नहीं किया गया है या फिर उन्हें पीवीटीजी का दर्जा नहीं दिया गया है.

मसलन डिडायी को ओडिशा में पीवीटीजी की सूचि में रखा गया है लेकिन दुरवा आदिवासियों को अनुसूचित जनजाति भी नहीं माना गया है. वहीं छत्तीसगढ़ में दुरवा आदिवासी पीवीटीजी की लिस्ट मे शामिल हैं.

कुल मिलाकर यह एक ऐसा मसला है जिस पर संसद में विस्तार से चर्चा की ज़रूरत हैं. तभी इस मसले का कोई उचित हल मिल सकता है.

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