HomeAdivasi DailyAssembly Election 2023: तेलंगाना के लिए मोदी सरकार के चार अधूरे वादे

Assembly Election 2023: तेलंगाना के लिए मोदी सरकार के चार अधूरे वादे

संयुक्त आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद एपी पुनर्गठन अधिनियम 2014 की 13वीं अनुसूची के तहत भारत सरकार को "आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य में एक-एक जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करना" है.

भारतीय जनता पार्टी (BJP) के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने भारत के सबसे युवा राज्य, तेलंगाना (Telangana) की बेहतरी के लिए धन मुहैया कराने और संस्थान स्थापित करने के कई वादे किए थे.

अब अपने गठन के नौ साल बाद तेलंगाना 30 नवंबर को अपने तीसरे विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है. लेकिन नागरिक समूहों और भारत राष्ट्र समिति (Bharat Rashtra Samithi) के नेतृत्व वाली राज्य सरकार के विरोध के बावजूद इनमें से कई वादे पूरे नहीं किए गए हैं.

आइए, भाजपा की केंद्र सरकार द्वारा किए गए चार वादों पर नज़र डालते हैं जो अभी तक साकार नहीं हुए हैं और इन परियोजनाओं की स्थिति क्या है.

मुलुगु जिले में जनजातीय विश्वविद्यालय

इस साल 4 अक्टूबर को केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कहा कि वह तेलंगाना के आदिवासी बहुल जिले मुलुगु में सम्मक्का सरक्का केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय (Sammakka Sarakka Central Tribal University) की स्थापना के लिए केंद्रीय जनजातीय विश्वविद्यालय अधिनियम में संशोधन करेगा. यह वादा कई बार किया गया है. यहां तक कि अक्टूबर 2023 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सार्वजनिक बैठक में भी इसकी चर्चा की.

संयुक्त आंध्र प्रदेश के विभाजन के बाद एपी पुनर्गठन अधिनियम 2014 की 13वीं अनुसूची के तहत भारत सरकार को “आंध्र प्रदेश और तेलंगाना राज्य में एक-एक जनजातीय विश्वविद्यालय स्थापित करना” है.

हालांकि, आंध्र प्रदेश को अपना विश्वविद्यालय मिल गया लेकिन तेलंगाना को अब तक नहीं मिला है. केंद्र सरकार पर लापरवाही का आरोप लगाते हुए अनुसूचित जनजाति समूहों द्वारा कई विरोध प्रदर्शन किए गए, विशेष रूप से आदिलाबाद जिले में…

5 अक्टूबर को अपने बयान में, केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय ने कहा कि नया विश्वविद्यालय से “न केवल राज्य में उच्च शिक्षा की पहुंच और गुणवत्ता में सुधार होगा बल्कि राज्य में आदिवासी आबादी के लाभ के लिए आदिवासी कला, संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान प्रणालियों में शिक्षण और अनुसंधान सुविधाएं प्रदान करके उच्च शिक्षा के अवसरों को भी बढ़ावा मिलेगा. यह नया विश्वविद्यालय अतिरिक्त क्षमता भी सृजित करेगा और क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने का प्रयास करेगा.”

हालांकि, इस वादे को अभी भी संदेह की दृष्टि से देखा जाता है क्योंकि यह काफी वक्त से लंबित है.

निज़ामाबाद में हल्दी बोर्ड

मार्च 2023 में निज़ामाबाद में हल्दी किसानों ने क्षेत्र में हल्दी बोर्ड की स्थापना के अपने चुनावी वादे को पूरा करने में विफल रहने के लिए भाजपा के निज़ामाबाद के सांसद अरविंद धर्मपुरी का मज़ाक उड़ाते हुए कई होर्डिंग्स लगाए थे. किसानों ने सांसद को उनके द्वारा किए वादे को याद दिलाने के लिए पूरे निज़ामाबाद में पीले रंग के होर्डिंग्स लगाए थे. 

तेलुगू में होर्डिंग पर लिखा था, “हमारे माननीय निज़ामाबाद सांसद द्वारा लाया गया हल्दी बोर्ड.”

दरअसल, 2019 के संसद चुनावों के दौरान अरविंद धर्मपुरी ने केंद्रीय मंत्री राजनाथ सिंह और राम माधव के साथ निज़ामाबाद के हल्दी किसानों के लिए एक हल्दी बोर्ड स्थापित करने का वादा किया था.

वहीं 1 अक्टूबर 2023 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने तेलंगाना के महबूबनगर जिले में घोषणा की कि केंद्र सरकार तेलंगाना में एक राष्ट्रीय हल्दी बोर्ड की स्थापना करेगी. तेलंगाना में हल्दी किसानों के कल्याण के लिए बोर्ड की स्थापना राज्य के गठन के बाद भाजपा नेताओं द्वारा किया गया एक वादा था.

बोर्ड की स्थापना में केंद्र सरकार की देरी के खिलाफ किसानों ने वर्षों तक विरोध प्रदर्शन किया.  2021 में निज़ामाबाद जिले में तेलंगाना के किसानों ने भाजपा के हल्दी बोर्ड स्थापित करने के वादे के बाद तमिलनाडु विधानसभा चुनावों के लिए भाजपा के चुनाव घोषणापत्र की प्रतियां जला दी थीं.

तेलंगाना अपने पड़ोसी राज्य महाराष्ट्र के बाद हल्दी का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है. बोर्ड की स्थापना से देश में हल्दी की खेती और हल्दी उत्पादों के विकास में मदद मिलने की उम्मीद है.

यह घोषणा केंद्र सरकार की ओर से हुई है. कृषि अधिकार कार्यकर्ताओं और विपक्षी नेताओं ने भाजपा के ट्रैक रिकॉर्ड को देखते हुए इस वादे को भी पूरा होने पर संदेह व्यक्त किया है.

हनुमाकोंडा जिले में काजीपेट कोच फैक्ट्री

तेलंगाना की सरकारें हनुमाकोंडा जिले के काजीपेट में रेल कोच फैक्ट्री स्थापित करने में विफलता के लिए केंद्र सरकार को दोषी ठहराती रही हैं.

फैक्ट्री स्थापित करने का वादा पहली बार 1980 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के कार्यकाल के तहत किया गया था. हालांकि, तब से विभिन्न केंद्र सरकारें इस पर पीछे हट गई हैं.

यह वादा तेलंगाना राज्य की स्थापना के बाद आंध्र प्रदेश राज्य पुनर्गठन अधिनियम की 13वीं अनुसूची, धारा 93 में भी किया गया था लेकिन तब से केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा भी इसे पूरा करने में विफल रही है.

भाजपा ने तेलंगाना के निवासियों को आश्वासन दिया कि फैक्ट्री स्थापित किया जाएगा और 2014 में तेलंगाना चुनाव से पहले अपने घोषणा पत्र में भी यह वादा जोड़ा था. हालांकि, एक दशक बाद भी यह वादा अधूरा है.

जुलाई 2023 में बीआरएस के कार्यकारी अध्यक्ष केटी रामाराव ने पीएम मोदी की आलोचना की और उनसे विभाजन अधिनियम के तहत राज्य में लोगों के प्रति प्रतिबद्धताओं को पूरा करने में विफल रहने के लिए तेलंगाना के मतदाताओं से माफी मांगने को कहा.

उन्होंने कहा था, “पीएम मोदी ने तेलंगाना को रेल कोच फैक्ट्री देने से इनकार कर दिया लेकिन गुजरात में 21,000 करोड़ रुपये की लागत से एक फैक्ट्री स्थापित की.”

आदिलाबाद जिले में सीमेंट प्लांट को फिर से खोलना

अक्टूबर 2023 में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की यात्रा से पहले आदिलाबाद में सीमेंट कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया के तहत सीमेंट फैक्ट्री को फिर से खोलने के लिए कई पोस्टर दिखाई दिए.

पोस्टर पर लिखा था, “सीमेंट कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया को फिर से खोलें, अमित शाह जी, तुरंत जवाब दें.”

1996 में फैक्ट्री का परिचालन बंद कर दिया था और 2008 में बंद कर दिया गया था.

कंपनी के असंतुष्ट कर्मचारियों ने अमित शाह के काफिले को भी रोकने की कोशिश की जिन्होंने 2018 में एक चुनावी रैली को संबोधित करते हुए कारखाने को फिर से खोलने का वादा किया था.

हालांकि, मई 2022 में सीसीआई ने इलेक्ट्रॉनिक टेंडरिंग सिस्टम (ईटीएस) के माध्यम से एक ऑनलाइन इलेक्ट्रॉनिक बोली जारी की जिसमें आदिलाबाद की शाखा की टाउनशिप के प्लांट की संरचना के साथ मशीनरी, स्टोर और स्क्रैप और डिस्मेंटलिंग क्वार्टरों के निपटान के लिए आवश्यक संपत्तियों के मूल्यांकन के लिए मूल्यांकनकर्ताओं की नियुक्ति के लिए आमंत्रित किया गया.

आदिलाबाद सीसीआई यूनिट की संपत्तियों को ख़त्म करने के फैसले का बीआरएस ने कड़ा विरोध किया.

कारखाने को फिर से खोलने की कई दलीलों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया. केटीआर ने मई 2022 में केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय को पत्र लिखा था. उन्होंने इसी साल जनवरी में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को भी इसी तरह की मांग के साथ पत्र लिखा था.

चुनावी माहौल

तेलंगाना में भी सत्ता संघर्ष बाकी चुनावी राज्यों जैसा ही है. बीआरएस की KCR सरकार को बीजेपी और कांग्रेस से चुनौती मिल रही है. लेकिन कोई भी इस स्थिति में नहीं है जो पछाड़ कर अपनी जीत का दावा करे. केसीआर की सत्ता के लिए भी चुनावी जोखिम वैसा ही जैसा सभी चुनावों में होता है.

तेलंगाना में मतदान 30 नवंबर को है. यहां 2018 में हुए विधानसभा चुनाव में BJP का वोट शेयर महज 6.98 फीसदी था और उसने सिर्फ 1 सीट जीती थी. लेकिन लोकसभा चुनाव में वोट शेयर 19.65 फीसदी हो गया था.

वोट शेयर में इतनी बड़ी बढ़ोतरी महज दो से तीन महीने में ही हुई. भाजपा ने लोकसभा चुनाव में तेलंगाना में 4 सीटों पर जीत दर्ज की थी. इसके बाद 2020 में ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनावों में 150 नगरपालिका डिवीजनों में से 48 में जीत हासिल की.

बीजेपी ने सभी 119 निर्वाचन क्षेत्रों पर अपने उम्मीदवार खड़े किए हैं. हर सीट पर प्रत्याशी के होने से माना जा रहा है कि कई सीटों पर जहां बीआरएस और कांग्रेस बीच कड़ी टक्कर है, वहां बीजेपी के वोट काटने से कांग्रेस प्रत्याशी फंस सकते हैं. हालांकि असली नतीजे तो 3 दिसंबर को ही पता चलेंगे.

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