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जीवन भर बहिष्कार झेलने वाली ‘नेहरू की आदिवासी पत्नी’, अब उठी स्मारक बनाने की मांग

स्थानीय राजनेताओं और अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग बुधनी मंझियाइन को अंतिम विदाई देने के लिए आए. वहां मौजूद कई लोगों ने बुधनी को ‘देश के पहले प्रधानमंत्री की पहली आदिवासी पत्नी' बताया.

पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू की ‘आदिवासी पत्नी’ कही जाने वाली बुधनी मंझियाइन का निधन हो गया है. वह 80 साल की थीं. झारखंड के एक गांव में जीवनभर बहिष्कार का दंश झेलने वाली बुधनी के स्मारक बनाने की चर्चा हो रही है.

बीते शुक्रवार की रात बुधनी इस दुनिया से विदा हो गईं. वो पिछले करीब 64 साल से से अपनी ही जाति-समाज में बहिष्कार का दंश झेल रही थीं.

दरअसल, झारखंड के धनबाद ज़िले में एक आदिवासी गांव है खोरबोना. 1959 में पंचेत बांध का उद्घाटन करने के लिए पंडित नेहरू आ रहे थे. बांध निर्माण कंपनी दामोदर वैली कॉर्पोरेशन के अ‍फसरों ने मंच के पास नेहरू का स्वागत करने के लिए खोरबोना गांव की ही 16 साल की लड़की बुधनी मंझियाइन को खड़ा कर दिया.

नेहरू को बुधनी ने माला पहनाई, जिसे उन्‍होंने अपने गले से निकालकर बुधनी को पहना दिया. जब बटन दबाकर बांध के उद्धाटन की बात आई तो पंडित नेहरू ने बुधनी को ही मंच पर बुला लिया और उससे बटन दबवाया.

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने उन्हें सम्मान के तौर पर फूलों का हार पहना दिया था. लेकिन इसके बाद बुधनी का काफी विरोध किया गया और बहिष्कार कर दिया गया.

कौन थी बुधनी?

बुधनी संथाल जनजाति से ताल्लुक रखती थीं. इस समुदाय के लोगों का मानना है कि नेहरू ने बुधनी को माला पहनाई थी इसलिए उनकी शादी नेहरू से हो गई है. समुदाय के बाहर शादी होने की वजह से समुदाय के लोगों ने उन्हें बहिष्कृत कर दिया था. इस वजह से पंचेत बांध के उद्घाटन के समय प्रधानमंत्री नेहरू ने जो हार पहनाया था वो बुधनी के लिए अभिशाप बन गया.

संथाल आदिवासी समुदाय में में किसी पुरुष का महिला या लड़की को माला पहनाने को शादी मान लेते थे. उस वक्त समुदाय के बाहर शादी करने पर समाज से बहिष्कार कर दिया जाता था.

ऐसे में तत्कालीन पीएम नेहरू के माला पहनाने को आदिवासी समुदाय ने शादी माना. समुदाय से बाहर एक गैर-आदिवासी से ‘शादी करने’ की वजह से बुधनी मंझियाइन को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया. इतना ही नहीं बुधनी की गांव में एंट्री भी बैन थी. वह गांव के बाहर ही एक टूट-फूटे मकान में अपनी बेटी रत्ना के साथ रहती थीं.

अंतिम विदाई देने के लिए उमड़ी भीड़

स्थानीय राजनेताओं और अधिकारियों सहित सैकड़ों लोग बुधनी मंझियाइन को अंतिम विदाई देने के लिए आए. वहां मौजूद कई लोगों ने बुधनी को ‘देश के पहले प्रधानमंत्री की पहली आदिवासी पत्नी’ बताया.

वहां मौजूद लोगों ने स्थानीय पार्क में नेहरू की मौजूदा मूर्ति के बगल में बुधनी के सम्मान में एक स्मारक बनाने की मांग की है. उन्होंने बुधनी की बेटी रत्ना (60) के लिए पेंशन की भी मांग की. हालांकि, अभी तक स्मारक बनाने की मांग को लेकर कोई फैसला नहीं किया गया है.

पंचेत पंचायत के मुखिया भैरव मंडल और अन्य लोगों ने स्थानीय डीवीसी कॉलोनी में रत्ना के लिए स्मारक और एक घर के बारे में डीवीसी प्रबंधन को लिखा है. डीवीसी दामोदर घाटी निगम, सार्वजनिक उपक्रम है, जिसके तहत बांध बनाया गया था. रत्ना का बेटा बापी (35) डीवीसी में अकाउंटेंट है.

पंचेत में डीवीसी के उप मुख्य अभियंता सुमेश कुमार ने कहा कि स्मारक या अन्य मांगों पर अब तक कोई निर्णय नहीं लिया गया है. कुमार ने कहा कि ‘ये निर्णय शीर्ष अधिकारियों से परामर्श के बाद ही लिए जा सकते हैं.’

बुधनी के जीवन में उतार-चढ़ाव

बताया जाता है कि बुधनी के जीवन में उतार-चढ़ाव 1952 में शुरू हुआ. बांध के निर्माण के दौरान उनकी पुश्तैनी जमीन डूब गई. उसके पास जमीन के अलावा आय का कोई स्रोत नहीं था. हालांकि बुधनी ने इसके बाद भी हार नहीं मानी. उसने बांध निर्माण के दौरान मजदूरी की. बुधनी पहली ठेका मजदूरों में से थी.

फिर 5 दिसंबर 1959 को उद्घाटन के समय नेहरू के माला पहनाने के साथ ही परेशानियां फिर से शुरू हो गईं. डीवीसी प्रबंधन ने नेहरू के स्वागत के लिए संथाली व्यक्ति रावण मांझी के साथ बुधनी को भी चुना था. स्थानीय मान्यता है कि बुधनी ने बांध चालू करने के लिए बटन दबाया था.

1962 में बुधनी को कई अन्य डीवीसी अनुबंध श्रमिकों के साथ हटा दिया गया था. वह पड़ोसी राज्य बंगाल के पुरुलिया में साल्टोरा चली गईं और दिहाड़ी मजदूर के रूप में मेहनत करने लगीं. वहां बुधनी की मुलाकात एक कोलियरी में ठेका कर्मचारी सुधीर दत्ता से हुई, जिसने उसे आश्रय दिया और बाद में उससे शादी कर ली.

1985 में जब राजीव गांधी प्रधानमंत्री के रूप में बंगाल के आसनसोल गए तो एक स्थानीय कांग्रेस नेता ने बुधनी से उनकी मुलाकात कराई और उन्होंने अपनी आपबीती सुनाई. इसके बाद बुधनी को डीवीसी में नौकरी मिल गई जहां से वह 2005 में सेवानिवृत्त हो गईं.

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