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मणिपुर: लावारिस शवों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करें सरकार- सुप्रीम कोर्ट पैनल

शवों के दावे और निपटान का सवाल मौजूदा संघर्ष में सबसे संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दों में से एक रहा है. संघर्ष के लगभग पांच महीने बाद हिंसा के पहले कुछ दिनों में मारे गए लोगों में से कई के शव राज्य के तीन प्रमुख मुर्दाघरों - इंफाल में जेएनआईएमएस और रिम्स, और चुराचांदपुर जिला अस्पताल में लावारिस पड़े हुए हैं.

मई की शुरुआत से जातीय संघर्ष में उलझे मणिपुर के मुर्दाघरों में सैकड़ों शव लावारिस पड़े हैं. सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित पूर्व न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति ने सलाह दी है कि राज्य सरकार मृतकों की एक सूची प्रकाशित करे ताकि उनके नजदीकी संबंधियों की पहचान की जा सके और अगर कोई आगे नहीं आता है तो शवों का “सम्मानजनक तरीके” से अंतिम संस्कार करें.

पिछले हफ्ते मणिपुर पुलिस ने खुलासा किया था कि मुर्दाघर में 96 शव लावारिस पड़े हुए हैं. क्योंकि पुलिस ने मारे गए लोगों की संख्या 175 बताई है तो इससे पता चलता है कि आधे से ज्यादा मृतकों को अभी भी दफनाया जाना बाकी है.

सुप्रीम कोर्ट ने पिछले महीने मणिपुर में हिंसा के मानवीय पहलुओं को देखने के लिए सेवानिवृत्त जम्मू-कश्मीर हाई कोर्ट की मुख्य न्यायाधीश गीता मित्तल की अध्यक्षता में हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीशों की तीन सदस्यीय समिति का गठन किया था.

दरअसल, शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट में प्रस्तुत एक हलफनामे में मणिपुर के मुख्य सचिव विनीत जोशी ने राज्य द्वारा अपनी पीड़ित मुआवजा योजना को अपग्रेड करने के लिए किए गए उपायों के साथ-साथ समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट में शामिल कुछ पहलुओं को सूचीबद्ध किया.

हलफनामे के मुताबिक, समिति द्वारा दिए गए सुझावों में से एक यह है कि राज्य सरकार संघर्ष में मारे गए लोगों की सूची प्रकाशित और प्रसारित करे और “परिजनों की जल्द पहचान” करने की कोशिश करें. साथ ही यह सुनिश्चित करें कि उन्हें निर्धारित अनुग्रह भुगतान प्राप्त हो.

अगर यह कोशिश सफल नहीं होती है तो समिति ने सलाह दी है कि जिला कलेक्टर उचित क्षेत्रों की पहचान करें और “शवों का सम्मानजनक तरीके से अंतिम संस्कार करें.”

यह सुझाव समिति ने 8 सितंबर को हुई अपनी नौवीं बैठक में दिया था.

हलफनामे में कहा गया है, “राज्य सरकार उक्त मुद्दे पर तीन-न्यायाधीशों की समिति के साथ बारीकी से समन्वय कर रही है क्योंकि यह एक संवेदनशील मुद्दा है और इसे नाजुक ढंग से निपटने की जरूरत है.”

शवों के दावे और निपटान का सवाल मौजूदा संघर्ष में सबसे संवेदनशील और विवादास्पद मुद्दों में से एक रहा है. संघर्ष के लगभग पांच महीने बाद हिंसा के पहले कुछ दिनों में मारे गए लोगों में से कई के शव राज्य के तीन प्रमुख मुर्दाघरों – इंफाल में जेएनआईएमएस और रिम्स, और चुराचांदपुर जिला अस्पताल में लावारिस पड़े हुए हैं.

इसका मुख्य कारण यह है कि एक समुदाय के परिवार शवों की पहचान करने और दावा करने के लिए दूसरे समुदाय के प्रभुत्व वाले क्षेत्रों के अस्पतालों में जाने में असमर्थ हैं. जहां इंफाल और घाटी क्षेत्रों में मैतेई बहुसंख्यक हैं. वहीं पहाड़ी क्षेत्रों में कुकी का प्रभुत्व है.

35 शवों को साथ दफनाने पर खड़ा हो गया था विवाद

पिछले महीने मणिपुर की आदिवासी इकाई इंडिजिनियस ट्राइबल लीडर्स फोरम (ITLF) की एक घोषणा के बाद विवाद खड़ा हो गया था, जिसमें उन्होंने कुकी-ज़ोमी समुदाय के 35 लोगों के शव एक साथ दफ्न करने की बात कही थी.

ITLF ने कहा था कि वो 3 अगस्त को चुराचांदपुर जिले के एस. बोलजांग गांव के एक खुले मैदान में शवों को दफन करेंगे. इसके बाद बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिले की सीमा पर अतिरिक्त सुरक्षा बलों को भेजा गया था.

दरअसल, इस इलाके को लेकर कुकी और मैतेई समुदाय के अपने-अपने दावे हैं. जबकि ये जगह बिष्णुपुर पुलिस स्टेशन में आती है. लेकिन इसका राजस्व जिला चुराचांदपुर है.

बाद में इस मामले में गृह मंत्रालय को हस्तक्षेप करते हुए उनसे कार्यक्रम पर फिर से विचार करने के लिए कहना पड़ा था. हालांकि आईटीएलएफ ने 5 अगस्त की सुबह इसे रद्द कर दिया लेकिन तनाव पहले ही पैदा हो चुका था जिसके परिणामस्वरूप बिष्णुपुर और चुराचांदपुर जिलों में संघर्ष बढ़ गया था.

मणिपुर में सैकड़ों सुरक्षा बल एयरलिफ्ट

वहीं हिंदुस्तान टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संघर्ष प्रभावित मणिपुर में पिछले तीन दिनों में सैकड़ों सुरक्षा बलों को हवाई मार्ग से भेजा गया है.

सीमा सुरक्षा बल और केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल के लगभग 400 अतिरिक्त कर्मियों को मणिपुर भेजा गया है. जबकि राज्य सरकार बीएसएफ के चुराचांदपुर कैंपस को अस्थायी जेल के रूप में पुनर्निर्मित कर रही है.

एक अधिकारी ने बताया कि अतिरिक्त कर्मियों को सी 130 जे और ए 321 विमान में मणिपुर लाया गया.

जबकि चुराचांदपुर में बीएसएफ के सहायक प्रशिक्षण केंद्र के परिसर को कैदी अधिनियम, 1984 के तहत अस्थायी जेल घोषित किए जाने के बाद राज्य सरकार ने रविवार को अस्थायी जेल की तैयारी शुरू कर दी.

नया जेल बनाने का कदम मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह द्वारा लोगों से 15 दिनों के भीतर लूटे गए हथियार वापस करने का आग्रह करने के बाद आया है. जिसके बाद केंद्रीय और राज्य बल उन्हें बरामद करने के लिए एक अभियान शुरू करेंगे.

मुख्यमंत्री ने भारत-म्यांमा सीमा पर बाड़बंदी की योजना पर बीआरओ अधिकारियों के साथ बातचीत की

मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह ने रविवार को भारत-म्यांमार सीमा के एक हिस्से पर बाड़ लगाने की योजना पर चर्चा के लिए सीमा सड़क संगठन (बीआरओ) के अधिकारियों के साथ बैठक की.

यह बैठक सिंह के संवाददाताओं को यह बताए जाने के एक दिन बाद हुई है कि उनकी सरकार ने केंद्रीय गृह मंत्रालय से भारत-म्यांमा सीमा पर मुक्त आवाजाही व्यवस्था को रद्द करने और बाड़ लगाने का काम पूरा करने का आग्रह किया है.

मुक्त आवाजाही व्यवस्था भारत-म्यांमा सीमा के दोनों छोर के करीब रहने वाले लोगों को बिना किसी दस्तावेज के एक-दूसरे के क्षेत्र में 16 किलोमीटर तक अंदर जाने की अनुमति देती है.

सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ‘एक्स’ पर जारी एक पोस्ट में सिंह ने कहा, ‘बीआरओ के अधिकारियों के साथ बैठक की और भारत-म्यांमा सीमा पर 70 किलोमीटर की अतिरिक्त सीमा बाड़ लगाने का काम शुरू करने की योजना पर विचार-विमर्श किया. बैठक में मेरे साथ मुख्य सचिव, डीजीपी (पुलिस महानिदेशक) और गृह विभाग के अधिकारी भी शामिल थे.’

उन्होंने कहा, ‘पड़ोसी देश से घुसपैठ और नशीली दवाओं की तस्करी में वृद्धि को देखते हुए हमारी खुली सीमाओं की सुरक्षा एक तत्काल आवश्यकता बन गई है.’

सूत्रों के मुताबिक, मणिपुर म्यांमा के साथ 398 किलोमीटर लंबी सीमा साझा करता है, जिसमें से केवल छह किलोमीटर सीमा के आसपास ही बाड़ लगाई गई है.

तीन मई को मणिपुर में जातीय हिंसा भड़कने के बाद से 175 से अधिक लोग मारे गए हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं. जातीय हिंसा की शुरुआत तब हुई थी जब बहुसंख्यक मैतेई समुदाय की अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने की मांग के विरोध में पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ का आय़ोजन किया गया था.

आरोप है कि हालिया हिंसा के पीछे म्यांमा से आए अवैध अप्रवासियों का हाथ है.

वहीं मैतेई संगठन ने यह भी दावा किया है कि चार महीने से अधिक समय से जारी संघर्ष वनों की कटाई, अवैध अफीम पोस्त की खेती और राज्य के कुछ क्षेत्रों में मुख्य रूप से म्यांमा से अवैध अप्रवासियों के कारण जनसांख्यिकी में हुए बदलाव का नतीजा है.

मणिपुर में उग्रवादियों को म्यांमा से हथियारों की आपूर्ति किए जाने के भी आरोप हैं.

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