HomeAdivasi Dailyनियामगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासी पहचान को मिलेगा GI टैग

नियामगिरी के डोंगरिया कोंध आदिवासी पहचान को मिलेगा GI टैग

ओड़िशा के रायगड़ा जिले के आदिवासी डोंगरिया कोंध के हाथ से बने कपड़ागंड़ा शॉल को जीआई टेग (GI Tag) मिलने वाला है. डोंगरिया समाज में अविवाहित महिलाएं इस शॉल में कढ़ाई करती है. यह शॉल इन आदिवासी की जातीय पहचान से जुड़ा है.

डोगरिया कोंध के हाथों से बने कपड़ागंड़ा शॉल को जीआई टैग  (GI Tag)  मिलने वाला है. यह टैग किसी भी क्षेत्र के ख़ास उत्पाद को दिया जाता है. यह उत्पाद अन्य उत्पाद से भिन्न होना चाहिए अर्थात इनकी खुद की एक पहचान होनी चाहिए .

कपड़ागंड़ा शॉल भी डोगरिया आदिवासी समुदाय की पहचान है. इस समुदाय की अविवाहित महिलाएं इस शॉल में बुनाई का काम करती है. इस शॉल को औरते अपने पिता और भाई को उपहार में देती है.

कपड़ागंड़ा शॉल कैसे बनया जाता है

कपड़ागंड़ा शॉल बनाने के लिए डोम् समुदाय से सफेद मोटा कपड़ा ख़रीदा जाता है. अक्सर यह कपड़ा आदिवासी अपनी फ़सल यानि धान या रागी जैसी वस्तुओं के बदले में ख़रीदते हैं. इस शॉल में सभी महिलाएं मिलकर अपने घर के बाहर बैठ कर इस पर कढ़ाई का काम करते हैं.

यह कढ़ाई तीन अलग अलग रंगों के धागों से की जाती है. इनमें लाल रंग बहादुरी और पूजा में दी गई जानवरों की बली का प्रतीक है. इसके अलावा हरा रंग यहां के प्रकृति को दर्शाता है. वहीं पीला रंग शांति, मुस्कान, एकजुटता और खुशी को दर्शाता है.

पहले ये महिलाएं फूल और पत्ते से रंग निकालकर उसमें धागे डूबाती थीं. लेकिन अब ये फूल पत्ते मिलना मुश्किल है इसलिए अब इन धागों को बाजार से खरीदा जाता है.

इस शॉल में हाथ से बने हुए विभिन्न प्रकार की रेखाएं और अकार बनाए जाते हैं. यह समुदाय के लिए पहाड़ों के महत्व और गांव के मंदिर को दर्शाते हैं.

कौन है डोंगरिया आदिवासी

यह आदिवासी ओड़िशा के रायगड़ा जिले के नयामगिरि पहाड़ियों में रहते है. यह सभी असुरक्षित जनजातीय समूह (PVTGs) में आते हैं.

ये आदिवासी अभी भी मुख्यधारा कहे जाने वाले समाज से दूर हैं. इनकी बस्तियां दुर्गम पहाड़ियों में हैं जहां कई मूलभूत सुविधाएं भी नहीं पहुंची हैं.

डोंगरिया समाज के लोग नियमगिरि पहाड़ियों के बिस्सम कटक, मुनिगुड़ा तथा कल्याणसिंहपुर ब्लॉक और कालाहांडी जिले के लांजीगढ़ ब्लॉक के क्षेत्रों में रहते हैं.

फिर 2004 में नियामगिरि के बसे गाँव लांजीगढ़ में वेदांता कंपनी ने एल्युमीनियम रिफाइनरी की स्थापना की थी. जिसके बाद इन क्षेत्रों में बॉकसाइट का खनन किया गया. ओडिशा के 700 मिलियन टन बॉक्साइट भंडार में से 88 टन नियामगिरि पहाड़ों में मिलते है.

इस खनन में पर्यावरण के कानून का उल्लंघन किया गया था. जिसके बाद 18 अप्रैल 2013 को सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश दिया की खनन की मंजूरी तभी दी जाएगी जब इन क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी की मंजूरी मिलेगी.

लेकिन जब सरकार के द्वारा चयनित सभी 12 गाँवो ने इस परियोजना के खिलाफ मतदान दिया था. जिसके बाद इस खनन पर रोक लगा दी गई. यह समुदाय अन्य आदिवासी समुदाय की तरह अपने जंगलो और पहाड़ो के बेहद करीब है और इन्हें पूजते हैं.

कपड़ागंड़ा शॉल इन समुदाय की पहचान है. इसलिए इस उत्पाद को जीआई टेग मिलना बड़ी बात है. इसे इस उत्पाद को देश विदेश में अपनी पहचान मिली है. इस पहचान से आने वाले समय में इन समुदाय को भी आर्थिक रुप से फ़ायदा हो सकता है.

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