देश के आदिवासियों के लिए दूर दराज़ के इलाक़ो में शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाओं के लिए बजट में 110 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया था. लेकिन इस बजट में से अभी तक सिर्फ़ 8.14 करोड़ रुपए ही ख़र्च किये गए हैं.
यह पैसा सरकार ग़ैर सरकारी संस्थाओं के ज़रिए आदिवासी क्षेत्रों में ख़र्च करती है. इस पैसे से आदिवासी इलाक़ों में स्कूल, हॉस्टल और डिस्पेंसरी आदि बनाए जाते हैं. केन्द्र सरकार का कहना है कि राज्य सरकारों की उदासीनता की वजह से अभी तक ग़ैर सरकारी संस्थाओं को पैसा नहीं भेजा जा सका है. केन्द्रीय जनजाति मंत्रालय का कहना है कि राज्य सरकारों से अनिवार्य प्रशासनिक अनुमति में देरी की वजह से यह स्थिति पैदा हुई है.
केन्द्र सरकार आदिवासी इलाक़ों में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम करने वाले ग़ैर सरकारी संगठनों को पैसा उपलब्ध कराती है. इसके लिए ग़ैर सरकारी संस्थाओं से प्रस्ताव मांगे जाते हैं. इन प्रस्तावों की जांच करने के बाद ग़ैर सरकारी संस्थाओं को पैसा दिया जाता है.
इस सिलसिले में केन्द्र सरकार को कुल 1530 प्रस्ताव मिले थे. इनमें से 205 प्रस्तावों को अलग-अलग कारणों से ख़ारिज कर दिया गया था. यानि कुल 1325 प्रस्तावों को मंजूरी दे दी गई थी. लेकिन राज्य सरकारों की सुस्ती की वजह से अभी तक क़रीब 100 करोड़ रुपए जो आदिवासी इलाक़ों में ख़र्च होने थे, सरकार के खज़ाने में ही पड़े हैं.
जिन राज्यों के प्रस्ताव अभी तक लंबित हैं उनमें महाराष्ट्र के 380, झारखंड के 174, मध्यप्रेदश के 152, गुजरात और राजस्थान के 76-76 प्रस्ताव शामिल हैं.
केन्द्र का कहना है कि इस सिलसिले में राज्य सरकारों को कई बार याद दिलाने के लिए पत्र भेजा गया है. लेकन उसके बावजूद राज्य सरकारों से कोई प्रतिक्रिया नहीं मिली है.
केन्द्र से मिलने वाले पैसे से उन आदिवासी इलाक़ों में स्कूल और अस्पताल जैसी सुविधाएं बनाई जाती हैं जहां सरकारी स्कूल या अस्पताल मौजूद नहीं हैं. शिक्षा और स्वास्थ्य के अलावा इस पैसे को आदिवासियों में जागरुकता के लिए भी इस्तेमाल किया जाता है.