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गोवा में आदिवासियों के राजनीतिक आरक्षण के लिए लोकसभा चुनाव के बहिष्कार चेतावनी

साल 2003 में गोवा में गवाड़ा, कुनबी और वेलिप को ST सूची में अधिसूचित किया गया था. जिस समय अधिसूचना जारी की गई थी उसी समय परिसीमन आयोग का गठन किया गया था. जिससे अनुसूचित जनजातियों की आबादी में काफी वृद्धि हुई. लेकिन 20 साल के बाद भी वे लोक सभा और राज्य की विधान सभा दोनों में राजनीतिक आरक्षण से वंचित हैं.

पिछले कई वर्षों से अपने अधिकारों के लिए लड़ रहे गोवा (Goa) के अनुसूचित जनजाति समुदाय (Scheduled Tribe community) के एक वर्ग ने सरकार द्वारा राज्य विधानसभा में राजनीतिक आरक्षण प्रदान करने में विफल रहने पर लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha election 2024) का बहिष्कार करने की धमकी दी है.

‘गोवा के अनुसूचित जनजाति के लिए मिशन राजनीतिक आरक्षण’ (‘Mission Political Reservation for Scheduled Tribe of Goa’) के बैनर तले एकजुट होकर कई अनुसूचित जनजाति के युवाओं ने इस लक्ष्य हासिल करने के लिए खुद को समर्पित कर दिया है.

मामले की गंभीरता को देखते हुए कई गैर-एसटी नेताओं ने भी आंदोलन का समर्थन किया है और ज्ञापन सौंपकर सरकार का ध्यान खींचा है.

एमपीआरएसटीजी के अध्यक्ष जोआओ फर्नांडिस (Joao Fernandes) ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर सरकार उन्हें आरक्षण नहीं देती है तो वे लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने के लिए मजबूर होंगे. उन्होंने कहा, “हमारी मांग है कि हमें लोकसभा चुनाव से पहले राजनीतिक आरक्षण मिलना चाहिए.”

जोआओ फर्नांडिस ने कहा कि इससे पहले उन्होंने रैलियां निकालकर सरकार का ध्यान आकर्षित करने की कोशिश की लेकिन अभी तक कोई कदम नहीं उठाया गया है. उन्होंने कहा, “हमने अपने एसटी विधायकों, मंत्री और स्पीकर से भी मुलाकात की है. उनका भी मानना है कि हमें राजनीतिक आरक्षण मिलना चाहिए. इसलिए अगर चुनाव का बहिष्कार करने का समय आता है तो हमें उन सभी का समर्थन मिलेगा.”

फर्नांडीस के मुताबिक गोवा में करीब 1.30 लाख एसटी वोटर हैं. उन्होंने कहा, “हमने भारत के राष्ट्रपति से सीधे गोवा के मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा है. हमने अन्य राज्यों के संसद सदस्यों से भी मुलाकात की है, जो अनुसूचित जनजाति समुदाय से संबंधित हैं और उनसे समर्थन मांगा है.”

दरअसल, पिछले महीने MPRSTG सदस्यों ने मडगांव के लोहिया मैदान में एक बैठक की और सरकार द्वारा राजनीतिक आरक्षण की उनकी मांग को नहीं माने जाने पर 2024 में लोकसभा चुनाव का बहिष्कार करने का संकल्प लिया. अनुसूचित जनजाति के नेताओं ने लोहिया मैदान में एक दिवसीय भूख हड़ताल भी की थी.

उन्होंने गोवा के अनुसूचित जनजाति के लिए राजनीतिक आरक्षण के महत्व पर प्रकाश डाला. जिसे दशकों पहले समुदाय को एसटी का दर्जा मिलने के बावजूद राज्य सरकार पूरा करने में विफल रही है.

उनके मुताबिक अगर राजनीतिक आरक्षण दिया जाता है तो विधानसभा में डिफ़ॉल्ट रूप से चार विधायक होंगे.

गोवा में विपक्षी राजनीतिक दलों ने इस आंदोलन को अपना समर्थन दिया है और राजनीतिक आरक्षण की मांग को लेकर आवाज उठाई है.

गोवा फॉरवर्ड पार्टी के प्रमुख और विधायक विजय सरदेसाई ने तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री किरण रिजिजू को पत्र लिखकर विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की मांग की थी.

सरदेसाई ने कहा कि केंद्र को एसटी समुदाय को आरक्षण देने के लिए सभी जरूरी कदम उठाने चाहिए.

इससे पहले एसटी समुदाय के नेताओं ने सरदेसाई से मुलाकात की थी और उनसे इस मामले को उठाने को कहा था. जिसके बाद सरदेसाई ने विधानसभा सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाया था.

सरदेसाई ने एक पत्र में कहा, “आप जानते हैं कि जहां भारत के संविधान के अनुच्छेद 330 में लोक सभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान है, वहीं अनुच्छेद 332 में राज्यों की विधानसभाओं में अनुसूचित जनजातियों के लिए सीटों के आरक्षण का प्रावधान है. इस संदर्भ में मैं गोवा की अनुसूचित जनजातियों के लिए लोक सभा और गोवा विधान सभा में उनके लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग को रिकॉर्ड पर रखना चाहता हूं.”

उन्होंने कहा, “साल 2003 में गावड़ा, कुनबी और वेलिप नाम के तीन समुदायों को गोवा की अनुसूचित जनजातियों की मौजूदा सूची में जोड़ा गया. जिससे अनुसूचित जनजातियों की आबादी में काफी वृद्धि हुई और गोवा में अनुसूचित जनजाति समुदायों की कुल संख्या 8 प्रतिशत तक पहुंच गई. 2011 की जनगणना के मुताबिक, गोवा में अनुसूचित जनजातियों की जनसंख्या 10.23 प्रतिशत है. लेकिन 20 साल के बाद भी वे लोक सभा और राज्य की विधान सभा दोनों में राजनीतिक आरक्षण से वंचित हैं.”

सरदेसाई ने गोवा में विधानसभा और संसदीय निर्वाचन क्षेत्रों के परिसीमन के लिए एक परिसीमन आयोग (Delimitation Commission) के गठन की मांग की है.

पत्र में कहा गया है, “संसदीय और विधानसभा निर्वाचन क्षेत्रों (तृतीय), अध्यादेश, 2013 में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के प्रतिनिधित्व के पुनर्समायोजन की तर्ज पर अध्यादेश की घोषणा के लिए भारत के माननीय राष्ट्रपति को सरकार की सिफारिश भेजें.”

तृणमूल कांग्रेस ने भी गोवा विधानसभा में अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षण की मांग की है.

तृणमूल के संयुक्त संयोजक सैमिल वॉल्वोइकर ने कहा कि उनकी पार्टी इस मुद्दे पर एसटी समुदाय के साथ खड़ी रहेगी. वोल्वोइकर ने कहा, “भविष्य में अगर वे विरोध करते हैं तो हम अपना समर्थन देंगे.”

वोल्वोइकर ने कहा कि पिछले कई सालों से यह मुद्दा लंबित है. सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए और उन्हें उनका अधिकार देना चाहिए. उन्होंने कहा कि आरक्षण प्राप्त करना एसटी समुदाय का संवैधानिक अधिकार है.

वहीं एसटी नेता कांता गावड़े ने कहा कि यह विडंबना है कि ‘आदिवासी समाज’ को उनके संवैधानिक अधिकार से वंचित किया जा रहा है. एसटी समुदाय कई बार विभिन्न मंचों से इसकी मांग कर चुका है लेकिन उनके साथ सिर्फ अन्याय हुआ है.

कांता गावडे ने कहा कि अनुसूचित जनजाति समुदाय ने राज्य के लिए बहुत योगदान दिया है और इसलिए उन्हें उनका अधिकार दिया जाना चाहिए.

गावड़े ने कहा कि पिछले दो दशकों में सभी सरकारें एसटी समुदाय को अधिकार देने में विफल रहीं. उन्होंने कहा, “विधायकों से लेकर भारत के राष्ट्रपति तक को एसटी समुदाय ने सभी को ज्ञापन दिया है. लेकिन किसी ने इस मुद्दे पर ध्यान नहीं दिया है.”

विपक्ष के नेता यूरी अलेमाओ ने भी अनुसूचित जनजाति समुदाय के लिए राजनीतिक आरक्षण की मांग की है और पिछले विधानसभा सत्र के दौरान इस मुद्दे को उठाया था.

वर्तमान में विधानसभा में एसटी के चार विधायक हैं.

गोवा के आदिवासियों की राजनीतिक आरक्षण की मांग

दरअसल, साल 2003 में गोवा में गवाड़ा, कुनबी और वेलिप को ST सूची में अधिसूचित किया गया था. जिस समय अधिसूचना जारी की गई थी उसी समय परिसीमन आयोग का गठन किया गया था.

तब पिरसीमन आयोग सीटों के पुनर्समायोजन और एससी-एसटी के लिए सीटों के आरक्षण के लिए अपनी रिपोर्ट तैयार कर रहा था. इस रिपोर्ट को 2008 में संसद में पेश किया गया था और इसे मंजूरी दी गई थी.

साल 2011 में ये मामले सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट में वीरेंद्र प्रताप बनाम भारत संघ मामले पर सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को लोकसभा और राज्य विधान सभा में कुछ अनुसूचित जनजातियों का प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था. इसमें वो समुदाय शामिल थे जिन्हें 2002-03 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया था.

सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर चुनाव आयोग ने सुझाव दिया कि अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए सीटों के पुनर्समायोजन के लिए आयोग को सशक्त बनाने के लिए एक कानून पारित किया जाना चाहिए.

साल 2013 में सरकार ने जनवरी में इस संबंध में एक अध्यादेश जारी किया. इसके बाद एक विधेयक को संसद के बजट सत्र में पेश किया गया. 26 फरवरी को राज्यसभा में संसदीय और विधानसभा क्षेत्रों में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रतिनिधित्व का पुनर्समायोजन (तृतीय) विधेयक 2013 लाया गया.

जिसके बाद मार्च में राज्यसभा ने इस विधेयक को संसद की कार्मिक, लोक शिकायत, कानून, व्यवस्था और न्याय संबंधी स्थायी समिति के पास जांच के लिए भेजा और संसद में रिपोर्ट पेश करने को कहा.

उस समय समिति के अध्यक्ष सांसद शांताराम नाईक ने कहा था कि क्योंकि गोवा में अनुसूचित जनजाति समुदाय का प्रतिशत लगभग 12 प्रतिशत है इसलिए यह पांच सीटों के लिए योग्य हो सकता है. हालांकि, उन्होंने कहा कि एसटी समुदाय के लिए आरक्षण के लिए सीटों का सही प्रतिशत वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगा.

मई 2013 में संसद की स्थायी समिति ने इस मामले पर अपनी रिपोर्ट पेश की. लेकिन बजट सत्र शुरू होने के छह हफ्ते के भीतर विधेयक पारित नहीं हो पाया जिसके चलते अध्यादेश लैप्स हो गया.

2011 की जनगणना के अनुसार राज्य की कुल आबादी में अनुसूचित जनजाति का हिस्सा 10. 23 प्रतिशत है. गोवा में 2 ज़िले है – उत्तरी गोवा और दक्षिण गोवा. उत्तरी गोवा में 6.92 प्रतिशत आबादी अनुसूचित जनजाति से है जबकि वहीं दक्षिण गोवा में एसटी की आबादी 10.47 प्रतिशत है.

लेकिन बावजूद इसके राज्य की 40 विधानसभा सीटों में से एक भी सीट अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं है. जबकि विधानसभा में 1 सीट अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित है जिसकी आबादी राज्य की कुल जनसंख्या में 1.74% है.

देश के कई राज्यों में कई समुदाय खुद को अनुसूचित जनजाति में शामिल करने की मांग कर रहे हैं. इसके अलावा कई राज्यों में राजनीतिक आरक्षण को बढ़ाने की मांग भी सुनाई देती है.

कई राज्यों में ग़ैर आदिवासियों के फ़र्जी प्रमाणपत्रों के दम पर लोकसभा और विधान सभा पहुंचने के आरोप लगते रहते हैं.

दूसरी तरफ केंद्र सरकार पिछले एक साल से लगातार आदिवासियों को सम्मान और पहचान देने का दावा कर रही है. इसके साथ साथ आदिवासियों के लिए कई बड़ी घोषणाएं भी सुनाई दी हैं.

मसलन बज़ट 2023 में पीवीटीजी के विकास के लिए 15000 करोड़ रूपये आवंटित करने की घोषणा की गई है. लेकिन आदिवासी समुदायों के जो मसले अलग अलग राज्यों में उठ रहे हैं, उन पर सरकार खामोश है.

सरकार की यह खामोशी कई इलाकों में अशांति का कारण बन सकती है.

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