HomeAdivasi Dailyओडिशा ट्रेन दुर्घटना: आदिवासी बने फर्स्ट रिस्पांडर, 200 लोगों को बचाया

ओडिशा ट्रेन दुर्घटना: आदिवासी बने फर्स्ट रिस्पांडर, 200 लोगों को बचाया

यहां के आदिवासी लोगों ने 200 से अधिक यात्रियों को बचाया और क्षतिग्रस्त डिब्बों से शवों को निकाला. इसके बाद जल्द ही ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स, फायर सर्विसेज और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स की टीमें घटनास्थल पर पहुंच गईं.

ओडिशा के बालासोर ज़िले में शुक्रवार शाम हुई ट्रेन दुर्घटना (Balasore train accident) से पूरे देश में दुख का माहौल है. राहत और बचाव कार्य पूरा हो चुका है और फिलहाल पटरियों की मरम्मत की जा रही है. इस हादसे के दौरान आदिवासी फर्स्ट रिस्पांडर बने. आइए जानते हैं कैसे…

फूलमनी हेम्ब्रम अपने आंगन में खाना बना रही थी, तभी शुक्रवार की शाम को उन्हें जोर का धमाका सुनाई दिया. वह अपने घर से लगभग 200 मीटर की दूरी पर रेल की पटरियों से आ रहे धुएं का गुबार देखने के लिए बाहर निकलीं. इससे पहले कि वह कुछ समझ पाती, उन्होंने चीखें सुनीं. फूलमणि और उनके पति रघु घटनास्थल की ओर दौड़े और उन्होंने जो देखा उसे देख वो स्तब्ध रह गए.

छह बच्चों की जान बचाने वाली 30 वर्षीय आदिवासी महिला ने कहा, “मैंने अपने जीवन में पहली बार इतने सारे मरे हुए लोगों को देखा. शव खून से लथपथ थे. शरीर के क्षत-विक्षत अंग इधर-उधर बिखरे हुए थे. मैंने हिम्मत जुटाई और एक पटरी से उतरे कोच की तरफ भागी जहां एक छोटी लड़की खिड़की से लटकी हुई थी. उसके पूरे शरीर पर चोट के निशान थे. उसकी मां बाहर निकलने में कामयाब रही. मैं उन्हें अपने घर ले गई, उन्हें पानी पिलाया.”

हेम्ब्रम कपल यहीं नहीं रुका. उन्होंने और 30 यात्रियों को बचाया और अस्पतालों के लिए परिवहन की व्यवस्था भी की. बचाव दलों के पहुंचने से पहले दो बस्तियों कृष्णापुर और कमारीपुर के लगभग 58 आदिवासी फर्स्ट रेस्पोंडर में से थे. इन्होंने अपने संसाधनों का इस्तेमाल कर दुर्भाग्यपूर्ण कोरोमंडल एक्सप्रेस के यात्रियों की जान बचाने की कोशिश की, जिसे देश की सबसे घातक रेल दुर्घटनाओं में से एक के तौर पर देखा जा रहा है.

यहां के आदिवासी लोगों ने 200 से अधिक यात्रियों को बचाया और क्षतिग्रस्त डिब्बों से शवों को निकाला. इसके बाद जल्द ही ओडिशा डिजास्टर रैपिड एक्शन फोर्स, फायर सर्विसेज और नेशनल डिजास्टर रिस्पांस फोर्स की टीमें घटनास्थल पर पहुंच गईं.

एक अन्य आदिवासी, महेश्वर किस्कू, क्षत-विक्षत शवों को हटाने को याद करते हुए कहते हैं, “मैं पलटी हुई बोगियों पर चढ़ गया और शवों को बाहर निकालने लगा, जिनके हाथ और पैर नहीं थे. यह दृश्य इतना भयानक था कि घटना के दो दिन बाद भी वह सब मेरी आंखों के सामने आ जाता है.”

आदिवासी परिवार भाग्यशाली थे कि पटरी से उतरे डिब्बे उनके घरों से नहीं टकराए जो घटनास्थल से बमुश्किल 200 मीटर की दूरी पर हैं.

ओडिशा में 2 जून की शाम को हुई बालासोर ट्रेन दुर्घटना इस सदी में भारत की सबसे घातक रेल दुर्घटना है. इसमें आधिकारिक रूप से अबतक 275 लोग मारे गए हैं और 1,000 से अधिक घायल हुए हैं. इन दोनों पैसेंजर ट्रेनों में 3,400 से अधिक यात्री सफर कर रहे थे.

हालांकि विस्तृत जांच के बाद ही हादसे की सटीक वजह सामने आने की संभावना है. यह जांच नागरिक उड्डयन मंत्रालय के तहत आने वाला रेलवे सुरक्षा आयुक्त करेंगे.

(Photo Credit: REUTERS)

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