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गुजरात: IAS अधिकारी ने कहा- एक शब्द नहीं पढ़ पाते हैं बच्चे, ऐसी शिक्षा से मजदूर ही रह जाएगी आदिवासी की अगली पीढ़ी

आईएएस अधिकारी धवल पटेल ने आदिवासी बहुल छोटा उदयपुर जिले में चल रही शिक्षा व्यवस्था को लेकर चिंता जताई है. वहीं शिक्षा मंत्री कुबेर डिंडोर ने कहा कमियां होंगी दूर, लोगों को जागरूक किया जाएगा.

गुजरात में एक आईएएस अधिकारी ने आदिवासी इलाकों में शिक्षा और स्कूलों की स्थिति पर एक ऐसा सच बोल दिया है जिसे बोलने की बजाए अधिकारी दबाते रहते हैं.

यह सच उस राज्य का है जिसे देश के सबसे विकसित राज्य में शुमार माना जाता है. इस राज्य के विकास मॉडल को देश भर में प्रचारित कर ही वर्तमान सरकार सत्ता में आई थी.

यह राज्य गुजरात है जहां के आदिवासी बहुल छोटा उदयपुर जिले के कुछ प्राथमिक विद्यालयों के छात्र एक शब्द तक नहीं पढ़ पाते हैं. इसके अलावा वे गणित के आसान सवाल भी हल नहीं कर पाते हैं.

ऐसा बताया गया है कि इस अधिकारी के दावा करने के बाद राज्य शिक्षा विभाग ने अपने अधिकारियों से इस पर रिपोर्ट मांगी है.

गांधीनगर में भूविज्ञान और खनन आयुक्त के रूप में कार्यरत आईएएस अधिकारी धवल पटेल ने छोटा उदयपुर जिले में शिक्षा की स्थिति पर आश्चर्य और पीड़ा व्यक्त की.

आईएएस अधिकारी ने शिक्षा विभाग को पत्र लिखकर अपनी पीड़ा व्यक्त करते हुए कहा है कि अगर आदिवासियों को ऐसी ही शिक्षा दी जाती रही तो उनकी आने वाली पीढ़ियां मजदूरी ही करती रहेंगी.

पटेल ने 16 जून को शिक्षा विभाग को भेजे गए एक पत्र में आदिवासी बच्चों को दी जा रही शिक्षा को “दोषपूर्ण” बताया और दावा किया कि ऐसी शिक्षा से आदिवासियों की अगली पीढ़ी मजदूर के रूप में ही काम करती रहेगी और जीवन में कभी प्रगति नहीं कर सकेगी.

राज्य के शिक्षा मंत्री कुबेर डिंडोर ने सोमवार को कहा कि उन्होंने पटेल द्वारा की गई टिप्पणियों के बारे में अधिकारियों से रिपोर्ट मांगी है. डिंडोर, कैबिनेट मंत्री के रूप में आदिवासी विकास विभाग का भी प्रभार संभाल रहे हैं.

डिंडोर ने गोधरा में एक कार्यक्रम में संवाददाताओं से कहा, “मैंने अपने विभाग के अधिकारियों से एक विस्तृत रिपोर्ट देने को कहा है ताकि हम आवश्यक बदलाव कर सकें. सुदूर आदिवासी इलाकों में कुछ मुद्दे हैं. मैं भी उसी क्षेत्र का हूं. छात्रों के अभिभावकों में भी जागरूकता की कमी है. हम उन्हें जागरूक करने का प्रयास करेंगे और जहां भी आवश्यकता होगी, कमियां पूरी करेंगे.”

धवल पटेल उन आईएएस अधिकारियों में से एक हैं, जिन्हें राज्य सरकार द्वारा सौंपे गए सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में समग्र शिक्षा परिदृश्य का मूल्यांकन करने के लिए ‘शाला प्रवेशोत्सव’ अभियान के तहत विभिन्न जिलों में भेजा गया था.

पटेल की टिप्पणियों के बारे में पूछे जाने पर गुजरात के शिक्षा राज्य मंत्री प्रफुल्ल पंशेरिया ने कहा कि आईएएस अधिकारियों के अलावा अन्य वरिष्ठ अधिकारियों को क्षेत्र में भेजने का उद्देश्य खामियां ढूंढना है ताकि उन्हें दूर किया जा सके.

पटेल ने 16 जून को शिक्षा सचिव विनोद राव को भेजे गए पत्र में कहा कि उन्होंने ‘शाला प्रवेशोत्सव’ अभियान के तहत 13 और 14 मार्च को आदिवासी बहुल छोटा उदयपुर जिले के छह अलग-अलग सरकारी प्राथमिक विद्यालयों का दौरा किया.

पटेल ने कहा कि छह में से पांच स्कूलों में “शिक्षा का बेहद निम्न स्तर” देखने के बाद उन्हें अपने आपमें अपराध बोध हुआ.

उन्होंने तिमला प्राथमिक विद्यालय के अपने दौरे को याद करते हुए पत्र में कहा, “कक्षा-8 के छात्र एक शब्द के प्रत्येक अक्षर को अलग-अलग पढ़ रहे थे क्योंकि वे पूरा शब्द नहीं पढ़ सकते थे. उन्हें सरल गणितीय गणना करने में कठिनाई हो रही थी.”

उन्होंने आगे कहा, “बोडगाम प्राइमरी स्कूल में छात्र ‘दिन’ जैसे आसान गुजराती शब्दों के लिए विपरीतार्थी शब्द बताने में असमर्थ थे. आठवीं कक्षा की एक छात्रा भारतीय मानचित्र पर हिमालय और गुजरात का पता नहीं लगा सकी.”

पटेल ने कहा कि वधावन प्राइमरी स्कूल में शिक्षा का स्तर बेहद दयनीय था. कक्षा-5 के छात्र 42 घटा 18 का साधारण घटाव भी नहीं कर सकते. यहां तक कि वे उस प्रश्न पत्र में अंग्रेजी में लिखे प्रश्नों को पढ़ने में भी असफल रहे, जिसे उन्होंने पहले हल किया था. क्योंकि सभी ने अंग्रेजी में सही उत्तर लिखा था तो मुझे संदेह है कि शिक्षक ने उनकी मदद की होगी.

पटेल ने अपने पत्र में लिखा, “छह में से पांच स्कूलों में शिक्षा का इतना निम्न स्तर देखकर मुझे बहुत बुरा लगा. इतनी खराब शिक्षा देकर हम इन आदिवासी बच्चों के साथ अन्याय कर रहे हैं.”

आदिवासी इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावे

केंद्र सरकार पिछले कई सालों से आदिवासी इलाकों में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के दावे करती रही है. मसलन सरकार ने 2018-19 के बजट में घोषणा की थी कि साल 2022 तक देश के हर उस ब्लॉक में जहां आदिवासी आबादी है कम से कम एक एकलव्य आदर्श आवासीय स्कूल (EMRS) की स्थापना की जाएगी.

सरकार की इस घोषणा के हिसाब से अब तक बल्कि एक साल पहले यानि 2022 तक कम से कम 452 नए एकलव्य स्कूल बन जाने चाहिए थे. लेकिन ऐसा हुआ नहीं और सरकार का यह दावा हवाई साबित हुआ.

हमने अपनी ग्राउंड रिपोर्टिंग के दौरान यह पाया है कि ज़्यादातर राज्यों के आदिवासी इलाकों में एक अध्यापक वाले स्कूल ही चलते हैं. इन स्कूलों में बच्चों के नाम रजिस्टर में तो रहते हैं लेकिन छात्र क्लास में नहीं मिलते हैं.

इन राज्यों में गुजरात, महाराष्ट्र, कर्नाटक और तमिलनाडु जैसे राज्य भी शामिल हैं.

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