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मणिपुर की महिला एक्टिविस्ट उग्रवादियों के लिए ढाल बन रही हैं: भारतीय सेना

सोमवार को एक वीडियो संदेश जारी कर भारतीय सेना ने ऐसे कई घटनाक्रमों को दर्शाया था, जहां मणिपुर की महिलाएं उग्रवादियों के लिए ढाल का काम कर रही हैं और जानबूझकर सेना के ऑपरेशन में बाधा बन रही हैं.

मणिपुर में फैली हिंसा रुकने का नाम नहीं ले रही है. इसी बीच एक नया विवाद खड़ा हो गया है. कई जगहों पर महिलाओं की भीड़ के सुरक्षाबलों को घेरने की खबरें सामने आईं.

राज्य में जारी हिंसा के बीच भारतीय सेना का कहना है कि स्थानीय महिला एक्टिविस्ट जानबूझकर उनका रास्ता रोकती हैं और सुरक्षाबलों के काम में हस्तक्षेप कर रही हैं.

भारतीय सेना ने सोमवार को कहा कि मणिपुर में महिला प्रदर्शनकारी “सशस्त्र दंगाइयों” का साथ दे रही हैं और उनका समर्थन कर रही हैं और राज्य में सुरक्षा बलों के अभियानों में हस्तक्षेप कर रही हैं.

सेना ने अपने एक ट्वीट में लिखा है कि मणिपुर में महिला एक्टिविस्ट जानबूझकर रास्ता रोक रही हैं और सुरक्षाबलों के काम में हस्तक्षेप कर रही हैं. आर्मी जान-माल की सुरक्षा के लिए ऑपरेशन चलाती है, इस तरह का दखल उसके काम के लिए सही नहीं है.

भारतीय सेना ने आगे कहा है कि शांति बहाल करने के लिए वो जो कोशिश कर रही है उसका मणिपुर के लोग को समर्थन करना चाहिए. सेना का साफ कहना है कि उनका ऑपरेशन रोकना गैरकानूनी ही नहीं, बल्कि शांति एवं व्यवस्था बहाल करने के उनके प्रयासों के लिए हानिकारक भी है.

इससे पहले सोमवार को एक वीडियो संदेश जारी कर भारतीय सेना ने ऐसे कई घटनाक्रमों को दर्शाया था, जहां मणिपुर की महिलाएं उग्रवादियों के लिए ढाल का काम कर रही हैं और जानबूझकर सेना के ऑपरेशन में बाधा बन रही हैं.

महिलाओं द्वारा सेना के काम में बाधा पहुंचाने की एक घटना दो रोज पहले ही हुई थी. रक्षा मंत्रालय के मुताबिक 24 जून को सुरक्षाबलों ने खास इंटेलिजेंस इनपुट के आधार पर पूर्वी इंफाल जिले के इटहाम गांव में ऑपरेशन चलाया था.

इस ऑपरेशन में कांगलेई यावोल कन्ना लूप (KYKL) विद्रोही समूह के 12 उग्रवादियों को हथियार, गोला-बारूद और युद्ध में इस्तेमाल होने वाली कई अन्य चीजें के साथ पकड़ा गया था.

रक्षा मंत्रालय ने आगे बताया था कि इलाके में सुरक्षाबलों का ऑपरेशन चल ही रहा था कि महिलाओं की अगुवाई में 1200 से 1500 लोगों की भीड़ और स्थानीय नेताओं ने इलाके को घेर लिया. इन्होंने सुरक्षाबलों को अपना ऑपरेशन जारी करने से रोक दिया. सुरक्षाबलों ने उनसे बार-बार अपील भी की लेकिन वे नहीं माने. मुद्दे की संवेदनशीलता को देखते हुए सभी 12 उग्रवादियों को छोड़ना पड़ा.

इससे एक दिन पहले भी ऐसी ही एक घटना पूर्वी इंफाल के कांगपोकपी जिले में घटी थी. 23 जून को यहां के यिंगांगपोकपी इलाके में उग्रवादियों और BSF के बीच मुठभेड़ हुई थी.

टाइम्स ऑफ इंडिया की रिपोर्ट के मुताबिक हथियारबंद उग्रवादियों का एक समूह यिंगांगपोकपी की पहाड़ी से पूर्वी इंफाल के कुछ गांव में घुस आया था. उन्होंने गांव वालों को निशाना बनाया और गोलियां चलाईं. सेना इनका मुकाबला करने पहुंची. दोनों तरफ से गोलियां चल रही थीं.

इस दौरान यिंगांगपोकपी इलाके में महिलाएं सड़क पर इकट्ठा हो गईं और उन्होंने मुठभेड़ वाले इलाके में अतिरिक्त सुरक्षाबलों को जाने से पूरी तरह रोक दिया.

अमित शाह की सर्वदलीय बैठक

मणिपुर लगभग दो महीने से हिंसा की आग में जल रहा है. राज्य में अब भी पुलिस और सरकारी गोदामों से हथियार लूटे जा रहे हैं. विधायकों और मंत्रियों के घरों पर हमले हो रहे हैं. हिंसा की आग रह-रह कर भड़क उठती है. हालात काबू में नहीं हैं.

फिलहाल राज्य में 40 हज़ार सुरक्षाकर्मी तैनात हैं. इनमें भारतीय सेना के सैनिक, अर्द्धसैनिक बल और पुलिस बल के लोग शामिल हैं. लेकिन इसके बावजूद हिंसा रुक नहीं रही है.

ऐसे में गृहमंत्री अमित शाह ने रविवार को मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से मुलाकात की. इससे पहले मणिपुर की स्थिति को लेकर शाह ने 18 पार्टियों के साथ सर्वदलीय बैठक की थी. इस बीच सोमवार को गृहमंत्री ने प्रधानमंत्री मोदी को मणिपुर के हालातों से वाकिफ कराया.

हालांकि बैठक में शामिल विपक्षी दलों ने मणिपुर के हालात के लिए केंद्र को जिम्मेदार ठहराया. उनके मुताबिक ये देर से उठाया गया एक नाकाम कदम है.

कांग्रेस समेत कुछ दूसरी विपक्षी पार्टियों ने हिंसा पर पीएम नरेंद्र मोदी की ‘चुप्पी’ पर सवाल उठाया और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह को हटाने की मांग की.

विपक्ष का कहना था कि केंद्र को तुरंत एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल मणिपुर भेजना चाहिए ताकि राज्य के लोगों को ये भरोसा पैदा हो कि मोदी सरकार सचमुच यहां के हालात को लेकर गंभीर है.

कांग्रेस समेत कई विपक्षी दलों ने कहा है कि अगर केंद्र राज्य में शांति बहाल करने के प्रति गंभीर है तो सबसे पहले मुख्यंत्री एन. बीरेन सिंह को बर्खास्त कर वहां राष्ट्रपति शासन लगाए और तुरंत एक सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल भेजे.

वहीं मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस अध्यक्ष ओकराम इबोबी सिंह ने अमित शाह द्वारा नई दिल्ली में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में भाग लेने के बाद कहा कि हिंसाग्रस्त राज्य में शांति लाने के बारे में अपने सुझाव देने के लिए उन्हें पर्याप्त समय नहीं दिया गया.

उन्होंने कहा कि उन्हें बैठक में बोलने के लिए मुश्किल से ‘सात-आठ मिनट’ का समय दिया गया था.

सिंह ने कहा कि उन्होंने शाह के संबोधन के बाद हस्तक्षेप किया और अपनी व अपनी पार्टी की बात एक साथ रखने के लिए कहा. इसमें राज्य में बड़े पैमाने पर हो रही हिंसा पर काबू पाने के सुझाव भी शामिल थे.

उन्होंने बताया कि उन्हें विस्तार से अपनी बात रखने की अनुमति नहीं दी गई. उन्होंने कहा, “गृहमंत्री ने मुझे समय देने से इनकार कर दिया और कहा कि इबोबी, आप बाद में आकर मुझसे मिल सकते हैं. यह मेरे लिए बहुत दुर्भाग्यपूर्ण था.”

इसके बाद कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता जयराम रमेश ने 24 जून की शाम को प्रेस वार्ता में सिंह के साथ मंच साझा करते हुए ये बातें कहीं…

1. इस सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री को करनी चाहिए थी, जिन्होंने पिछले 50 दिनों में मणिपुर पर एक भी शब्द नहीं बोला है.

2. बेहतर होता अगर इस सर्वदलीय बैठक की अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते और यह इंफाल में होती. इससे मणिपुर के लोगों को स्पष्ट संदेश जाता कि उनका दर्द और उनकी पीड़ा भी राष्ट्रीय शोक का विषय है.

3. बिना किसी समझौते के सभी सशस्त्र समूहों को तुरंत निशस्त्र किया जाना चाहिए.

4. राज्य सरकार प्रभावी शासन प्रदान करने में बुरी तरह विफल रही है, वो भी तब जब इसकी सबसे अधिक आवश्यकता थी. खुद मुख्यमंत्री दो बार सार्वजनिक रूप से स्थिति को संभालने और संकट से निपटने में अपनी विफलता को स्वीकार कर चुके हैं.

उन्होंने लोगों से माफी भी मांगी है. उन्होंने कुकी हितों के समर्थक होने का दावा करने वाले कुछ उग्रवादी समूहों के साथ सस्पेंशन ऑफ ऑपरेशन (एसओओ) त्रिपक्षीय समझौते को 11 मार्च 2023 को मानने से इनकार कर दिया. उनके इस कदम को बाद में केंद्रीय गृह मंत्रालय ने खारिज कर दिया लेकिन तब तक काफी नुकसान हो चुका था. बड़ी गलतियों की कड़ी में यह सबसे बड़ा उदाहरण है. मुख्यमंत्री को तुरंत बदला जाना चाहिए.

5. मणिपुर की एकता और क्षेत्रीय अखंडता के साथ किसी भी तरह का समझौता नहीं किया जाना चाहिए.

6. प्रत्येक समुदाय की शिकायतों को संवेदनशीलता से सुना जाना चाहिए और उन पर ध्यान दिया जाना चाहिए.

7. केंद्र सरकार द्वारा आवश्यक वस्तुओं की उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिए दोनों राष्ट्रीय राजमार्गों को हर समय खुला रखने और इनकी सुरक्षा को लेकर कदम उठाया जाना चाहिए.

8. बिना देर किए प्रभावितों के लिए राहत, पुनर्वास, पुनर्स्थापन और आजीविका पैकेज तैयार किया जाना चाहिए. घोषित राहत पैकेज बिल्कुल अपर्याप्त है.

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