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हिमाचल प्रदेश: हाटी अधिनियम पर ‘राजनीति’ न करे कांग्रेस – जय राम ठाकुर

हिमाचल प्रदेश विधानसभा में विपक्ष के नेता जय राम ठाकुर ने मंगलवार को हाटी आदिवासी दर्जा कानून लागू नहीं करने के लिए राज्य की कांग्रेस सरकार पर निशाना साधा है.

उन्होंने कहा कि हाटी अधिनियम को प्रदेश सरकार को सहजता से स्वीकार करते हुए सहयोग कर इसे लागू करना चाहिए. कम से कम हाटी अधिनियम पर कांग्रेस को राजनीति नहीं करनी चाहिए.

पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि लोकसभा और राज्यसभा में पारित होकर बिल कानून का रूप ले चुका है. हमने केंद्रीय गृहमंत्री से इस मुद्दे पर वार्ता की है. राज्य सरकार की ओर से मांगे गए स्पष्टीकरण के बारे में गहनता से चर्चा भी की है.

उन्होंने आगे कहा कि कांग्रेस ने 55 साल हाटी मुद्दे पर राजनीति की है. अब युवाओं के भविष्य का सवाल है. इसलिए अब तो राजनीति को बंद करना चाहिए.

सिरमौर जिले के पोंटा साहिब में पत्रकारों से बातचीत करते हुए ठाकुर ने आरोप लगाया कि राज्य सरकार उस संवैधानिक संशोधन को लागू नहीं कर रही है जो जिले के ट्रांसगिरि क्षेत्र में हाटी समुदाय के लगभग 3 लाख लोगों को आदिवासी दर्जा देता है.

समुदाय के लोग संविधान (अनुसूचित जनजाति) आदेश (दूसरा संशोधन) अधिनियम, 2023 को लागू करने की मांग को लेकर पिछले चार महीनों से विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं.

हिमाचल प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री ठाकुर ने कहा, “यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि राज्य की कांग्रेस सरकार हाटी मुद्दे पर राजनीति कर रही है. जबकि इसे राजनीति से ऊपर उठकर देखा जाना चाहिए क्योंकि यह सीधे तौर पर लाखों हाटी युवाओं के करियर से जुड़ा है.”

वरिष्ठ भाजपा नेता ने यह भी आरोप लगाया कि राज्य सरकार कानून पर अनावश्यक सवाल उठाने की कोशिश कर रही है.

जय राम ठाकुर ने दावा किया कि उन्होंने इस मुद्दे पर केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से चर्चा की है और कहा है कि कानून में कोई तकनीकी गड़बड़ी नहीं है. उन्होंने कहा कि राज्य सरकार अनावश्यक रूप से झूठी बातें गढ़ने के लिए केंद्र को लिख रही है.

ठाकुर ने जोर देकर कहा कि यह पिछले चार महीनों से कानून को दबाए बैठा है और पात्र युवाओं को आदिवासी प्रमाण पत्र जारी नहीं कर रहा है और उन्हें इसके तहत सभी लाभों से वंचित कर रहा है.

उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि कांग्रेस ‘तुच्छ राजनीतिक लाभ’ के लिए अनावश्यक रूप से जाति के मुद्दे उठाकर समुदाय को विभाजित करने की कोशिश कर रही है.

ठाकुर ने आगे कहा कि यहां तक कि हाई कोर्ट ने भी स्पष्ट किया है कि कानून में कोई तकनीकी खामी नहीं है और हाल ही में चार हाटी छात्रों को प्रतियोगी परीक्षाओं में आदिवासी उम्मीदवारों के रूप में उपस्थित होने की अनुमति दी गई है.

कानून हाटी समुदाय के सदस्यों को अनुसूचित जनजातियों को प्रदान किए जाने वाले सभी लाभों, विशेष रूप से शैक्षणिक संस्थानों और सरकारी नौकरियों में आरक्षण के हकदार होने की अनुमति देता है.

संसद द्वारा संवैधानिक संशोधन पारित होने के बाद राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 4 अगस्त, 2023 को कानून के लिए गजट अधिसूचना जारी की गई थी.

कौन है हाटी समुदाय

हाटी समुदाय के लोग वो हैं, जो कस्बों में ‘हाट’ नाम के छोटे बाजारों में सब्जियां, फसल, मांस या ऊन आदि बेचने का परंपरागत काम करते हैं. हाटी समुदाय के पुरुष आम तौर पर एक सफेद टोपी पहनते हैं. ये समुदाय हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में गिरी और टोंस नदी के बसे हुए हैं और जौनसार बावर क्षेत्र में भी इनका विस्तार है. ये एक वक्त में कभी सिरमौर शाही संपत्ति का हिस्सा थे.

सिरमौर और शिमला क्षेत्रों में लगभग नौ विधानसभा सीटों पर हाटी समुदाय की अच्छी उपस्थिति है. उनकी आबादी सिरमौर जिले के चार विधानसभा क्षेत्रों – शिलाई, पांवटा साहिब, श्री रेणुकाजी और पछड़ (शिमला लोकसभा सीट के सभी हिस्से) में केंद्रित है. अब इस फैसले से ट्रांस गिरी क्षेत्र की 154 पंचायतों की करीब तीन लाख जनसंख्या लाभान्वित होगी.

हाटी लोग 1967 से एसटी का दर्जा देने की मांग कर रहे हैं. जब उत्तराखंड के जौनसार बावर में रहने वाले हाटी लोगों को आदिवासी का दर्जा दिया गया था, जिसकी सीमा सिरमौर जिले से लगती है.

किसी समुदाय को एसटी सूचि में शामिल करने के क्या है नियम

किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल करने की एक लंबी प्रक्रिया है. इस प्रक्रिया के अनुसार किसी समुदाय के बारे में सबसे पहले पर्याप्त शोध उपलब्ध होना चाहिए. आमतौर पर ट्राइबल रिसर्च इंस्टिट्यूट को यह ज़िम्मेदारी दी जाती है कि वो ये शोध करें.

इस शोध को आधार बना कर राज्य सरकार किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की श्रेणी में शामिल करने के प्रस्ताव का समर्थन करते हुए इसे केंद्र सरकार को भेज सकती है.

केंद्र सरकार की तरफ से आदिवासी कार्य मंत्रालय किसी समुदाय के बारे में शोध रिपोर्ट को रजिस्ट्रार जनरल ऑफ़ इंडिया और राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग को भेजता है.

अगर ये दोनों ही संस्थाएं किसी समुदाय के प्रस्ताव को मंजूरी दे देती हैं तो फिर केंद्र सरकार मंत्रिमंडल में प्रस्ताव ला सकती है.

आखिर में संसद में बिल लाकर संवैधानिक आदेश को संशोधित कर के किसी समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल किया जा सकता है.

अनुसूचित जनजाति की सूचि में किसी समुदाय को शामिल करना या इस सूचि से बाहर करने का फैसला संसद में भी बहस का मसला बनता रहा है. इस मामले में लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी का कहना है, “मेरे लोकसभा क्षेत्र में कुड़मी समुदाय के लोगों को जनजाति की सूचि में शामिल किया जाना चाहिए था. लेकिन सरकार ने ऐसा नहीं किया है. जबकि इस समुदाय के पास सारे प्रमाण मौजूद हैं जो उन्हें इस सूचि में शामिल करने की शर्तों को साबित करते हैं.’

वो कहते हैं, “मैने संसद में सरकार से आग्रह किया था कि किसी समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल करने पर एक व्यापक नीति होनी चाहिए. सरकार को टुकड़ों में यह काम नहीं करना चाहिए. क्योंकि देश के अलग अलग राज्यों से कई समुदाय के लोगों की मांग लंबे समय से लंबित है.”

अधीर रंजन चौधरी कहते हैं, “सरकार को सभी समुदायों के प्रस्तावों पर विचार करते हुए यह तय करना चाहिए कि किस किस समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल किया जाना चाहिए. लेकिन सरकार बार बार टुकड़ों में यह फैसला करती है. निश्चित ही ये फैसले राजनीति से प्रेरित होते हैं.”

वहीं अनुसूचित जनजाति की सूचि में कुछ समुदायों को जोड़ने के मसले पर जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा ने एक इंटरव्यू में कहा है, “इसको राजनीति के नज़रिए से नहीं देखा जाना चाहिए. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसके नियम तय हैं. उसके अनुसार यह प्रक्रिया चलती रहती है.”

फ़िलहाल कुछ बातों को किसी समुदाय को जनजाति की सूचि में शामिल करने के आधार के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है. मसलन सांस्कृतिक विशिष्ठता, मुख्यधारा से दूरी, आर्थिक पिछड़ापन और उत्पादन के आदिम तकनीक और बाहरी लोगों से मिलने में झिझक.

अनुसूचित जनजाति की सूचि से जुड़े कई पेचीदा मामले हैं. मसलन कई समुदाय सिर्फ़ इसलिए इस सूचि से बाहर हैं क्योंकि उनके नाम की वर्तनी में कुछ गड़बड़ी हो गई. कई समुदायों को उच्चारण के फ़र्क़ की वजह से छोड़ दिया गया है.

यह मसला लंबे समय से बहस का विषय है लेकिन अभी तक इस मसले का हल नहीं निकल पाया है.

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