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महाराष्ट्र: स्टडी में चौंकाने वाले तथ्य आए सामने, नाबालिग आदिवासी भी करते हैं तंबाकू का सेवन

इस स्टडी में ये पाया गया की महिलाएं और पुरूष यहां तक की बच्चें भी तम्बाकू के आदी हो रहे है. वहीं हाईपरलिंग जैसी बीमारी आदिवासी समुदायों में सामान्य जनसंख्या के मुकाबले आधिक है.

समय के साथ धीरे-धीरे मुख्यधारा का प्रभाव आदिवासी इलाकों पर भी पड़ने लगा है. मसलन महाराष्ट्र (Maharashtra) के चार ज़िलों (four districts) में रहने वाले आदिवासी समुदायों की स्टडी (study on tribals) गई थी.

जिसमें ये पाया गया की आदिवासी महिलाएं और पुरूष यहां तक की बच्चें भी तम्बाकू के आदी हो रहे है. वहीं हाईपरलिंग जैसी बीमारी आदिवासी समुदायों में सामान्य जनसंख्या के मुकाबले आधिक है.

इन चार ज़िलों में गढ़चिरौली गोंदिया, वर्धा और नागपुर शामिल है. इस स्टडी में कई और चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं.

ये स्टडी तीन अलग अलग स्तर पर आयोजित की गई थी. वहीं इस स्टडी को ब्लॉसम (Blossom) का नाम दिया गया.
इसके अलावा इस स्टडी के लिए 22 टीम बनाई गई थी. प्रत्येक टीम में 40 सदस्य मौजूद थे और फील्ड वर्क के लिए मेडिकल, आय़ूश कॉलेज़ के 300 छात्र-छात्राएं और जनजातीय अधिकारी, सार्वजनिक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी और ग्राम निकाय के सदस्य इसमें शामिल हुए थे.

ये स्टडी चार ज़िलों के 18 गांव में आयोजित की गई, जहां 85 प्रतिशत से भी ज्यादा आदिवासी आबादी रहती है.
जब स्टडी में शामिल आदिवासियों की जांच की गई तो कई तथ्य सामने आए है, जिनमें मुख्य ये है की

34.7% पुरुष और 12.29% महिलाएं शराब के आदी हैं.


वहीं 29.18% महिलाओं और 20.2% पुरुषों में हाईपरटेंशन पाया गया. राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-5 के अनुसार हाईपरटेंशन पुरुषों में 24% और महिलाओं में 21% है, यानि आदिवासियों में हाईपरटेंशन सामान्य जनसंख्या से भी आधिक पाया जाता है.

38% से अधिक पुरुष तंबाकू के आदी पाए गए. वहीं 30% महिलाएं भी इस लत की आदी हैं. इसके अलावा 18 साल से कम उम्र की 31.6% आबादी को तम्बाकू की लत है.

इसी सिलसिले में नागपुर की एक मेडिकल बोर्ड के विशेषज्ञों द्वारा विश्लेषण किया जाएगा जिसके बाद सरकार को सामाधान के लिए कुछ सुझाव दिए जाएंगे.

डॉ. कानिटकर ने कहा कि तंबाकू की लत आदिवासियों में कम उम्र से ही शुरू हो जाती है और ये उम्र भर जारी रहती है. यही वज़ह है की 18 साल से कम उम्र के कई बच्चों के मुंह में कैंसर पाया गया है.

इस स्टडी के कॉर्डिनेटर और एमयूएचएस (Maharashtra university of health science) नागपुर केंद्र के निदेशक डॉ. संजीव चौधरी ने कहा कि चौंकाने वाली बात ये है की जिन भी आदिवासियों की जांच की गई, उन्हें अपनी इन बीमारियों के बारे में पता भी नहीं था.

इन सभी के सामाधान के लिए एमयूएचएस(MUHS) के छात्र-छात्राएं 18 गांव में जांच करेंगे, जांच के दौरान पीड़ित आदिवासियों को तीन अलग अलग कैटेगरी में बाटां जाएगा.

जिसमें नीले और पीले कैटगरी के अंतर्गत आने वाले आदिवासियों को दवाईयां दी जाएंगी. वहीं लाल कैटेगरी में आने वाले आदिवासियों को अस्पताल में भर्ती किया जाएगा.

ये स्टडी बखूबी रूप से महाराष्ट्र के इन चार ज़िलों में रहने वाले आदिवासियों की स्थिति को दर्शाती है. इन तथ्यों से ये भी साफ हो जाता है कि आदिवासी इलाकों में मुख्यधारा का धीरे-धीरे प्रभाव बढ़ने लगा है.

क्योंकि आदिवासी हमेशा से सधारण जीवन व्यापन में विश्वास रखते हैं. तम्बाकू का सेवन मुख्यधारा से लाई गई बीमारी है.
वहीं ये भी धारणा है की आदिवासियों में हाईपरटेंशन सामान्य जनसंख्या से कम पाई जाती है लेकिन इस स्टडी ने इस बात से भी पर्दा उठा दिया है.

इसमें ये पाया गया की हाईपरटेंशन आदिवासियों में सामान्य जनता से आधिक है. अब देखना होगा की क्या एमयूएचएस (MUHS) का सामाधान इन 18 गाँव में फैल रहे रोगों में कमी ला सकता है.

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