गोवा में पिछले कई सालों से आदिवासी विधानसभा सीटों में आरक्षण की मांग कर रहे हैं. आदिवासी अपनी इस मांग को पूरा करने के लिए कई सालों से मिशन राजनीतिक आरक्षण (Mission Political Reservation) चला रहे हैं.
इन आदिवासी संगठनों ने मई के दौरान सरकार को मांग पूरी न होने पर लोकसभा चुनाव 2024 (Lok Sabha election 2024) का बहिष्कार करने की चेतावनी दी थी.
अब आदिवासी संगठनों ने इंडिया(I.N.D.I.A) गंठबंधन को समर्थन देने का फैसला किया है. पहले यह स्वतंत्र आदिवासी उम्मीदवार बनाने के बारे में विचार कर रहे थे.
आदिवासियों का यह फैसला बीजेपी के लिए एक बड़ी समस्या बन सकता है.
4 मई, शनिवार को स्प्लिंटर नामक आदिवासी संगठन ने अपनी घोषणा में बताया कि वे इंडिया गठबंधन को लोकसभा चुनाव 2024 में समर्थन देंगे.
आदिवासी संगठन के एक प्रमुख एसटी नेता ने कहा कि बीजेपी ने आदिवासी समुदायों की भावना को ठेस पहुंचाया है. वे सभी अब बीजेपी को वोट नहीं देंगे.
इंडिया गठबंधन को गोवा के आदिवासी संगठन का समर्थन मिलने की वजह कांग्रेस पार्टी का घोषणा पत्र है.
कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में यह दावा किया है कि वह सत्ता में आने के 6 महीने बाद गोवा के आदिवासियों की मांग को पूरा करेंगे.
इसके अलावा कांग्रेस ने अपने घोषणा पत्र में वन अधिकार अधिनियम के तहत सभी आदिवासियों को जल्द से जल्द भूमि देना और क्षेत्रों को अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित बनाना जैसे वादे किए हैं.
आदिवासी संगठन के एक सदस्य ने कहा कि बीजेपी का हम पहले से ही समर्थन नहीं देने वाले थे.
मिशन राजनीतिक आरक्षण आंदोलन के प्रमुख जोआओ फर्नांडिस ने कांग्रेस के समर्थन देने के फैसले का सराहा है.
2011 में बल्ली में हुए आंदोलन में दो आदिवासी युवक मारे गए थे. इस घटना के बाद गोवा में रहने वाले आदिवासियों का बड़ा समूह बीजेपी का समर्थन देने लगा. यही कारण है कि 2012 में बीजेपी ने अच्छी खासी बहुमत हासिल कर विधानसभा चुनाव जीते.
बीजेपी सरकार इतने सालों से आदिवासियों की राजनीतिक आरक्षण की मांग पूरी नहीं कर सकी. इसके बावजूद भी आदिवासी बीजेपी का साथ दे रहे थे. इसलिए अब उन्होंने अपनी मांग को पूरी करने के लिए कांग्रेस का हाथ थामा है.
आदिवासियों के राजनीतिक आरक्षण का इतिहास
2003 में गोवा के गवाड़ा, कुनबी और वेलिप समुदाय को अनुसूचित जनजाति की सूची में शामिल किया गया था.
उसी समय आदिवासियों को राजनीतिक आरक्षण देने के लिए जांच बिठाई गई.
इस जांच का जिम्मा परिसीमन आयोग को दिया गया. परिसीमन आयोग का कार्य था कि वे एससी-एसटी आरक्षण सीटों के लिए रिपोर्ट तैयार करे. इस रिपोर्ट को 2008 में संसद में पेश किया गया था और इसे मंजूरी दी गई थी.
लेकिन 2011 में यह मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. कोर्ट में सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग को लोकसभा और राज्य विधान सभा में मौजूद सीटों में से कुछ अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करने का निर्देश दिया गया.
कोर्ट के इस आदेश पर चुनाव आयोग ने सुझाव दिया कि आरक्षित सीटों को सशक्त बनाने के लिए कानून पारित किया जाना चाहिए.
जनवरी 2013 में सरकार ने आदेश जारी किया. जिसके बाद एक विधेयक को संसद के बजट सत्र में पेश किया गया. 26 फरवरी को राज्यसभा और विधानसभा में विधेयक को पेश हुआ.
इसी साल मार्च में राज्यसभा ने इस विधेयक को संसद की स्थानीय समिति के पास जांच के लिए भेजा.
उस समय समिति के अध्यक्ष सांसद शांताराम नाईक थे. उन्होंने अपनी रिपोर्ट में कहा कि क्योंकि गोवा में अनुसूचित जनजाति समुदाय का प्रतिशत लगभग 12 प्रतिशत है इसलिए यह पांच सीटों के लिए योग्य हो सकता है.
हालांकि एसटी समुदाय के लिए आरक्षण के लिए सीटों का सही प्रतिशत वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ों पर आधारित होगा.
मई 2013 में संसद की स्थायी समिति ने इस मामले पर अपनी रिपोर्ट पेश की. लेकिन बजट सत्र शुरू होने के छह हफ्ते के भीतर विधेयक पारित नहीं हो पाया जिसके चलते अध्यादेश लैप्स हो गया.
2011 की जनगणना के अनुसार गोवा में कुल आबादी का 10.23 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति है. गोवा में उत्तरी गोवा और दक्षिणी गोवा दो ज़िले है. इन दोनों ज़िलो की 40 विधानसभा सीटों में से एक भी अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित नहीं है.