HomeAdivasi Dailyकांतिलाल भूरिया: क्यों कांग्रेस की ज़रूरत बने हुए हैं?

कांतिलाल भूरिया: क्यों कांग्रेस की ज़रूरत बने हुए हैं?

मध्य प्रदेश और देश दोनों में कांग्रेस के कई दिग्गज़ नेता अपनी चमक खो गए. लेकिन कांतिलाल भूरिया आज भी कांग्रेस पार्टी के लिए एक ज़रूरत बने हुए हैं.

राजनीति में नेताओं का एक बड़े मुकाम पर पहुंचना एक चुनौती होती है. लेकिन उससे भी बड़ी चुनौती होती है कामयाबी के मुकाम पर बने रहना.

मध्य प्रदेश के आदिवासी नेता कांतिलाल भूरिया के बारे में यह कहा जा सकता है कि वे लगातार खुद को उस मुकाम पर बनाए रखने में कामयाब रहे हैं.

मध्य प्रदेश और देश दोनों में कांग्रेस के कई दिग्गज़ नेता अपनी चमक खो गए. लेकिन कांतिलाल भूरिया आज भी कांग्रेस पार्टी के लिए एक ज़रूरत बने हुए हैं.

उन्हें इस विधानसभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी की चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बनाया गया है. कांतिलाल भूरिया भील आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं.

उन्हें चुनाव अभियान समिति का अध्यक्ष बना कर कांग्रेस पार्टी ने यह संदेश देने की कोशिश की है कि वह राज्य में आदिवासी समुदायों को सम्मान और उचित स्थान देने के प्रति गंभीर है.

कांतिलाल भूरिया का जीवन

कांतिलाल भूरिया का जन्म मध्य प्रदेश के झबुआ में 1 जून 1950 को हुआ था. वे नानू राम भूरिया और लादी बाई के पुत्र हैं. वे वर्तमान में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य हैं.

वे जुलाई 2011 तक केन्द्रीय जनजातीय मामलों के मंत्री थे. 2009 में उन्हें प्रधान मंत्री मनमोहन सिंह की अगुवाई में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार में कैबिनेट मंत्री पदोन्नत किया गया था.

इससे पहले वे उपभोक्ता मामले, खाद्य और सार्वजनिक वितरण मंत्रालय में राज्य मंत्री और कृषि मंत्रालय में राज्य मंत्री थे.

भूरिया कांग्रेस नेता ने कल्पना भूरिया से विवाह किया और भूरिया के दो बेटे संदीप भूरिया और विक्रांत भूरिया हैं.

उन्होंने चंद्रशेखर आजाद कॉलेज ज़िला झबुआ से एमए भी किया है. इसके बाद मध्य प्रदेश से ही कानून की पढ़ाई भी की है. कॉलेज में पढ़ाई के दौरान ही उन्होंने राजनीति में कदम रख दिया था. वे 1973-74 में चंद्रशेखर आज़ाद कॉलेज, झबुआ के अध्यक्ष बने थे.

वे 1980-81 में उज्जैन विश्वविद्यालय के सीनेट सदस्य बने थे.

रारजनीतिक करिय

भूरिया 1998, 1999 और 2004 में मध्य प्रदेश के झाबुआ निर्वाचन क्षेत्र से और 2009 में रतलाम से लोकसभा के लिए चुने गए थे.

वह 2014 का आम चुनाव रतलाम से हार गए लेकिन 2015 में उपचुनाव जीत गए थे. वे 2019 के आम चुनाव में फिर से हार गए, लेकिन बाद में 2019 में मध्य प्रदेश विधानसभा के लिए चुने गए.

क्या है भूरिया की खास बातें

कांतिलाल भूरिया के राजनीतिक सफ़र में कई उतार चढ़ाव आए हैं. लेकिन मध्य प्रदेश की राजनीति में उनकी अहमियत कम नहीं हुई.

वे राज्य में कांग्रेस के गिन चुने चहरों में शामिल रहे हैं. कांतिलाल भूरिया भील आदिवासी समुदाय से आते हैं. यह समुदाय राज्य के कई ज़िलों में सबसे बड़ा आदिवासी समुदाय है.

यह माना जाता है कि कांतिलाल भूरिया राज्य की अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षित 47 सीटों में से कम से कम 30 सीटों पर प्रभाव रखते हैं.

इसलिए वे कांग्रेस पार्टी के लिए हमेशा एक अहम नेता बने रहे हैं. इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी बीजेपी से एक स्पष्ट बढ़त लेने की कोशिश कर रही है.

यह बढ़त उसे आदिवासी इलाकों के दम पर ही मिल सकती है. क्योंकि कांग्रेस पार्टी की जो भी हालत हुई हो, कम से कम राज्य की राजनीति में आदिवासी कांग्रेस पार्टी पर बार-बार भरोसा जताता रहा है.

2018 में राज्य में आदिवासियों के लिए आरक्षित 47 सीटों में से 30 कांग्रेस पार्टी ने जीत ली थीं.

इस नज़रिये से कांग्रेस पार्टी के पास कांतिलाल भूरिया के रूप में एक बड़ा नेता है जिसे आगे किया जा सकता है.

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