HomeAdivasi Dailyकर्नाटक: हुनसूर के आदिवासियों ने आंतरिक आरक्षण की मांग दोहराई

कर्नाटक: हुनसूर के आदिवासियों ने आंतरिक आरक्षण की मांग दोहराई

कर्नाटक के मैसूर ज़िले के हुनसूर में सोमवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस रखी गई. प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान उन्होंने अनुसूचित जनजाति के बीच आंतरिक आरक्षण की मांग सहित हुनसूर आदिवासी बस्ती में चल रही कई समस्याओं से अवगत करवाया.

कर्नाटक (Karnataka) के मैसूर ज़िले (Mysuru district) के हुनसूर (Hunsur) में सोमवार को आदिवासी समुदाय (Tribal community) के संगठनों ने अनुसूचित जनजाति के लिए आरक्षण में बंटवारे का मामला उठाया.

इन संगठनों ने यह चिंता ज़ाहिर की है कि सरकार नए नए समुदायों को अनुसूचित जनजाति की सूचि में शामिल कर रही है. इसकी वजह से अनुसूचित जनजाति के आरक्षण का लाभ आदिवासियों को नहीं मिल रहा है.

इन संगठनों में से एक कृषक संघ के सदस्य पी के रामू ने सरकार पर सवाल उठाया और कहा कि सरकार आदिवासियों को दरकिनार कर अन्य समुदायों को अनुसूचित जनजाति के अंतर्गत शामिल कर रही है. इसलिए सरकारी सेवाओं और आरक्षण का लाभ भी उच्च समुदाय के लोगों को ही मिल रहा हैं.

आदिवासियों के लिए आरक्षण के मसले के साथ-साथ आदिवासियों के पुनर्वास और उनकी बस्तियों में मूलभूत सुविधाओं पर भी इन संगठनों के प्रतिनीधियों ने चिंता प्रकट की है.

यहां मौजूद लोगों ने कर्नाटक के आदिवासियों के संदर्भ में मुजफ्फर असदी समिति की रिपोर्ट का ज़िक्र किया. दरअसल यह रिपोर्ट कर्नाटक के हाई कोर्ट में आदिवासियों के पुनर्वास के संदर्भ में सौंपी गई थी.

यहां यह बताया गया कि इस रिपोर्ट को सौंपे हुए सात साल हो गए लेकिन इस रिपोर्ट में दिए गए सुझावों को अभी तक लागू नहीं किया गया है.

यहां मौजूद आदिवासी प्रतिनीधियों ने मीडिया से बात करते हुए कहा कि पुनर्वास के लिए आदिवासियों को जो बस्तिया दी गई हैं वहां पर स्वच्छता की व्यवस्था बिलकुल नहीं की गई है.

साथ ही कुछ सरकारी क्वाटर की हालत इतनी खराब थी की आदिवासियों ने उसे छोड़ दिया. लेकिन कुछ क्वार्टस को अभी भी ठीक किया जा सकता है.

जब तक आदिवासियों का पुनर्वास नहीं किया जाता तब तक इनकी मरमत के बाद, यहां पर आदिवासी थोड़े समय के लिए रह सकते हैं.

इसके अलावा आदिवासी समुदायों द्वारा हुनसूर में वन अधिकार अधिनियम के तहत जंगलों पर हक भी मांगा जा रहा है.
यहां लगभग 12 हज़ार आदिवासी रहते हैं. जो सदियों से इन जंगलों पर खेती कर रहे हैं. लेकिन इन्हें इन जंगलों की ज़मीन पर कोई भी अधिकार नहीं दिए गए हैं.

कर्नाटक में आदिवासी संगठनों ने कहा है कि यह अफ़सोस की बात है कि राज्य के हाईकोर्ट के हस्तक्षेप के बावजूद आदिवासियों का पुनर्वास नहीं हो पाया है.

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