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ओडिशा: आदिवासियों के लिए किये गए फैसलों को बीजेपी ने बताया फ़र्जी, खुद केंद्र में ऐसी ही घोषणा कर रही है

ओडिशा में आदिवासियों के लिए लिए गए राज्य सरकार के फ़ैसलों को विपक्षी दल बीजेपी ने फ़र्जी बताया है. लेकिन सच्चाई यह भी है कि केंद्र सरकार ने भी लोकसभा चुनाव के करीब ही आदिवासियों के लिए योजनाओं की घोषणाएं की है. इसलिए इन दावों को भी विपक्ष फ़र्ज़ी बता सकता है.

देश में आम चुनाव की तैयारी के साथ साथ राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्ध्दा भी तेज़ हो गई है. इस बार यह देखा जा रहा है कि बीजेपी आदिवासी मतदाताओं पर काफी फोकस कर रही है.

इस सिलसिले में ओडिशा बीजेपी भी सक्रिय नज़र आ रही है. सत्तारूढ़ बीजद यानी बीजू जनता दल (Biju Janata Dal) को विपक्षी पार्टी बीजेपी ने आदिवासी विरोधी बताया है.

बीजेपी के एक नेता ने बीजद पार्टी को आदिवासी विरोधी आरोप लगाते हुए कहा कि राज्य सरकार ने लोकसभा चुनाव और विधानसभा चुनाव से पहले आदिवासियों को लुभाने के लिए ही उनके लिए विशेष पैकेज की पेशकश की है.

मंगलवार को बीजेपी के मुख्य सचेतक मोहन चरण माझी (Mohan Charan Majhi) ने इस मामले में कहा कि आदिवासियों के लिए बीजद पार्टी के कार्यक्रम राज्य में एक करोड़ आदिवासियों की आबादी को गुमराह करने का एक चुनावी हथकंडा है.

उन्होंने यह दावा किया कि वास्तव में ओडिशा सरकार ओडिशा अनुसूचित क्षेत्र अचल संपत्ति हस्तांतरण (अनुसूचित जनजातियों द्वारा) विनियमन (Odisha Scheduled Areas Transfer of Immovable Property (By Scheduled Tribes) Regulation) में संशोधन करके आदिवासियों की भूमि को हड़प के कॉरपोरेट को देने की योजना बना रहे हैं.

हालांकि सरकार विभिन्न वर्गों के कड़े विरोध के मद्देनजर अपनी कोशिश में विफल रही है. इसके अलावा बीजेपी नेता ने लघु वन उपज (minor forest produces) के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (minimum support prices) सुनिश्चित करने के लिए एक योजना लघु बाना जातीय द्रव्य क्रय (LABHA- Laghu Bana Jatiya Drabya Kraya) को कैबिनेट (cabinet) की मंजूरी का भी मजाक उड़ाया है.

मोहन चरण माझी ने यह भी कहा कि चुनाव नजदीक आने के साथ ही राज्य सरकार ने विशेष पैकेज की घोषणा आदिवासी मतदाताओं को लुभाने की योजना के तहत बनाई है. क्योंकि पिछले 24 सालों में उन्होंने आदिवासियों के लिए क्या किया?

इसके अलावा ऐसा दावा किया जा रहा है कि लाभा योजना के अलावा, मंत्रिमंडल ने ओडिशा की अनुसूचित जनजातियों की जनजातीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार के लिए एक आयोग की स्थापना को भी मंजूरी दी है.

मंत्रिमंडल मीटिंग में घोषणा

जहां एक तरफ बीजपी के नेता ओडिशा की सरकार के फैसले को आदिवासी विरोधी बता रही है तो वही दूसरी और कल मंत्रिमंडल मीटिंग में आदिवासियों के लिए कुछ बड़े फैसले भी लिए गए है.

कल मंत्रिमंडल में आदिवासी भूमि के हस्तांतरण के फैसला को वापस लेने के साथ ही दो बड़ी घोषणा कि गई. इस घोषणा में लघु बना जाति द्राब्या क्रय (Laghu Bana Jatiya Drabya Kraya) योजना की घोषणा करने के साथ ही मंत्रिमंडल ने ओडिशा की अनुसूचित जनजातियों की भाषाओं के संरक्षण और संवर्धन के लिए एक आयोग की स्थापना को भी मंजूरी दी है.

इस आयोग का काम होगा की वे ओडिशा में 21 जनजातीय भाषाओं के संरक्षण और प्रचार-प्रसार को बढ़ावा दें. इसके साथ ही यह आयोग बहुभाषी शिक्षा को प्रोत्साहित करने, आदिवासी भाषाओं का दस्तावेजीकरण और उनके उपयोग को बढ़ावा देने का कार्य भी करेगा.

इस मंत्रिमंडल मीटिंग में 169 समुदाय को एसटी लिस्ट में शामिल करने का प्रस्ताव पारित किया गया है और संविधान की 8वीं अनुसूची में हो, मुंडारी, कुई और साओरा भाषाओं को शामिल करने के प्रस्ताव को फिर से मंत्रिमंडल के सामने रखा गया.

मोहन चरण माझी ने कहा है कि ओडिशा सरकार के आदिवासी विरोधी रवैये को विशेष पैकेजों से छुपाया नहीं जा सकता बात पर राज्य के एसटी, एससी, ओबीसी और अल्पसंख्यक मंत्री जगन्नाथ सारका (State’s ST, SC, OBC & Minorities Minister, Jagannath Saraka) ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि ओडिशा सरकार ने हमेशा आदिवासियों के उत्थान के लिए कदम उठाए हैं.

मुख्यमंत्री नवीन पटनायक (Chief Minster Naveen Patnaik) ने कहा है कि आदिवासियों का विकास ही राज्य का विकास सुनिश्चित करेगा और आदिवासियों के लिए योजनाओं के पीछे कोई राजनीति नहीं है.

राज्य की 21 लोकसभा सीटों में से पांच अनुसूचित जनजाति उम्मीदवारों के लिए आरक्षित हैं. ज़ाहिर है इन सीटों के लिए केंद्र में सत्ताधारी बीजेपी और राज्य में सत्ताधारी बीजेडी के बीच प्रतियोगिता बढे़गी.

एक तरफ केंद्र सरकार दावा कर रही है उसने आदिवासियों और ख़ासतौर से आदिम जनजातियों (PVTG) के लिए 24 हज़ार करोड़ रुपये ख़र्चे करने का फैसला किया है. दूसरी तरफ राज्य सरकार ने भी कई बड़े फैसलों की घोषणा की है.

अफ़सोस की दोनों ही सरकारों ने उस समय ये फैसले किये हैं जब चुनाव में ज़्यादा समय नहीं रह गया है. इसलिए कम से कम इस चुनाव से पहले तो इन फैसलों का मूल्याकंन नहीं हो पाएगा.

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