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झारखंड: आदिवासी विकास का दावा लेकिन उनसे जुड़ी योजनाओं पर 10 प्रतिशत से भी कम खर्च

केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने बताया कि झारखंड सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए केंद्र से मिली राशि का उपयोग करने में काफी पीछे है.

झारखंड (Jharkhand) की हेमंत सोरेन (Hemant Soren) सरकार लगातार आदिवासी विकास का दावा करती रही है. लेकिन वास्तव में आदिवासी बहुल गांवों की विकास योजनाओं पर पैसा खर्च करने में राज्य सरकार ने बड़ी लापरवाही दिखाई है. खबरों के मुताबिक साल 2020 से 2022 तक राज्य सरकार को ऐसे गांवों के विकास के लिए केंद्र की तरफ से 135.8 करोड़ रुपए दिए गए. लेकिन इसके बावजूद हेमंत सोरेन सरकार ने इन योजनाओं पर सिर्फ 13.11 करोड़ रुपए ही खर्च किए.

खबरों के मुताबिक वित्त वर्ष 2020-21 में राज्य सरकार को जनजातीय उपयोजना क्षेत्र (Tribal Sub Plan) में केंद्र की तरफ से विशेष सहायता मद के रुप में 70.49 करोड़ रुपए उपलब्ध थे. लेकिन इस दौरान राज्य सरकार ने केवल 13.11 करोड़ रुपए खर्च किए. वहीं वित्त वर्ष 2021-22 में इस मद के तहत 65.31 करोड़ रुपए मिले थे जबकि राज्य सरकार ने इसमें से एक फूटी कौड़ी भी खर्च नहीं की. जिसके चलते वित्त वर्ष 2022-23 में केंद्र सरकार से कोई राशि प्राप्त नहीं हुई.

जबकि वहीं सीसीडी (Conservation Cum Development) योजना के अंतर्गत राज्य सरकार को 2020-21 में 1777.29 लाख रुपए मिले थे जिसमें से केलव 1019.75 रुपए ही खर्च हो पाए. साल 2021-22 में 1696.93 लाख के विरुद्ध 262.27 लाख ही राज्य सरकार उपयोग कर सकी है. जिस कारण 2022-23 में स्वीकृत राशि 2551.77 लाख के विरुद्ध राशि विमुक्त नहीं की गई.

शनिवार को ही केंद्रीय जनजातीय कार्य मंत्री अर्जुन मुंडा (Arjun Munda) ने बताया कि झारखंड सरकार आदिवासियों के कल्याण के लिए केंद्र से मिली राशि का उपयोग करने में काफी पीछे है. यह अच्छा संकेत नहीं है. उन्होंने कहा, “झारखंड सरकार ने अपनी गति नहीं बढ़ाई तो केंद्र से मिलने वाले अनुदान में मुश्किलें आ सकती हैं. इससे राज्य जनजाति कल्याण में पिछड़ जाएगा.”

इससे पहले राज्यपाल रमेश बैस ने पांच जनवरी को अनुसूचित जनजातियों के कल्याण के लिए राज्य में संचालित योजनाओं की समीक्षा के दौरान केन्द्र सरकार द्वारा प्राप्त अनुदान राशि की योजनाओं पर कम खर्च पर चिंता जताई थी.

बता दें, हाल ही में देश के कई राज्यों से इस तरह के आंकड़ें निकल कर आ रहे है. इनमें कई राज्य ऐसे है जहां कांग्रेस या अन्य दलों की सरकार है लेकिन बीजेपी शासित प्रदेशों में भी हालात इतने ही खराब है.

मध्य प्रदेश – प्रदेश में इस साल चुनावों को देखते हुए राज्य की शिवराज सिंह चौहान लगातार आदिवासियों से जुड़े मुद्दे उठा रही है. उनके कल्याण की बातें कर रही है लेकिन हकीकत में राज्य सरकार इन समुदायों के कल्याण के लिए काम करने वाले विभाग के बजट के तहत आवंटित धन को खर्च नहीं कर पा रही है. जहां तक बजट के तहत निर्धारित राशि खर्च करने की बात है, तो पिछले नौ महीनों में अनुसूचित जनजाति विभाग ने 1508 करोड़ रुपये में से केवल 225 करोड़ रुपये का ही उपयोग किया है.

कर्नाटक – सरकार ने राज्य में अनुसुचित जाति और अनुसुचित जनजाति के कल्याण के लिए प्रस्तावित खर्च में से 3 हजार 546 करोड़ रुपए की बचत की है. यानी सरकार SC ST के कल्याण के लिए प्रस्तावित बजट को पूरी तरह से खर्च भी नहीं कर पाई.

कर्नाटक अनुसूचित जाति उप-योजना और जनजातीय उप-योजना यानी TSP कानून के मुताबिक सरकार को अपने कुल बजट का 24.1 प्रतिशत अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के कल्याण पर खर्च करना होता है. लेकिन साल 2017 से 2021 के बीच कर्नाटक सरकार ने इस कानून के तहत 1.38 लाख करोड़ रुपए आवंटित किए जिसमें से 1.33 लाख करोड़ रुपए जारी किए गए और 1.30 लाख करोड़ रुपए खर्च किए गए. ऐसे में एससी/एसटी कल्याण पर औसत वार्षिक खर्च 26,050 करोड़ रुपये था.

तमिलनाडु – राज्य के आदि द्रविड़ और आदिम जाति कल्याण विभाग द्वारा वित्तीय वर्ष 2021-22 में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (एससी व एसटी) के विद्यार्थियों के कल्याण के लिए लागू की गई 33 में से 13 योजनाओं पर एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया. विभाग ने पिछले पांच वर्षों में बजट में आवंटित 927 करोड़ रुपये को सरकारी खजाने में वापस कर दिया है.

सिर्फ राज्यों का हाल इतना बुरा नहीं है. हाल ही में संसद की पब्लिक अकाउंट कमेटी (Public Account Committee) ने ‘ट्राइबल सब प्लान’ (Tribal Sub Plan) के मामले में सरकार के रवैये पर नाराजगी जताई थी. कमेटी ने केंद्र सरकार को ट्राइबल सब प्लान के फंड को नॉन लैप्सेबल पूल (nofn-lapsable pool) में डालने की सिफ़ारिश भेजी थी. दरअसल कई बार सरकार के अलग अलग मंत्रालय, विभाग या राज्य सरकारें समय से इस पैसे को ख़र्च नहीं कर पाती हैं. जब समय सीमा के भीतर यह पैसा ख़र्च नहीं होता है तो यह पैसा लैप्स हो जाता है. यानि सरकार इस पैसे को जारी नहीं करती है.

2017 की इस रिपोट में संसदीय कमेटी ने यह भी बताया कि आदिवासी मंत्रालय ने ट्राइबल सब प्लान का पैसा सही तरीक़े से सही समय पर और सही जगह पर खर्च किया जाए, इसके लिए कोई निगरानी व्यवस्था या गाइडलाइन्स नहीं बनाई हैं. इतना ही नहीं संसदीय कमेटी की एक्शन टेकन रिपोर्ट में यह बताया गया है कि सरकार कमेटी की इस सिफ़ारिश पर चुप्पी साध गई है.

सरकार के मंत्रालयों, विभागों या फिर राज्य सरकारों की लापरवाही या सुस्ती का परिणाम होता है कि आदिवासी इलाक़ों के विकास पर पैसा कम खर्च होता है.

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