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चुनाव पास आते ही हेमंत सोरेन ने आदिवासी कल्याण के प्रयासों को आगे बढ़ाया

जनजातीय मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, झारखंड को मार्च 2019 से इस साल जून तक न तो पट्टों के लिए कोई अनुरोध प्राप्त हुआ और न ही कोई दिया गया. जबकि दावों की संख्या 1 लाख 10 हज़ार 756 पर स्थिर रही. इसी अवधि में वितरित टाइटल की संख्या 61 हज़ार 970 पर स्थिर रही.

अगली जनगणना में “सरना” के लिए एक अलग धर्म कोड लाने का आग्रह, जनता से सुझाव लेने के बाद पेसा एक्ट के नियमों को अंतिम रूप देने का प्रयास और वन अधिकार अधिनियम (FRA) के मुताबिक भूमि पट्टे या स्वामित्व प्रमाण पत्र देने का अभियान. पिछले कुछ समय में झारखंड सरकार ने इस तरह के बड़े कदम उठाए हैं जिन्हें राज्य के आदिवासी समुदायों के बीच असंतोष को दूर करने के प्रयास के रूप में देखा जा रहा है.

ये कदम ऐसे समय में आए हैं जब सरकार का डोमिसाइल बिल, विधानसभा की मंजूरी के बावजूद अभी तक लागू नहीं किया गया है. क्योंकि राज्यपाल ने यह कहते हुए विधेयक लौटा दिया कि तृतीय और चतुर्थ श्रेणी की सरकारी नौकरियों में केवल स्थानीय व्यक्तियों को नियुक्ति के लिए पात्र बनाना असंवैधानिक है.

राज्य सरकार के डोमिसाइल बिल के मुताबिक जिन व्यक्तियों या जिनके पूर्वजों के नाम 1932 या उसके पूर्व राज्य में हुए भूमि सर्वे के कागजात (खतियान) में दर्ज होंगे उन्हें ही झारखंड राज्य का डोमिसाइल यानी स्थानीय निवासी माना जाएगा.

सरकार के सूत्रों ने कहा कि अगले चुनाव के लिए समय निकल रहा है. मतलब लोकसभा चुनाव में सिर्फ छह महीने बाकी हैं और राज्य विधानसभा चुनाव होने में बमुश्किल एक साल बचे हैं. ऐसे में हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाली झारखंड सरकार आदिवासी समुदायों के लिए योजनाओं को लागू करने के लिए तेजी से आगे बढ़ रही है.

2011 की जनगणना के मुताबिक, झारखंड की 26 फीसदी आबादी आदिवासी है.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “एफआरए और पेसा का सही कार्यान्वयन काफी हद तक आदिवासी आबादी द्वारा ‘जल, जंगल, जमीन’ पर नियंत्रण के बारे में है. जिस मुद्दे पर हेमंत सोरेन सरकार ने चुनाव जीता था. इसलिए ये आदिवासी समुदाय के भीतर असंतोष को कम करने की तात्कालिकता की भावना है.”

पिछले चार वर्षों में एफआरए के तहत भूमि पट्टों का कोई वितरण नहीं हुआ. लेकिन इस हफ्ते की शुरुआत में एक घोषणा में सरकार अक्टूबर में शुरू होने वाले एक विशेष अभियान, जिसे “अबुआ वीर दिशोम वनाधिकार अभियान” (Abuaa Vir Dishom Vanadhikaar Abhiyaan) कहा जाएगा में ग्रामीणों को पट्टे देगी.

जनजातीय मामलों के मंत्रालय के मुताबिक, झारखंड को मार्च 2019 से इस साल जून तक न तो पट्टों के लिए कोई अनुरोध प्राप्त हुआ और न ही कोई दिया गया. जबकि दावों की संख्या 1 लाख 10 हज़ार 756 पर स्थिर रही. इसी अवधि में वितरित टाइटल की संख्या 61 हज़ार 970 पर स्थिर रही.

इस अवधि में पड़ोसी राज्य छत्तीसगढ़ को एफआरए के तहत व्यक्तिगत और सामुदायिक दोनों मिलाकर 9.28 लाख दावे प्राप्त हुए. जिनमें से जून तक 5.03 लाख मालिकाना हक सौंपे जा चुके हैं.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “मुद्दा यह है कि अगर छत्तीसगढ़ में नौ लाख से अधिक दावे हैं तो झारखंड ने पर्याप्त आवेदन क्यों नहीं उत्पन्न किए हैं? इसके चलते एक विशेष अभियान चलाया गया है.”

सरकार पर निशाना साधते हुए एक भाजपा नेता ने कहा, “सोरेन को लोगों को बताना चाहिए था कि केंद्र की मंजूरी के बिना सरना कोड लागू नहीं किया जाएगा. अब चुनाव आ रहा है तो वह राजनीति कर रहे हैं. भाजपा के समय में लोगों को पट्टे देने का कुछ काम हुआ और पिछले चार वर्षों में कोई प्रगति नहीं हुई. यह मानसिकता को दर्शाता है.”

झारखंड जंगल बचाओ आंदोलन के संयोजक जेवियर कुजूर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया, “एफआरए कार्यान्वयन पर आदिवासी समुदाय के भीतर कुछ निराशा है. पहले दो साल कोविड-19 के कारण बर्बाद हो गए. लेकिन वास्तविक चिंता यह है कि पिछले साल और नौ महीनों में कोई हलचल नहीं हुई है. अधिनियम में कहा गया है कि ग्राम सभा स्तर पर एक वन अधिकार समिति होनी चाहिए. उनमें से बहुत कम संख्या में समितियाँ काम करती हैं. उप-विभाजन समितियाँ और जिला समितियाँ निष्क्रिय हैं. ऐसे में सही दावे, सत्यापन और शीर्षक वितरण सुनिश्चित करने के लिए बड़े पैमाने पर काम करना होगा.”

पेसा और सरना धार्मिक कोड

इस हफ्ते की शुरुआत में नागरिक समाज और आदिवासी समुदायों के सदस्यों के विभिन्न सुझावों को शामिल करने के बाद ड्राफ्ट 2022 पेसा नियमों को आगे की प्रक्रिया के लिए कानून विभाग को भेजा गया था.

एक सरकारी अधिकारी ने कहा, “कानून विभाग को भेजे गए अंतिम PESA ड्राफ्ट में भी वोटों के माध्यम से ग्राम प्रधानों के चुनाव जैसे मुद्दों पर कुछ असहमतियां हैं. जैसे कि अब तक जो ग्राम प्रधान हुआ करते थे वे पितृसत्तात्मक रूप से सफल होते थे या पंचायत सचिव का प्रावधान ग्राम सभा सचिव नामित किया जाए. हालाँकि, इस मोर्चे पर तेजी से प्रगति हुई है जो पिछले 23 वर्षों से अटका हुआ था.”

सोरेन ने बुधवार को पीएम मोदी को पत्र लिखकर अगली जनगणना में सरना को अलग धार्मिक कोड देने की बात दोहराई.

झामुमो और सरकार के सूत्रों ने कहा कि यह कदम पूरी तरह से “राजनीतिक” है क्योंकि केंद्रीय गृह मंत्रालय अनुरोध पर ध्यान नहीं देगा.

ऐसे में सवाल उठता है कि तो क्या फिर सोरेन सरकार सिर्फ राज्य के आदिवासियों के बीच फैेले असंतोष को दूर करने के लिए इस तरह के बड़े कदम उठा रही है…

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