1 अक्टूबर, रविवार को आदिवासी लोक संगीत और नृत्य के वरिष्ठ कलाकार सत्यराम रियांग (Satyaram Reang)) का निधन हो गया. उनका संगीत और नृत्य के क्षेत्र में अमूल्य योगदान शायद ही कोई भूला पाए.
2021 में उन्हें देश के चौथे सर्वप्रथम पुरस्कार पद्मश्री से सम्मानित किया गया था.

वह त्रिपुरा (Tripura) ज़िले के संतिरबाजार (Santirbazar) में रह रहे थे. यह भी पता चला है की उनकी मृत्यु उनके ही घर में हुई है.
रियांग ने त्रिपुरा के प्रसिद्ध लोकनृत्य होजागिरी (Hojagiri) को पहचान दिलावाने में अहम भूमिका निभाई है. साथ ही आदिवासी लोक संस्कृति और परंपरा को संरक्षित करने में उनका योगदान बहुमूल्य रहा है.
इनकी होजागिरी नृत्य में कितना योगदान है इसका पता आप इस बात से ही लगा सकते है कि इन्हें होजागिरी का गुरू कहा जाता था.

त्रिपुरा के आदिवासी यह नृत्य होजागिरी त्योहार में करते हैं. दरअसल त्रिपुरा में दुर्गा पूजा की पूर्णिमा को होजागिरी कहा जाता है. यह आमतौर पर दशहरा के तीन दिन बाद मनाया जाता है.
होजागिरी नृत्य कैसे करते है
होजागिरी नृत्य को मुख्य रूप से त्रिपुरा के रियांग समुदाय द्वारा प्रदर्शित किया जाता है. इसमें पुरूष और महिलाएं दोनों ही शामिल होते हैं. इसमें पुरूष ढोल और बांसुरी बजाते हैं. वहीं महिलाएं कलश पर खड़ी होती है और सर पर बोतल रखकर नृत्य करती है.
यह नृत्य समन्वय, धीरज और संतुलन को भलीभांति प्रदर्शित करता है.
सत्यराम तो इस दुनिया से चले गए लेकिन संगीत और नृत्य में उनका यह अमूल्य योगदान रियांग समुदाय के इतिहास में सदा सदा के लिए अमर रहेगा.