हमारे देश ने आज़ादी के लिए करीब 200 साल तक संघर्ष किया. इस संघर्ष में कई वीरों ने अपनी जान न्यौछावर कर दी. इन्हीं वीरों में से एक थे ‘ टंट्या भील ’(Tantya Bhil). इन्हें प्रेम से टंट्या मामा भी कहा जाता है.
टंट्या भील और अंग्रेज़ों के बीच लंबा संघर्ष चला था. इस संघर्ष में टंट्या भील अंग्रेज़ों को लगातार छकाते रहे.
वे हमेशा अंग्रेजों को मात देकर भाग जाते थे. टंट्या भील को ‘इंडियन राबिन हुड’ भी कहा जाता था. क्योंकि वे अंग्रेजों को लूटते और गरीब आदिवासियों की मदद करते.
यह भी पता चलता है कि उनकी वीरता और अदभुत साहस को देखते हुए तांत्या टोपे ने उन्हें गुरिल्ला युद्ध में सलाहकार बनाया था।
आज़ादी की लड़ाई में शामिल स्वतंत्रता सेनानियों को अंग्रेज़ चोर, लुटेरा या आतंकवादी साबित करने की कोशिश करते थे. ऐसा ही प्रयास टंट्या मामा के बारे में भी किया गया था.
एक समय ऐसा भी था जब ब्रिटिश के उपनिवेश ऑस्ट्रेलिया के पत्रकारों ने उनकी वीरता को चोरी, डकैती, लुटेरा जैसे शब्द देकर अपनी विफलता को छुपाने का प्रयास किया था.
टंट्या के सामने आए कई संघर्ष, संकट और समस्याओं ने उन्हें चतुर, सतर्क और खतरो का खिलाड़ी बना दिया. वे कई बार पकड़े जाने पर भी अंग्रेजों का चकमा देकर भाग जाया करते थे. उनकी चाले अंग्रेजों की समझ से परे थीं.
टंट्या की मृत्यु के मात्र डेढ़ वर्ष के अंदर ऑस्ट्रेलिया अखबार ने एक खबर छापी थी. जिसको उन्होनें ‘ असाधरण चोरी करने वाले ’ का टाइटल दिया.
ऑस्ट्रेलिया की इन कहानियों में टंट्या भील की वीरता का सबूत मिलता है.
अखबार ने क्या लिखा
अखबार में सबसे पहले पूरे भील समाज की निंदा की गई. यहां तक की खुद सब कुछ हड़पने वाले अंग्रेजों ने भील समाज को पेशेवर चोर बताया. साथ ही ये भी बताया गया की ये चोरी में अत्यंत कुशल होते हैं.
अख़बार में लिखे गए उस लेख में एक मज़ेदार किस्सा मिलता है. टंट्या और उनके कुछ साथियों ने एक बार अंग्रेजों के सोए हुए सुरक्षा कर्मी का कंबल चोरी कर लिया.
उन्होनें सुरक्षा कर्मी के चेहरे पर पहले गुदगुदी की. जिसके फलस्वरूप सुरक्षा कर्मी हंसते हुए करवट लेता रहा. जिसके बाद सोए हुए आदमी के नीचे से भीलों ने कंबल चोरी कर लिया.
ऐसी कई कहानियां इसमें लखी गई जैसे एक बार एक अंग्रेज अधिकारी अपनी टुकड़ी के साथ टंट्या और उसके साथियों का पीछा कर रहे थे. तभी टंट्या और उनके साथियों ने महज़ एक चट्टान के ज़रिए अंग्रेजों की टुकड़ी को चकमा दे दिया.
तमाम कोशिश के बावजूद भी अंग्रेजी सैनिक शाम तक भी उन्हें ढूंढ नहीं पाए. वो दिन अंग्रेजी सैनिकों के लिए बड़ा गर्म और थका देने वाला रहा. तभी अंग्रेजी अधिकारी ने सोचा की भील ज़्यादा दूर नहीं गए होगें. इसलिए उन्होंने वहीं पेड़ के नीचे विश्राम करने का फैसला किया और अपनी टोपी पेड़ की टहनी में लटका दी.
देखते ही देखते वहां से टोपी गयाब हो गई और पेड़ के साहरे बैठे अधिकारी को उसने ज़मीन पर पटक दिया.
जब तक उन्हें कुछ समझ आता टंट्या और उसके साथी वहां से टोपी लेकर भाग गए.
इन कहानियों में ऑस्ट्रेलिया के पत्रकारों ने अक्सर उनके लिए अपशब्द इस्तेमाल किये हैं. दरअसल वे अंग्रेज़ों की नाकामी को छुपाने का प्रयास था.
लेकिन टंट्या भील के कारनामे इतने रोचक थे की इनकी कहानियों ने ऑस्ट्रेलिया पाठको के मन में जिज्ञासा पैदा कर दी. यही कारण था की 1906 के बाद भी 1936 में 24 जून, जुलाई में 1,8,15, 22, 29 और 5 अगस्त को फिर से इनके बारे में लेख छापे गए थे.