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छत्तीसगढ़ के हसदेव में वनों की कटाई के खिलाफ मध्य प्रदेश के आदिवासियों ने इंदौर में किया विरोध प्रदर्शन

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में 137 हेक्टेयर में फैले जंगल में हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं. ये पेड़ परसा ईस्ट और कांता बसन (पीईकेबी) कोयला खदान के लिए काटे जा रहे हैं. पीईकेबी को अडानी समूह द्वारा संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है.

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में स्थित हसदेव अरण्य का मामला अब प्रदेश की सीमा पार कर पड़ोसी राज्य मध्य प्रदेश आ पहुंचा है. हसदेव अरण्य को बचाने के लिए जगह-जगह मुहिम चलाई जा रही है.

इसी कड़ी में गुरुवार को हसदेव जंगल में पेड़ों की कटाई का विरोध करते हुए आदिवासी समुदाय के लोगों के एक समूह ने इंदौर जिले के कलेक्टर कार्यालय के सामने विरोध प्रदर्शन किया.

विरोध प्रदर्शन के दौरान आदिवासियों ने नारे लगाए और भारत के राष्ट्रपति को संबोधित एक ज्ञापन सब-डिविजनल मजिस्ट्रेट (SDM) को सौंपा.

प्रदर्शन कर रहे आदिवासी युवाओं का कहना है कि चंद बिजनेसमैन को फायदा पहुंचाने के लिए जंगल को काटा जा रहा है. वहां रहने वाले हजारों आदिवासियों को अपने घर से बेघर किया जा रहा है. अपने हक के लिए आवाज उठाने वाले आदिवासियों को जेल में डाला जा रहा है.

प्रदर्शनकारियों ने सरकार को चेतावनी देते हुए कहा कि अगर हसदेव जंगल की कटाई नहीं रोकी गई तो पूरे देश में सरकार के खिलाफ बड़ा आंदोलन किया जाएगा.

वहीं प्रदर्शनकारियों में से एक, विशाल बडोले ने कहा, “छत्तीसगढ़ में हसदेव जंगल के पेड़ों को काटा जा रहा है और ये वे पेड़ थे जिन्होंने कोविड-19 महामारी के दौरान लोगों को ऑक्सीजन प्रदान की थी. आज, हमने हसदेव में वनों की कटाई के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और राष्ट्रपति को संबोधित कर एक ज्ञापन दिया.”

उन्होंने कहा कि विरोध का उद्देश्य हसदेव में वनों की कटाई के मुद्दे को संबोधित करना था और इसलिए उन्होंने राष्ट्रपति को अपनी चिंताओं से अवगत कराने के लिए एक ज्ञापन सौंपा.

बडोले ने चेतावनी दी कि अगर वनों की कटाई जारी रही तो आंदोलन भी जारी रहेगा.

उधर एसडीएम ओम नारायण सिंह ने कहा, ”हमने हसदेव वन क्षेत्र में वनों की कटाई के खिलाफ एक ज्ञापन स्वीकार कर लिया है और इसे भारत के राष्ट्रपति को भेजा जाएगा.”

हसदेव बचाओ

छत्तीसगढ़ के हसदेव अरण्य क्षेत्र में 137 हेक्टेयर में फैले जंगल में हजारों पेड़ काटे जा चुके हैं. ये पेड़ परसा ईस्ट और कांता बसन (पीईकेबी) कोयला खदान के लिए काटे जा रहे हैं. पीईकेबी को अडानी समूह द्वारा संचालित राजस्थान राज्य विद्युत उत्पादन निगम को आवंटित किया गया है.

हसदेव अरण्य छत्तीसगढ़, झारखंड और उड़ीसा से लगा वो हरा-भरा जंगल है जिसे इस इलाक़े का फेफड़ा कहा जाता है. ये इलाका सदियों से रहने वाले आदिवासियों का घर है और इसी को बचाने की गुहार लिए हाल ही में ‘हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति’ से जुड़े कार्यकर्ता दिल्ली पहुंचे.

कार्यकर्ताओं का कहना है कि हसदेव में जो कोयला है वो पूरे देश में पाए जाने वाले कोयले का 2 प्रतिशत है, तो आप उस 2 प्रतिशत को छोड़कर वहां से कोयला निकाल लें जहां कम से कम नुकसान हो तो वो बेहतर होगा.

इतना समृद्ध जंगल जिसे आप ख़त्म कर रहे हैं उससे बहुत नुकसान हो जाएगा और उससे मानव और जीव-जंतुओं का नुकसान होगा. ये लड़ाई सिर्फ हमारी नहीं है. अगर इसका ध्यान नहीं रखा गया तो आगे चलकर सबका नुकसान होगा पर्यावरण बर्बाद होगा जिसे सभी को भुगतना होगा.

हसदेव के लिए संघर्ष कर रहे लोग ऐसा नहीं है कि पहली बार अपनी अपील लेकर दिल्ली पहुंचे हो वो समय-समय पर दिल्ली में दस्तक देते रहे हैं. साल के शुरुआत में 2 जनवरी 2024 को ‘प्राकृतिक संसाधनों की कॉरपोरेट लूट को बंद करो’ की मांग को लेकर प्रेस क्लब ऑफ इंडिया में एक पब्लिक मीटिंग रखी गई.

जिसमें हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति के उमेश्वर सिंह आरमो, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से जुड़े आलोक शुक्ला, पर्यावरण कार्यकर्ता प्रफुल्ल सामंतरे, छत्तीसगढ़ हाईकोर्ट के वकील सुदीप श्रीवास्तव, सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट प्रशांत भूषण, वरिष्ठ पत्रकार परंजॉय गुहा ठाकुरता, दिल्ली विश्वविद्यालय की प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, राजस्थान के एमएलए थावर चंद मीणा ने हिस्सा लिया.

हसदेव की तबाही का जिम्मेदार कौन

साल 2010 से जब से हसदेव चर्चा में आया तब पहले भाजपा और फिर कांग्रेस ने छत्तीसगढ़ सरकार की सत्ता संभाली. अब फिर छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार है.

छत्तीसगढ़ भाजपा ने अपने घोषणापत्र में हसदेव में कोयला खनन की अनुमति को ‘धोखा’ कहा था. लेकिन सरकार बनते ही अडानी की खदानों के लिए पेड़ों की कटाई शुरू हो गई.

हसदेव अरण्य का इलाका संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत आता है. संविधान की पांचवी अनुसूची के तहत अनुसूचित जनजातियों के लिए अनुसूचित क्षेत्र घोषित किए गए इलाकों को संभालने के लिए प्रशासनिक अधिकार मिले हुए हैं.

इसके मुताबिक, जब तक ग्राम सभा सहमति नहीं देगी तब तक खनन के लिए भूमि अधिग्रहित नहीं की जा सकती है. इसी अधिकार का इस्तेमाल करके हसदेव अरण्य की 20 ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव पारित किया कि वन अधिकार कानून के तहत इस इलाके को कोयला खनन के लिए आवंटित नहीं किया जाना चाहिए.

साल 2016 में छत्तीसगढ़ में भाजपा की सरकार थी. भाजपा की सरकार ने आदिवासियों के सौंप गए वन अधिकार को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि वह खनन की गतिविधियों में अड़चन डालकर गैरकानूनी कृत्य कर रहे हैं.

जबकि आदिवासियों को मिले वन अधिकार को खारिज नहीं किया जा सकता है.आदिवासी गांव के सरपंच और नौजवान नेताओं को तीन दिन नजरबंद रखकर तकरीबन 500 पुलिस वालों की तैनाती में 21 दिसंबर से लगातार तीन दिनों तक हसदेव के जंगलों में तकरीबन 30 हजार पेड़ काटे गए हैं.

हसदेव बचाओ आंदोलन के सदस्य आलोक शुक्ला का कहना है कि 2015 के बाद तीन-तीन बार ग्राम सभाओं ने यह प्रस्ताव जारी किया कि वह खनन का अधिकार नहीं देंगे, इजाजत नहीं देंगे. मगर साल 2018 में फर्जी सहमति ली गई.

2018 में कांग्रेस की भूपेश बघेल सरकार सत्ता में आई. इसने भी इस फर्जी सहमति पर कोई जांच नहीं करवाई. जबकि 2015 में राहुल गांधी ने आदिवासियों के संघर्ष में खड़ा होकर कहा था कि हम आपके संघर्ष के साथ खड़े हैं और बिना आपकी सहमति से कोयला नहीं निकाला जाना जाना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा कि फर्जी ग्राम सभा की जांच और उस पर कार्रवाई के लिए 75 दिनों तक लोगों ने धरना दिया मगर प्रशासन का कोई भी व्यक्ति सुनते नहीं आया और फर्जी ग्राम सभा के आधार पर ही वन स्वीकृत की प्रक्रिया आगे बढ़ती रही.

आखिरकार जब ग्राम सभा की बात नहीं सुनी गई तब 2 अक्टूबर 2021 के दिन आदिवासियों ने 300 किलोमीटर पैदल यात्रा की और 14 अक्टूबर 2021 को रायपुर में पहुंचकर मुख्यमंत्री और राज्यपाल से मुलाकात की.

मुख्यमंत्री और राज्यपाल दोनों ने कहा कि आपके साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा जब तक ग्राम सभा की सहमति नहीं मिलेगी तब तक कार्रवाई आगे नहीं बढ़ेगी. यह सब सिर्फ सरकारी शासन आश्वासन था. झूठा दिलासा था. आज तक फर्जी ग्राम सभा पर जांच नहीं हुई है.

अब नियम कानून सबको अलग रखकर हसदेव अरण्य के परसा ईस्ट कांता बासन कोल ब्लॉक के दूसरे चरण के खनन और परसा कोल ब्लॉक के खनन के लिए वनों की कटाई की जा रही है. इसमें तकरीबन 4.5 लाख के आसपास वन काटे जाएंगे.

छत्तीसगढ़ में मौजूद भाजपा सरकार कह रही है कि वनों की कटाई की अनुमति पिछली राज्य सरकार यानी कांग्रेस ने दी थी. कांग्रेस तब कहा करती थी, कोयला खनन की इजाजत केंद्र सरकार से मिली हुई है, केंद्र सरकार को रोकना चाहिए.

जबकि आलोक शुक्ला बताते हैं कि नियम यह कहता है कि जब तक राज्य सरकार का फाइनल आदेश नहीं आएगा तब तक सिर्फ केंद्र सरकार की अनुमति से कोयला खनन के लिए वनों की कटाई नहीं की जा सकती है.

इन सभी बातों के इतर एक पहलू यह भी है कि पर्यावरण मंत्रालय, इसकी वन सलाहकार समिति की तरफ से हसदेव अरण्य में कोयला खनन की मनाही की गई थी. उसके बावजूद कांग्रेस और भाजपा की सरकारों ने ऐसा होने दिया.

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