HomeAdivasi Dailyमलकानगिरी के आदिवासियों ने लाइमस्टोन खनन के खिलाफ उठाई आवाज़

मलकानगिरी के आदिवासियों ने लाइमस्टोन खनन के खिलाफ उठाई आवाज़

यहां के लोग शिकायत करते हैं कि सरकार उन्हें खनन के माध्यम से विस्थापित करने की कोशिश कर रही है.

ओडिशा के मलकानगिरी जिले की पांच पंचायतों के 2,000 से ज्यादा आदिवासियों ने रविवार को कटमाटेरु में माटापाका और नीलगुडा पंचायतों में चूना पत्थर (limestone) के खनन के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया.

खनन को लेकर प्रशासन के खिलाफ नारेबाजी करते हुए लोगों ने कहा कि वे अपनी जमीन, जंगल और पानी को शोषण के लिए नहीं देंगे.

उन्होंने कहा कि ओडिशा माइनिंग कॉरपोरेशन (ओएमसी) के माध्यम से राज्य सरकार ने 2015-16 में स्थानीय लोगों की सहमति के बिना मटापाका और नीलगुडा पंचायतों में चूना पत्थर खनन के लिए 200 एकड़ जमीन की नीलामी की थी.

इन आदिवासियों का आरोप है कि चूना पत्थर की खदानों की नीलामी से पहले, न तो राज्य सरकार, न ओएमसी और न ही प्रशासन ने स्थानीय लोगों को विश्वास में लिया. खनन को लेकर कोई सभा भी नहीं बुलाई गई.

इलाके में सालों से आदिवासी रह रहे हैं, और आसपास के जंगलों पर निर्भर हैं. वो कहते हैं की सरकार ने गांवों के विकास पर कोई ध्यान नहीं दिया है.

कई गांवों तक सड़क संपर्क नहीं है, जिसकी वजह से उन्हें मुश्किलों के सामना करना पड़ता है. अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति कल्याण विभाग ने कटमाटेरु में एक हाई स्कूल की स्थापना की है. इसमें 500 से ज्यादा बच्चे पढ़ते हैं, लेकिन मटपका से कटमाटेरु तक पक्की सड़क न होने से उनके लिए स्कूल पहुंचना ही जैसे नामुमकिन है.

यहां के हर गांव में कई विधवाएं हैं, जिन्हें सालों से पेंशन नहीं मिली है. इसके अलावा इन लोगों की कई सरकारी योजनाएं तक पहुंच नहीं है.

यहां के लोग शिकायत करते हैं कि सरकार उन्हें खनन के माध्यम से विस्थापित करने की कोशिश कर रही है.

कालीमेला, कटमाटेरु, नंदीबाड़ा, उस्कलबाग, नीलगुडा, कायागिरी और इरालगुंडी के लोगों ने कहा कि भारी मात्रा में लघु वनोपज, मूंगफली और तिल के बीज दूसरे राज्यों में ले जाया जाता है, लेकिन राज्य सरकार ने कभी भी कृषि आधारित उद्योग स्थापित करने के बारे में नहीं सोचा.

उन्होंने यह भी बताया कि चित्रकोंडा जलाशय की वजह से नौ पंचायतों के लोग विस्थापित हो गए थे, लेकिन उनमें से कई का अभी तक पुनर्वास नहीं हुआ है.

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