HomeAdivasi Dailyभाजपा विधायक ने मणिपुर में 'समान भूमि कानून' की वकालत की

भाजपा विधायक ने मणिपुर में ‘समान भूमि कानून’ की वकालत की

मणिपुर में पिछले चार महीने से जारी हिंसा के दौरान लगभग 4,800 घर जला दिए गए या क्षतिग्रस्त हो गए. मणिपुर सरकार ने कहा कि इस दौरान 180 से अधिक लोग मारे गए हैं, 700 से अधिक घायल हुए हैं और विभिन्न समुदायों के 70 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

सत्तारूढ़ भाजपा के एक विधायक और मणिपुर (Manipur) के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (N Biren Singh) के दामाद ने रविवार को सभी 60 विधायकों को संघर्ष प्रभावित राज्य में एक ‘समान’ भूमि कानून के लिए एकजुट होने के लिए पत्र लिखा है. जो गैर-आदिवासियों को पहाड़ी क्षेत्र में जमीन खरीदने की अनुमति देगा.

सगोलबंद विधानसभा क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले भाजपा विधायक राजकुमार इमो सिंह (Rajkumar Imo Singh) ने रविवार को कहा कि राज्य के सभी विधायकों को मौजूदा कानून में संशोधन करने के लिए एक साथ आना चाहिए जो राज्य की घाटी के लोगों को इसके पहाड़ी इलाकों में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता है.

इमो सिंह ने अपने पत्र में मणिपुर भूमि राजस्व और भूमि सुधार अधिनियम, 1960 (Manipur Land Revenue and Land Reforms Act, 1960) में संशोधन के लिए सभी विधायकों से सहयोग मांगा है.

उन्होंने कहा है कि संसद द्वारा अधिनियमित 1960 अधिनियम घाटी के निवासियों को आदिवासी-बहुल पहाड़ी जिलों में जमीन खरीदने की अनुमति नहीं देता है, जबकि आदिवासी राज्य में कहीं भी जमीन खरीद सकते हैं.

संसद द्वारा अधिनियमित किया गया यह अधिनियम घाटी से संबंधित लोगों को डिप्टी कमिश्नर की अनुमति के बिना पहाड़ों में जमीन खरीदने से रोकता है.

सिंह ने अपने पत्र में कहा, “यह संसद द्वारा बनाए गए अब तक के सबसे अतार्किक, विवादास्पद और पक्षपाती कानूनों में से एक है. जो घाटी के लोगों को अधिनियम में उल्लिखित कुछ क्षेत्रों को छोड़कर ऐसी जमीनें खरीदने से रोकता है.”

ज़मीन की लड़ाई

राज्य की मैतेई और मैतेई पंगल आबादी राज्य की घाटी में केंद्रित है. जबकि आदिवासी नागा और कुकी-ज़ोमी आबादी पहाड़ियों में रहती है, जो राज्य के 90 प्रतिशत क्षेत्र को बनाती है. जहां भूमि की बिक्री और खरीद के खिलाफ विशेष सुरक्षा है.

वहीं मैतेई लोगों का प्रतिनिधित्व करने वाले संगठनों का दावा है कि कुकी पड़ोसी देश म्यांमार से “अवैध प्रवासियों” को पहाड़ियों में बसने की अनुमति दे रहे हैं. जबकि “स्वदेशी” मैतेई लोग कानून के प्रावधानों के मुताबिक पहाड़ियों में जमीन नहीं खरीद सकते हैं.

विधायक सिंह ने मणिपुर विधानसभा के सभी सदस्यों को संबोधित पत्र में लिखा, “यह विडंबना है कि ज्यादातर शक्तिशाली आदिवासी नेताओं, राजनेताओं, व्यापारियों और ग्राम प्रधानों ने एक काल्पनिक ख़तरे की धारणा बनाई है कि घाटी के लोग पहाड़ी जिलों में जाकर बस जाएंगे. दूसरी ओर इन नेताओं के पास घाटी क्षेत्रों में अपनी संपत्तियां हैं और वे इसका लाभ उठाते हैं. जबकि पहाड़ी इलाकों में गरीब आदिवासी लोग इसका लाभ नहीं उठा पाते हैं, क्योंकि प्रथागत कानून के मुताबकि भूमि प्रमुखों, कुछ व्यक्तियों और समुदाय की होती है.”

राज्य के 60 विधायकों में से 40 घाटी से हैं, जिसमें इमो सिंह भी शामिल हैं और 20 पहाड़ियों में से आदिवासी प्रतिनिधि हैं.

इमो सिंह ने अपने पत्र में कहा कि आइए हम सभी इस उद्देश्य के लिए एकजुट होते हैं और इस अधिनियम को पूरे मणिपुर राज्य में लागू करने और विस्तारित करने के लिए एक साथ आगे बढ़ते हैं. क्योंकि यह संसद का एक अधिनियम है और इसे आखिरकार संसद में अनुमोदित और संशोधित किया जाना है जिसके लिए हम सभी को एक आवाज में पहल करनी चाहिए.

सिंह ने कहा कि उनके पिता, दिवंगत आर के जयचंद्र सिंह ने 1988-89 के दौरान मुख्यमंत्री रहते हुए इस अधिनियम में संशोधन करने का प्रयास किया था.

इमो सिंह द्वारा राज्य में एक ‘समान’ भूमि कानून की अपील तीन मई को राज्य में पहली बार हिंसा भड़कने के चार महीने से अधिक समय बाद आई है.

हालांकि, इमो सिंह के इस कदम को कुकी के 10 विधायकों के विरोध का सामना करना पड़ सकता है, जिनमें सात भाजपा के विधायक भी शामिल हैं. जिन्होंने मणिपुर में कुकी के लिए “अलग प्रशासन” की कुकी संगठनों की मांग को अपना समर्थन दिया है.

इमो सिंह ने कहा – पार्टी के कुकी विधायक इस्तीफ़ा दे दें

इसके अलावा हाल ही में इमो सिंह ने कुकी-जो समुदाय के भाजपा विधायकों पर सीधा हमला बोलते हुए कहा है कि अगर वे ‘शांति के लिए काम करने’ के बारे में गंभीर नहीं हैं और केवल ‘अलग प्रशासन’ की मांग पर ध्यान केंद्रित किए हुए हैं तो ‘इस्तीफा दे दें और दूसरे राज्य से चुनाव लड़ें’.

दरअसल मणिपुर में बीते 3 मई से जारी जातीय हिंसा के बाद कुकी-जो आदिवासी समुदाय से आने वाले 10 विधायक अलग प्रशासन की मांग कर रहे हैं. इन 10 में से 7 सत्तारूढ़ भाजपा के विधायक हैं.

अगस्त महीने में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) को संबोधित एक ज्ञापन में कुकी-जो समुदाय के विधायकों ने कहा था कि  वर्तमान में जारी हिंसा ‘कुकी-जो आदिवासियों के खिलाफ राज्य प्रायोजित युद्ध’ है.

ऐसे में राजकुमार इमो सिंह ने 8 सितंबर को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर इन विधायकों पर निशाना साधते हुए एक लंबी पोस्ट लिखी है.

उन्होंने कहा है, “ये तथाकथित विधायक दूसरे राज्य के कार्यालय में उपस्थित होते प्रतीत होते हैं. क्या वे सभी हमारे राज्य में शांतिपूर्ण समाधान लाने के प्रति गंभीर हैं? और यह किसी अन्य राज्य के नेता, जिसका एजेंडा अलग है, के साथ चर्चा करके कैसे संभव होगा?”

इमो सिंह ने कहा कि अगर ये विधायक अपनी मांग पर अड़े रहे और शांति लाने के प्रति गंभीर नहीं हैं, तो वह उनसे मणिपुर विधानसभा से इस्तीफा देने का आग्रह करेंगे.

सिंह ने कहा, “सार्वजनिक पद पर बने रहना, राज्य से वेतन लेना और राज्य से विभाजन और अलगाव की बात करना नैतिक रूप से सही नहीं है.”

उन्होंने कहा कि इन निर्वाचन क्षेत्रों में अन्य आदिवासी समुदायों के विधायकों का होना बेहतर है, जो राज्य की प्रगति के लिए एकजुट होकर काम करने के इच्छुक हों.

इमो सिंह की ये पोस्ट कुकी-जो विधायकों की बुधवार (6 सितंबर) को राजधानी आइजोल में मिजोरम के मुख्यमंत्री के साथ बंद कमरे में हुई बैठक के तुरंत बाद आई थी.

बैठक में राजनीतिक नेताओं के साथ-साथ कुकी-जो नागरिक समाज संगठनों के कई लोग भी शामिल हुए थे.

मणिपुर के हालात

मणिपुर में पिछले चार महीने से जारी हिंसा के दौरान लगभग 4,800 घर जला दिए गए या क्षतिग्रस्त हो गए. मणिपुर सरकार ने कहा कि इस दौरान 180 से अधिक लोग मारे गए हैं, 700 से अधिक घायल हुए हैं और विभिन्न समुदायों के 70 हज़ार से अधिक लोग विस्थापित हुए हैं.

चार महीने बाद भी सुरक्षा बलों की भारी तैनाती के बावजूद मणिपुर में अस्थिरता बनी हुई है और रोजाना हिंसक हमलों के मामले सामने आ रहे हैं.

दरअसल, मणिपुर हाईकोर्ट के एक आदेश के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के बाद बीते 3 मई को राज्य में जातीय हिंसा भड़क उठी थी. इस आदेश में राज्य सरकार को बहुसंख्यक मैतेई समुदाय के लिए अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की सिफारिश करने को कहा गया था.

एसटी का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में बीते 3 मई को पर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के आयोजन के दौरान झड़पें शुरू हुई थीं, जो हिंसा में बदल गई और अब तक जारी हैं.

मणिपुर की 53 प्रतिशत आबादी मैतेई समुदाय की है और ये मुख्य रूप से इंफाल घाटी में रहते हैं. आदिवासियों – नगा और कुकी की आबादी 40 प्रतिशत है और ये पर्वतीय जिलों में रहते हैं.

(Photo: Facebook@RK Imo Singh)

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