डूंगरपुर के गेंजी घाटा गांव में तैयार किये गए मैदान में एक टीला है. इस मैदान को समतल करते समय शायद इस छोटी से पहाड़ी को जान-बूझ कर छोड़ा गया है. 10 सितंबर को इस पहाड़ी पर कुछ लोग जमा हुए. उन्होंने पहले वहां ज़मीन लीप कर दो पत्थर रखे फिर आदिवासी परंपरा से धूप के साथ अपने पुरखों की पूजा शुरू की.
पुरखों को नमन करने के बाद दो लंबे बांसों पर आदिवासी झंडे गाड़ दिए गए. इसके बाद यहां मौजूद आदिवासी युवकों ने अपने देवताओं और पुरखों को महुआ अर्पण की. इस दौरान ये युवक एक दूसरे के कंधे पर हाथ रखे हुए थे.
महुआ चुआते हुए ये युवक एक तरह की प्राथर्ना या कामना कर रहे थे. उसमें से एक कामना थी कि इस मैदान में आज (10 सितंबर) को भारत आदिवासी पार्टी (Bharat Addivasi Party) का स्थापना सम्मेलन सफल रहे.
इस पूजा के संपन्न होते ही मैदान में सजाए गए मंच से घोषणा होनी शुरू हो जाती है कि सभी लोग मैदान में लगाए गए टेंट में आ जाएं. मैदान में लगी खाने-पीने और नाश्ते की दुकानों या फिर इधर-उधर घूम रहे लोग टेंट की तरफ बढ़ गए.
लेकिन आदिवासी परंपराओं से इस पूजा को संपन्न कराने वाले मुख्य लोग मैदान से रुख़सत हो रहे थे. यह मुझे थोड़ी हैरान करने वाली बात लगी थी. इन लोगों में से एक से जब मैन पूछा कि क्या वे सम्मेलन में हिस्सा नहीं लेंगे, तो उनका जवाब ‘नहीं’ था.
उन्होंने हमें बताया, “भारतीय आदिवासी पार्टी हमारा राजनीतिक फ्रंट है और हम सामाजिक फ्रंट पर काम करते हैं. हमारा काम आदिवासी समाज के बीच रहना है. हम सैद्धांतिक काम करते हैं. राजनीतिक मंच पर हमारी भूमिका नहीं है. वहां पर वे लोग रहेंगे जिन्हें पार्टी की ज़िम्मेदारी दी गई है.”
क़रीब 11 बजे भारत आदिवासी पार्टी के राष्ट्रीय कार्यकारणी के सदस्य कांतिलाल रोत और अन्य नेता टेंट में पहुंच जाते हैं. उनके साथ गुजरात के आदिवासी नेता और बीटीपी (भारतीय ट्राइबल पार्टी) के संरक्षक छोटुभाई वसावा के बेटे दिलीप वसावा भी मौजूद थे.
इस पार्टी के सभी पदाधिकारियों और ख़ास मेहमानों के लिए मंच की बांई तरफ जगह बनाई गई थी. लेकिन कोई कुर्सी नहीं रखी गई थी. सभी को ज़मीन पर ही बैठना था. इन नेताओं के पहुंचे ही भाषणों का दौर शुरू हो गया.
सबसे पहले स्थानीय नेताओं ने भाषण किये. करीब 1 बजे राजस्थान विधान सभा में भारतीय ट्राइबल पार्टी (BTP) की टिकट पर चुने गए विधायक रामप्रदास डिंडोर और राजकुमार रोत पहुंचते हैं. पंडाल एक बार फिर जय जोहार के नारों से गूंज उठता है.
स्थानीय नेतआों के भाषण के बाद पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारणी के नेताओं को मंच पर बुलाया जाता है. ये सभा नेता एक-दूसरे का हाथ पकड़ कर मंच पर खड़े होते हैं और लोग जबरदस्त नारेबाज़ी करते हैं.
इस मंच पर एक के बाद एक भारत आदिवासी पार्टी के नेता भाषण शुरू करते हैं. इन सभी नेताओं के भाषणों में कुछ बातें हैं जो बार-बार हर नेता कहता है –
- इस पार्टी में कोई हाईकमान नहीं है, अध्यक्ष या राष्ट्रीय कार्यकारणी सिर्फ एक औपचारिकता है. असली फैसले इलाके के लोग करेंगे.
- इस पार्टी में चुनाव में उम्मीदवारों का फ़ैसला यानि टिकट का वितरण हाईकमान नहीं करेगी. वह बस जनता के फैसलों का अनुमोदन करेगी.
- इस पार्टी में आदिवासी के अलावा सभी वर्गों का स्वागत होगा.
- मुसलमान आदिवासी का दुश्मन नहीं है
- इस पार्टी का विस्तार राजस्थान के बाहर भी किया जाएगा.
इस पार्टी के नेताओं ने बीजेपी और कांग्रसे दोनों ही पार्टियों की जम कर आलोचना की. लेकिन जब इस कार्यक्रम के बाद हमने इन नेताओं से बातचीत की तो उनका कहना था कि उनकी पार्टी ज़रूरत पड़ने पर राज्य में किसी सरकार को समर्थन दे सकती है. लेकिन उसकी कुछ शर्तें होगी जो उस समय पार्टी तय कर सकती है.
फ़िलहाल यह माना जा रहा है कि भारत आदिवासी पार्टी (बाप) दक्षिण राजस्थान की 17 एसटी रिजर्व सीटों पर मजबूत लड़ाई लड़ने की स्थिति में है. लेकिन इस पार्टी का जिस तरह से गठन हुआ है उसमें गंभीरता नज़र आती है.
इस पार्टी में कुछ लोगों का एक ऐसा समूह है जो चुनावी महत्वाकांक्षा नहीं रखता है. यह समूह इस पार्टी के सामाजिक और सैद्धांतिक आधार को मजबूत करने के साथ साथ संगठन को भी दिशा देता है.
यह पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर दखल देने की महत्वाकांक्षा ज़रूर रखती है, लेकिन मंच से बोलते हुए चौरासी के विधायक राजकुमार रोत ने कहा कि क्षेत्रिय पार्टियां अगर मजबूत होती हैं तो केंद्र सरकार से ग़रीब और वंचित तबकों के लोगों के पक्ष में फैसले कराने आसान होते हैं.
उन्होंने यूपीए के ज़माने में बने आरटीआई, मनरेगा और वन अधिकार कानून का ज़िक्र किया. उन्होंने आरोप लगाया कि नरेन्द्र मोदी की स्पष्ट बहुमत की सरकार ने इन कानूनों को कमज़ोर किया ह.
इस मंच से बार-बार लोकतंत्र और संविधान बचाने की बात भी कही गई.
फ़िलहाल दक्षिण राजस्थान में इस पार्टी के नेता और कार्यकर्ताओं में ज़बरदस्त जोश दिखाई दे रहा है. हांलाकि इस जोश को बरक़रार रखने के लिए यह ज़रूरी होगा कि पार्टी इस साल के अंत में होने वाले विधानसभा चुनाव में कुछ सीटें ज़रूर जीते.