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मणिपुर: सरकार के हालात सामान्य होने के विरोधाभासी दावे

वहीं राज्य में चल रहे झड़पों के बीच मंत्रियों सहित 23 भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर भरोसा जताया है और उनके रिप्लेसमेंट की मांग को खारिज कर दिया है. विधायकों ने क्षेत्रीय राजनीतिक दल के गठन के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया.

मणिपुर (Manipur) के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह (N Biren Singh) ने शुक्रवार को कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रही है कि चार महीने से अधिक समय से पीड़ा सहने के बाद लोग अपना सामान्य जीवन जारी रखें.

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (MoRTH) के तहत इंफाल पूर्व में इंस्टीट्यूट ऑफ ड्राइविंग ट्रेनिंग एंड रिसर्च सेंटर का उद्घाटन करते हुए बीरेन सिंह ने कहा कि मौजूदा संकट को पहले ही भारतीय संघ के खिलाफ छेड़े गए युद्ध के रूप में पहचाना जा चुका है और लोगों को मणिपुर को तोड़ने की कोशिश करने वाली सभी ताकतों से बचाने के लिए केंद्र और राज्य द्वारा उठाए गए कदमों का समर्थन करना चाहिए.

उन्होंने आगे कहा, “केंद्र और राज्य सरकार लोगों की सुरक्षा के लिए सभी प्रयास कर रही है. इसलिए हमें यह भी सुनिश्चित करना चाहिए कि लोग अपना सामान्य जीवन जारी रखें. जैसे कि छात्र स्कूल और कॉलेज जा रहे हैं, किसान अपने खेतों में जा रहे हैं, दुकानें खुल रही हैं आदि.”

इससे पहले दिन में सीएम बीरेन ने इंफाल शहर के लिए स्थायी जल स्रोत उपलब्ध कराने और शहरी बाढ़ को कम करने के लिए 650 करोड़ रुपये के “लाम्फेलपात जल निकाय के कायाकल्प” के भूमि पूजन समारोह में हिस्सा लिया.

उन्होंने लाम्फेलपात में इको-टूरिज्म परियोजना को बढ़ावा देने के लिए विकास परियोजनाएं शुरू करने की आवश्यकता पर जोर दिया क्योंकि स्थिति धीरे-धीरे सामान्य हो रही है.

उन्होंने मंत्रियों, विधायकों और सरकारी कर्मचारियों सहित सभी को एक टीम के रूप में दिन-रात काम करने की आवश्यकता पर बल दिया. सीएम ने कहा, “हमें यह दिखाना होगा कि इतनी कठिनाइयों के बावजूद मणिपुर ने सब कुछ पार कर लिया है.”

23 बीजेपी विधायकों ने सीएम बीरेन को बदलने की मांग खारिज कर दी

वहीं राज्य में चल रहे झड़पों के बीच मंत्रियों सहित 23 भाजपा विधायकों ने मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह पर भरोसा जताया है और उनके रिप्लेसमेंट की मांग को खारिज कर दिया है. विधायकों ने क्षेत्रीय राजनीतिक दल के गठन के प्रस्ताव को भी खारिज कर दिया.

झड़पों का समाधान तलाशने वाले नवगठित समूह यूथ ऑफ मणिपुर ने नेतृत्व में बदलाव की मांग की थी. हालाँकि, समूह द्वारा की गई कुछ माँगों को असंबंधित और अस्वीकार्य माना गया.

10 पार्टियों ने शांति बहाल करने में विफल रहने के लिए ‘डबल इंजन’ भाजपा सरकार की आलोचना की

वहीं मणिपुर में कांग्रेस के नेतृत्व वाले 10 समान विचारधारा वाले दलों ने गुरुवार को कहा कि केंद्र और राज्य में भाजपा की ‘डबल इंजन सरकारें’ पांच महीने बाद भी शांति और सामान्‍य स्थिति बहाल करने में पूरी तरह से विफल रही हैं.

पार्टियों के एक दिवसीय सम्मेलन के बाद कांग्रेस नेता और तीन बार के मुख्यमंत्री रहे ओकराम इबोबी सिंह (2002-2017) ने कहा कि केंद्र और राज्य दोनों सरकारों की लापरवाही संघर्षग्रस्त राज्य में शांति और सामान्य स्थिति बहाल करने में विफल रही है.

उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने वैसे तो सभी मुद्दों पर बात की लेकिन मणिपुर संकट पर अब तक चुप्पी साधे हुए हैं और यह बेहद दुर्भाग्यपूर्ण और निंदनीय है. सिंह ने कहा कि लोग अभी भी इस बात को लेकर असमंजस में हैं कि राज्य में धारा 355 लागू की गई है या नहीं.

मणिपुर की भयावह स्थिति के लिए भाजपा की नीतियां जिम्मेदार – कांग्रेस

इससे पहले कांग्रेस ने मणिपुर के हालात को लेकर बुधवार को सत्तारूढ़ भाजपा पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया था कि पूर्वोत्तर की यह ‘भयावह स्थिति’ भाजपा की नीतियों एवं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की प्राथमिकताओं पर कलंक की तरह है.

पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि अब तक ऐसा कभी नहीं हुआ था कि किसी राज्य के लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया जाए लेकिन मणिपुर की जनता के साथ ऐसा हुआ है.

उन्होंने सवाल किया कि प्रधानमंत्री मोदी ने आखिरी बार मणिपुर का दौरा कब किया था और राज्य के मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह से कब बात की थी?

जयराम रमेश ने एक बयान में कहा, ‘‘पांच महीने पहले, तीन मई की शाम को तथाकथित ‘डबल इंजन’ सरकार की विभाजनकारी राजनीति के कारण मणिपुर में हिंसा भड़की थी. लगभग एक महीने के बाद कर्नाटक चुनाव में अपनी जिम्मेदारियों को निभाकर और ऐसे अन्य जरूरी कार्यों से मुक्त होकर गृह मंत्री ने राज्य का दौरा करना उचित समझा, लेकिन स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ.’’

उन्होंने दावा किया, ‘‘गृह मंत्री के दौरे के बाद वास्तव में हालात और खराब हो गए। सामाजिक सद्भाव पूरी तरह से बिगड़ चुका है. हर दूसरे दिन हिंसक अपराधों की भयावह खबरें सामने आती हैं. हजारों हजार लोग अब भी राहत शिविरों में फंसे हुए हैं. सशस्त्र गुटों और राज्य पुलिस के बीच झड़प आम बात हो गई है.’’

कांग्रेस नेता ने कहा कि फिर भी प्रधानमंत्री इस मामले पर पूरी तरह से चुप हैं। राज्य में हालात बिगड़ने के काफी दिनों बाद उन्होंने सिर्फ दिखावे के लिए 10 अगस्त को लोकसभा में अपने 133 मिनट के भाषण में पांच मिनट से भी कम समय के लिए राज्य पर एक टिप्पणी करके औपचारिकता निभा दी.

उन्होंने कहा कि भाजपा के अधिकांश विधायक मुख्यमंत्री को पद से हटाना चाहते हैं, बावजूद इसके वह बेशर्मी से अपने पद पर बने हुए हैं.

इंटरनेट पर बैन फिर बढ़ाया

मणिपुर सरकार ने शुक्रवार को मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध 11 अक्टूबर तक बढ़ा दिया है. आयुक्त (गृह) टी रणजीत सिंह ने अपने आदेश में मोबाइल इंटरनेट सेवाओं पर प्रतिबंध को 11 अक्टूबर तक बढ़ाते हुए कहा कि ऐसी आशंका है कि कुछ असामाजिक तत्व जनता की भावनाएं भड़काने वाली तस्वीरें, नफरत भरे भाषण और नफरत भरे वीडियो संदेश प्रसारित करने के लिए बड़े पैमाने पर सोशल मीडिया का इस्तेमाल कर सकते हैं. इसका मणिपुर राज्य में कानून और व्यवस्था की स्थिति पर गंभीर असर हो सकता है.

बड़े पैमाने पर छात्रों के आंदोलन के बाद मणिपुर सरकार ने 143 दिनों के बाद प्रतिबंध हटाए जाने के दो दिन बाद 26 सितंबर को मोबाइल इंटरनेट डेटा सेवाओं को पांच दिनों के लिए निलंबित कर दिया था. फिर इसे 6 अक्टूबर तक बढ़ा दिया था. अब प्रतिबंध पांच दिन और बढ़ाकर 11 अक्टूबर तक कर दिया गया है.

मणिपुर के हालात और पीएम मोदी की जिम्मेदारी और जवाबदेही

3 मई 2023… यही वो तारीख जब मणिपुर में पहली हिंसा की आग भड़की थी. अब पांच महीने से ज्यादा वक्त बीत चुका है लेकिन फिर भी राज्य में अबतक शांति बहाल नहीं हो पाया है.

मणिपुर में जब 143 दिनों के बाद इंटरनेट सेवा बहाल की गई तो फिर से हिंसा की खबरें आने लगीं, हिंसा की तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल होने लगी, फिर से लोग सड़कों पर दिखें, फिर से स्कूल बंद कर दिए गए, फिर से AFSPA लगा दिया गया.

मणिपुर पर पीएम मोदी की कई महीनों की चुप्पी तुड़वाने के लिए विपक्ष ने अविश्वास प्रस्ताव का सहारा लिया था. मणिपुर में हिंसा की शुरुआत के 4 महीने बाद पीएम मोदी ने पहली बार संसद में मणिपुर पर 10 अगस्त को अपना बयान दिया.

और ये भी तब हुआ जब जुलाई के महीने में एक वीडियो वायरल हुआ जिसमें मैतेई समुदाय के पुरुषों की भीड़ कुकी-जो समुदाय की दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर परेड कराती है, उनका रेप करती है.

हालांकि, ये घटना 4 मई को हुई थी. जिसके बाद इंटरनेट बंद कर दिया गया था. लेकिन जैसे ही इंटरनेट की पहुंच में लोग आए तो हैवानित की वीडियो बाहर आ गई.

इसके बाद देश में निंदा, एक्शन की बात शुरू हुई. संसद में भाषण हुए… लेकिन इस सब के बाद भी हालात में कुछ ख़ास बदलाव नहीं आया.

एक बार फिर इंटरनेट सेवा बहाल हुई तो मणिपुर की भयावह तस्वीर सामने आ गई. 6 जुलाई को लापता हुए दो छात्र हिजाम लिनथोइनगांबी और फिजाम हेमजीत के शवों की तस्वीर सोशल मीडिया पर सामने आई. सरकार ने फिर इंटरनेट बंद कर दिया. जहां सरकार को ऐसी घटनाओं पर रोक लगाना था वहां बार-बार इंटरनेट बंद हो रहे हैं.

छात्रों की तस्वीरें वायरल होने के बाद एक फिर राज्य में हिंसा और प्रदर्शन का दौर शुरू हो गया. दोनों छात्र की हत्या के विरोध में कई छात्रों ने सीएम एन बीरेन सिंह के घर के बाहर प्रदर्शन किया. इस दौरान प्रदर्शनकारी और पुलिस में झड़प भी हुई. जिसमें 50 से ज्यादा छात्र घायल हो गए.

27 सितंबर की शाम को उग्र भीड़ ने थोबुल जिले में बीजेपी मंडल कार्यालय को आग लगा दी. मणिपुर बीजेपी की अध्यक्ष ए शारदा देवी के घर पर भी उग्र भीड़ ने हमला किया. इतना ही नहीं इंफाल पूर्व के हेनगिंग इलाके में मुख्यमंत्री एन बीरेन सिंह के घर पर भी उग्र भीड़ ने हमला करने की कोशिश की. लेकिन सुरक्षाबलों ने प्रदर्शनकारियों को रोक लिया.

ये सब तब हो रहा है जब सरकार बार-बार दावा कर रही है कि सब कंट्रोल में है, राज्य में हालात सामान्य हो रहे हैं.

AFSPA पर बवाल

इस सब के अलावा मणिपुर के सात जिलों के 19 पुलिस स्टेशन को छोड़कर मणिपुर के सभी हिस्सों में अफस्पा (Armed Forces Special Powers Act) को 1 अक्टूबर से अगले छह महीने के लिए बढ़ा दिया है.

जिसके बाद से आरोप लग रहे हैं कि सरकार ने जिन 19 थाना क्षेत्रों को AFSPA से बाहर रखा है उसमें ज्यादातर मैतेई-बाहुल इलाके हैं. इसके पीछे सरकार की क्या वजह है? ये इलाके हिंसा प्रभावित रहे हैं फिर इन क्षेत्रों को अफस्पा से बाहर क्यों रखा गया?

AFSPA एक ऐसा कानून है, जिसे ‘अशांत इलाकों’ यानी ‘डिस्टर्ब एरिया’ में लागू किया जाता है. अफस्पा से सुरक्षाबलों को असीमित अधिकार मिल जाते हैं. सुरक्षाबल बिना वारंट के किसी को भी गिरफ्तार कर सकते हैं, बल प्रयोग कर सकते हैं या फिर गोली तक मार सकते हैं. हालांकि, बल प्रयोग करने और गोली चलाने से पहले चेतावनी देनी जरूरी होती है.

मणिपुर में 170 से ज्यादा लोग इस जातीय हिंसा का शिकार हो चुके हैं. पांच महीने बाद भी मणिपुर शांत नहीं हो सका है. पीएम मोदी ने आश्वासन दिया था कि ‘निकट भविष्य में शांति बहाल होगी लेकिन भाषण के करीब दो महीने बाद भी हालात नहीं सुधरे हैं. ऐसे में मणिपुर ही नहीं पूरा देश पूछ रहा है कि कब होंगे सामान्य हालात…

(Image credit: PTI)

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