तिप्राहा इंडिजिनस पीपल्स रीजनल अलायंस (TIPRA) और त्रिपुरा पीपुल्स फ्रंट (TPF) के समर्थकों के बीच खुमुलवंग में गुरुवार को हुई झड़प में कई लोग घायल हो गए और वाहनों में तोड़फोड़ की गई. टीआईपीआरए के अध्यक्ष, राज्य के शाही वंशज प्रद्योत किशोर देबबर्मा ने स्वदेशी समुदाय के समूहों के शामिल होने की घटना पर अपनी पीड़ा और निराशा व्यक्त की.
त्रिपुरा ट्राइबल एरिया ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (TTAADC) के मुख्यालय खुमुलवंग में सुरक्षा प्लाटून को भारी संख्या में तैनात किया गया है. पिछले अप्रैल में हुए चुनावों में आश्चर्यजनक जीत के बाद टीआईपीआरए वर्तमान में टीटीएएडीसी का सत्तारूढ़ प्रशासन है.
जब झड़प हुई तब फायरब्रांड नेता पाताल कन्या जमातिया के नेतृत्व में टीपीएफ, खुमुलवंग के एक पंडाल में मानवाधिकारों पर एक सम्मेलन कर रही थी. टीआईपीआरए और टीपीएफ दोनों ने एक दूसरे पर हिंसा भड़काने का आरोप लगाया.
देबबर्मन दोनों पक्षों के संघर्षरत समर्थकों को शांत करने के लिए घटनास्थल पर पहुंचे. उन्होंने सुझाव दिया कि संघर्ष ‘अंततः बोरोक लोगों के हितों और अधिकारों को कमजोर करेगा’.
टीआईपीआरए के मुख्य प्रवक्ता एंटनी देबबर्मा ने आरोप लगाया कि यह घटना मौजूदा टीटीएएडीसी प्रशासन को परेशान करने और उनकी पार्टी के ‘ग्रेटर टिपरालैंड’ आंदोलन को विफल करने की एक चाल थी.
उन्होंने कहा कि टीपीएफ, एक बहुत छोटा संगठन है, जो निहित स्वार्थों के साथ मिलकर काम कर रहा है लेकिन लोगों का समर्थन हासिल करने में विफल रहेगा.
ग्रेटर टिपरालैंड की मांग
दरअसल इस महीने के शुरू में त्रिपुरा के करीब 1500 लोगों का एक जत्था त्रिपुरा के मूल निवासियों के लिए नए राज्य ग्रेटर टिपरालैंड की मांग को लेकर जंतर-मंतर पर तीन दिवसीय धरने के लिए दिल्ली में जुटा था.
नए राज्य के लिए इस आंदोलन का नेतृत्व तिप्राहा स्वदेशी प्रगतिशील क्षेत्रीय गठबंधन (TIPRA, जिसे तिपरा मोथा भी कहा जाता है) और स्वदेशी पीपुल्स फ्रंट ऑफ त्रिपुरा (IPFT) की तरफ से किया गया था.
जमीनी स्तर पर हर तरफ से घिरा त्रिपुरा उत्तर, दक्षिण और पश्चिम में बांग्लादेश के साथ सीमाएं साझा करता है. यह राज्य कई बार बंगालियों के विस्थापन का गवाह बना है, 1947 में विभाजन के बाद सबसे बड़ी संख्या में विस्थापन हुआ और फिर 1971 में पूर्वी पाकिस्तान के अलग होने और बांग्लादेश के गठन के समय. जिसकी वजह से ग्रेटर टिपरालैंड की मांग उठ रही है.
अलग टिपरालैंड की मांग सबसे पहले आईपीएफटी ने उठाई थी, जिसका गठन 2009 में आदिवासी विचारक एनसी देबबर्मा के नेतृत्व में हुआ था. इसके पीछे नजरिया टीटीएडीसी के तहत आने वाले क्षेत्रों को मिलाकर अलग राज्य बनाने का था.
हालांकि ग्रेटर टिपरालैंड की नई मांग में न सिर्फ टीटीएडीसी शासित क्षेत्रों, बल्कि आसपास के उन क्षेत्रों को भी शामिल किए जाने की बात कही जा रही है जहां त्रिपुरियों की अच्छी खासी आबादी है.
अलग राज्य के लिए आंदोलन पिछले कुछ वर्षों में रुक-रुक कर चलता रहा है, लेकिन प्रद्योत देबबर्मा- जो कुछ समय के लिए त्रिपुरा प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष भी रहे थे, की तरफ से फरवरी 2021 में एक राजनीतिक दल के तौर पर टीआईपीआरए या टिपरा मोथा (2019 में इसे एक सामाजिक संगठन के रूप में शुरू किया गया था) का गठन करने और ग्रेटर टिपरालैंड की वकालत किए जाने के बाद इस मांग ने एक बार फिर जोर पकड़ा.
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