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ज़मीन पर बैठकर पढ़ने को मजबूर आदिवासी बच्चे, मंत्री ने कहा सर्दियों में ऐसा होता है

तो शिक्षक पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे. लेकिन यह छात्र गरीब आदिवासी परिवारों से आते हैं, और उनमें से ज्यादातर के पास ठंड से बचने के लिए ज़रूरी गर्म कपड़े तक नहीं हैं.

गुजरात के आदिवासी-बहुल छोटा उदेपुर ज़िले में एक सरकारी प्राथमिक स्कूल के छात्र ठंड के मौसम में एक घर के आंगन में ज़मीन पर बैठकर कक्षाओं में भाग लेने को मजबूर हैं. इसके बारे में पूछे जाने पर गुजरात के शिक्षा मंत्री जीतू वघानी ने गुरुवार को जवाब दिया कि सर्दियों में बच्चों को जानबूझ कर बाहर बिठाया जाता है, और इसमें कोई ख़बर निकालने की कोशिश किसी को नहीं करनी चाहिए.  

मंत्री छोटा उदेपुर जिले के वागलवाड़ा के स्कूल की इमारत के पुनर्निर्माण में देरी पर उठाए जा रहे सवालों का जवाब दे रहे थे. स्कूल की इमारत 2020 के मॉनसून में ढह गई थी. अलग-अलग कक्षाओं के आदिवासी छात्र, जो दूरदराज़ के गांवों से आते हैं, अब ऑफलाइन कक्षाओं में भाग लेने के लिए स्कूल में मिड-डे मील बनाने वाले रसोइये के घर पर इकट्ठा होते हैं. 

उनका ब्लैकबोर्ड दो बांस की डंडियों पर ज़मीन पर टिका है, जिसपर लिखने के लिए टीचरों को भी बैठना पड़ता है. 

वडोदरा में ‘प्राकृतिक खेती’ पर प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के संबोधन के लिए एक कार्यक्रम में बोल रहे थे, जब उनसे स्कूल के बारे में पूछा गया. शिक्षा मंत्री ने कहा, “जहाँ भी जर्जर इमारतों की मरम्मत की ज़रूरत होती है, सरकार मरम्मत करती है. लेकिन कई बार, सर्दियों में बच्चों को स्कूलों में खुले में ही बिठाया जाता है. जब मैं एक छात्र था, तब मैं भी यही करता था. इसे अन्यथा लेने की कोई ज़रूरत नहीं है. यह मामला मेरे ध्यान में है.”

स्कूल के शिक्षकों ने कहा कि 2020 में मॉनसून के दौरान स्कूल की इमारत ढह गई थी. उस समय कोविड-19 लॉकडाउन के चलते स्कूल बंद थे. हालांकि सरकार ने इस साल अक्टूबर तक चरणों में स्कूलों को फिर से खोलने की घोषणा की, लेकिन छात्रों के पास जाने के लिए कोई स्कूल ही नहीं था. शिक्षकों ने तब रसोइये के घर से कक्षाएं संचालित करने का फ़ैसला कि, ताकि मिड-डे मील भी बच्चों को बिना किसी परेशानी के परोसा जा सके. 

इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक़ स्कूल के प्रिंसिपल मित्तल राठवा ने कहा, “पहले जर्जर इमारत की मरम्मत का अनुरोध पूर्व प्रिंसिपल ने जिला प्रशासन के समाने रखा था, लेकिन कुछ नहीं किया गया. अब इमारत ही नहीं बची है, तो शिक्षक पूरी कोशिश कर रहे हैं कि बच्चों की पढ़ाई जारी रहे. लेकिन यह छात्र गरीब आदिवासी परिवारों से आते हैं, और उनमें से ज्यादातर के पास ठंड से बचने के लिए ज़रूरी गर्म कपड़े तक नहीं हैं.”

बच्चों ने भी कहा कि वो स्कूल वापस आकर खुश तो हैं, लेकिन उनके पास गर्म रहने के लिए ऊनी कपड़े नहीं हैं. अब आप ही बताएं की शिक्षा मंत्री की दलीलों का क्या मतलब निकाला जाए. 

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