3 महीने से कर्नाटक राज्य के 46,700 हज़ार आदिवासी सरकार से आहार किट (food kit) मिलने का इंतज़ार कर रहे हैं. इसमें 1,025 आदिवासी बस्तिया भी शामिल हैं. मुश्किल ये है कि यहां के आदिवासी 1972 वन्य जीव संरक्षण अिधिनयम के तहत वनों में भी शिकार के लिए भी नहीं जा सकते हैं.
दरसल, यह आदिवासी समुदाय दैनिक वेतन के लिए हस्तशिल्प वस्तुओं जैसे बेंत की टोकरी (Cane Basket) का काम करते हैं. यह काम वह अधिकतम बरसाती मौसम में करते है और बरसाती मौसम में उन्हें काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता हैं.
आदिवासी समुदायों की पोषण की कमी और खाने की समस्यों को दूर करने के लिए सरकार ने 2008 में पोषण आहार किट(nutritional food kit) की शुरुआत कि थी.
इस योजना के तहत कांग्रेस सरकार ने किट की अवधी को 45 दिनों से घटाकर एक महीना कर दिया है. जिसमें की पहले केवल 2 आदिवासी समुदाय ही आते थे, जो जेनु कुरुबा और कोरागा समुदाय हैं.
लेकिन अब यह किट और 10 आदिवासी समुदाय को मिल रहा है जो कडु कुरुबा, इरावा, सोलिगा, कुड़िया, माले कुडिया, गौडालु और असरालु, सिद्दी इत्यादि हैं.
राज्य आदिवासी कल्याण विभाग के निदेशक बी कल्लेश ने कहा पहले यह आहार किट जिला-स्तरीय टेंडर से खरीदा जाता था पर अब राज्य स्तर पर खरीदा जाएगा.
इसके साथ-साथ उन्होंने यह भी कहा की टेंडर में बदलाव के कारण ही आहार किट प्रकिया में 3 महीनें का समय लग गया था और अब एक ओर महीना भी लग सकता हैं.
विभाग ने सरकार को 4 जी छूट(4G exemption)कराने के तहत कर्नाटक में सार्वजनिक खरीद अधिनियम, 1999 में कराने के लिए प्रस्ताव भी भेजा है ताकि आहार किट को टेंडर के बिना दिया जा सके. इसके साथ-साथ हम राज्य-स्तरीय एजेंसियों जैसे केंद्रीय भंडार और जनता बाज़ार से आहार किट खरीदने की योजना बना रहे हैं. अधिकारियों का कहना है कि उन्होंने सरकार से अनुमति मांगी है कि जब तक नए टेंडर नहीं होते हैं तब तक पुराने टेंडर से ही खरीदारी कर ली जाये.
मैसूरु जिले के एचडी कोटे तहसील में मूलेवूर आदिवासी बस्ती से एक ग्राम पंचायत सदस्य जया ने कहा की उन्हें आखरी आहार किट फरवरी 2022 में मिला था.
उन्होंने यह भी कहा कि जंगल से स्थानांतरित से आए हुए कई आदिवासी परिवारों को अभी भी खेती के लिए भूमि अधिकार नहीं मिला है और हमें दैनिक मज़दूरी भी नहीं मिल रही है तो पोषण आहार अनाज खरीदने के लिए पैसे कहा से लाए?
एचडी कोटे में पास के वड्डारा गुड़ी आदिवासी बस्ती में तालुक के बड़े क्षेत्र बहुउद्देश्यीय (LAMP) सोसायटी के अध्यक्ष पुट्टा सिद्दैया ने कहा की कई आदिवासी लोगों के पास अन्न भाग्य योजना के तहत चावल या गृह लेने के लिए राशन कार्ड नहीं हैं और ना ही गॄह लक्ष्मी योजना के तहत 2,000 रुपये ले सकते हैं. इसके साथ- साथ उन्होंने यह भी कहा कि आहार किट सबको सामान्य मिलता है जिसके कारण ज्यादा सदस्यों वाले परिवारों को आहार किट पूरा नहीं पड़ पाता.
कर्नाटक में कुल 14 आदिवासी समुदाय रहते हैं. जिसमें से 2 आदिवासी समुदाय असुरक्षित जनजातीय समूह (PVTGs) हैं. जिन्हें हम विशेष रूप से पिछड़ी जनजाती भी कहते हैं. राज्य में आदिवासियों की कुल जनसंखया 42,48,987 हैं.