HomeAdivasi Dailyबेदखल आदिवासी परिवारों ने 10 साल बाद मांगा मुआवजा

बेदखल आदिवासी परिवारों ने 10 साल बाद मांगा मुआवजा

आदिवासी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, वे वन क्षेत्र के अंदर बोगापुरा के पास अपने मंदिर में देवता की पूजा करने के बहाने वन क्षेत्र में प्रवेश करते थे. दस साल पहले आदिवासियों को जंगल के अंदर बोगापुरा हादी से शेट्टीहल्ली पुनर्वास केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया था.

कर्नाटक के मैसूर जिले के लगभग 40 आदिवासी परिवार जिन्हें 10 साल पहले केंद्र की विशेष पुनर्वास योजना के तहत बेदखल किया गया था, अब वन विभाग के अधिकारियों और आदिवासी कल्याण विभागों के अधिकारियों को मुश्किल में डालते हुए अपने गांव लौट आए हैं.

उन्होंने उचित मुआवजे की मांग को लेकर टाइगर रिजर्व के कोर जोन में भी विरोध प्रदर्शन किया. लगभग दस दिनों के बाद अधिकारियों ने आख़िर में आदिवासी को उनकी शिकायतों को दूर करने का आश्वासन देते हुए मंगलवार को उनके पुनर्वास केंद्र में लौटने के लिए मनाने में कामयाबी हासिल की.

जेनु कुरुबा जनजाति से संबंधित 43 परिवार जिन्हें शेट्टीहल्ली में पुनर्वासित किया गया था, करीब 10 दिन पहले नागरहोल टाइगर रिजर्व में प्रवेश किया.

आदिवासी विभाग के अधिकारियों के मुताबिक, वे वन क्षेत्र के अंदर बोगापुरा के पास अपने मंदिर में देवता की पूजा करने के बहाने वन क्षेत्र में प्रवेश करते थे. दस साल पहले आदिवासियों को जंगल के अंदर बोगापुरा हादी से शेट्टीहल्ली पुनर्वास केंद्र में स्थानांतरित कर दिया गया था.

जब वे वापस नहीं लौटे तो वनकर्मियों ने उनकी तलाश शुरू की और उन्हें जंगल के अंदर डेरा डाले हुए और मुआवजे की मांग को लेकर विरोध प्रदर्शन करते हुए पाया. जब वनकर्मियों ने उन्हें समझाने की कोशिश की तो आदिवासियों ने उचित मुआवजा दिए बिना जंगल से बाहर निकालने पर आत्महत्या करने की धमकी दी.

जैसे ही आदिवासियों का टाइगर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र के अंदर विरोध प्रदर्शन का वीडियो क्लिप सोशल मीडिया में वायरल हुआ, वनवासी, जो उन्हें समझाने में विफल रहे वो प्रदर्शनकारियों को जंगली जानवरों के हमलों से बचाने के लिए उन्हें इलाके में डेरा डालने के लिए मजबूर होना पड़ा.

आदिवासी अधिकार कार्यकर्ता प्रसन्ना ने टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया कि आदिवासियों को एक दशक से भी अधिक समय पहले वन क्षेत्र से बाहर कर दिया गया था.

उन्होंने कहा, “सरकार ने अभी तक उन्हें पुनर्वास प्रदान नहीं किया है. उन्हें न तो खेती के लिए जमीन दी गई है और न ही पुनर्वास पैकेज के तहत आर्थिक मदद दी गई है. वन और राजस्व विभाग एक दूसरे पर लापरवाही का आरोप लगाते हैं. इसने आदिवासियों को अपने अधिकारों की मांग को लेकर विरोध करने के लिए मजबूर किया है.”

जिला आदिवासी विकास अधिकारी प्रभा उर्स, जो समाज कल्याण विभाग की प्रमुख भी हैं, ने टाइम्स ऑफ इंडिया को पुष्टि की कि आदिवासियों ने मुआवजे की मांग को लेकर रिजर्व के मुख्य क्षेत्र में विरोध प्रदर्शन किया.

उन्होंने कहा, “मैसूर डीसी ने 18 साल की उम्र पूरी कर चुके आदिवासियों को मुआवजा देने के लिए तीन महीने पहले मंजूरी दी थी. इस मामले पर मुख्य वन संरक्षक की अध्यक्षता में हुई बैठक में चर्चा होनी थी. हालांकि बैठक से पहले आदिवासियों ने विरोध शुरू कर दिया.”  

प्रभा उर्स, जिन्होंने दो दिन पहले प्रदर्शनकारी आदिवासियों से मुलाकात की थी, ने कहा कि कुछ आदिवासी उन्हें दी गई कृषि भूमि से नाखुश हैं.

उन्होंने कहा कि वे कहते हैं कि भूमि कृषि के लिए अच्छी नहीं है. कुछ ने शिकायत की कि पुनर्वास केंद्रों में उन्हें स्वास्थ्य समस्याएं हो रही हैं जबकि कुछ को कृषि भूमि में घर बनाने के लिए नकदी की जरूरत है. हम उन्हें धरना समाप्त करने के लिए मनाने में सफल रहे और मंगलवार को वे अपने पुनर्वास केंद्र लौट आए.

(तस्वीर प्रतिकात्मक है)

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