राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग (National Commission For Scheduled Tribes) ने एक आदिवासी व्यक्ति की हत्या के मामले में राजस्थान पुलिस से रिपोर्ट तलब की है. इस आदिवासी व्यक्ति की हत्या में पुलिस ने अभी तक क्या एक्शन लिया है इस बात की जानकारी आयोग ने माँगी है.
6 नवंबर 2022 को एक आदिवासी व्यक्ति को ट्यूबवेल से पानी भरने की वजह से कुछ लोगों ने पीट पीट कर मार डाला था. यह घटना राजस्थान के जोधपुर ज़िले के सूरसागर की है.
इस लड़के के परिवार ने पुलिस को बताया कि इस आदिवासी व्यक्ति को पानी भरने पर बुरी तरह से पीटा गया. इसके बाद जब परिवार इस घायल आदमी को अस्पताल ले जा रहा था तो उसे रोक दिया गया.
इस सिलसिले में शकील, बाबू और नासिर को पुलिस ने गिरफ़्तार किया है. जिस आदिवासी की हत्या की गई उसका नाम किशनलाल भील बताया गया है.
राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग ने संविधान की धारा 338A के तहत राज्य के पुलिस महानिदेशक और जोधपुर के पुलिस कमिश्नर से इस मामले में रिपोर्ट देने को कहा है.
आयोग ने पुलिस महानिदेशक और ज़िला कमिश्नर को चेतावनी दी है कि अगर तीन दिन के भीतर आयोग को पुलिस की रिपोर्ट नहीं मिलती है तो फिर आयोग अपनी अन्य शक्तियों का प्रयोग कर सकता है.
इसके तहत राज्य के पुलिस महानिदेशक और जिला पुलिस कमिश्नर को आयोग के सामने पेश होने का आदेश दिया जा सकता है.
संविधान की धारा 338A में राष्ट्रीय जनजाति आयोग को एक सिविल कोर्ट की शक्तियाँ प्रदान हैं. इसके तहत आयोग किसी भी व्यक्ति या अधिकारी को अपने सामने पेश होने को कह सकता है.
राजस्थान के इस मामले में 23 नवंबर को राष्ट्रीय जनजाति आयोग से शिकायत की गई थी. आयोग ने लगभग
डेढ़ महीने बाद इस मामले में राज्य को नोटिस जारी किया है.
राष्ट्रीय जनजाति आयोग की स्थापना देश का एक उद्देश्य यह भी था कि आदिवासियों के ख़िलाफ़ होने वाले भेदभाव के मामलों में समुदाय के लोगों को इंसाफ़ मिल सके.
इसके अलावा आयोग से यह उम्मीद भी की जाती है कि वह आदिवासी विकास के लिए बनने वाली योजनाओं के लागू किये जाने पर भी नज़र रखे.
आयोग की यह ज़िम्मेदारी है कि देश में आदिवासी विकास की योजनाओं के प्रभाव का मूल्यांकन करे. इसके अलाव देश में आदिवासियों की स्थिति पर राष्ट्रीय जनजाति आयोग को वार्षिक रिपोर्ट देनी होती है.
इसके अलावा भी राष्ट्रीय जनजाति आयोग को आदिवासियों से जुड़ी व्यापक ज़िम्मेदारियाँ दी गई हैं. लेकिन अफ़सोस की बात है कि यह संवैधानिक संस्था अपनी ज़िम्मेदारी को पूरी तरह से निभाती नहीं है.
इसका एक कारण तो आयोग के पास संसाधनों का अभाव है. लेकिन बड़ा कारण है कि आयोग सरकार को सलाह देने या उसके काम का मूल्यांकन करने की बजाए सरकार को खुश करने में ज़्यादा ज़ोर लगाता है.