HomeAdivasi Dailyओडिशा सरकार की आदिवासी छात्राओं के खिलाफ यौन अपराधों पर जीरो टॉलरेंस...

ओडिशा सरकार की आदिवासी छात्राओं के खिलाफ यौन अपराधों पर जीरो टॉलरेंस की नीति

राज्य में 6,000 छात्रावासों में 520,000 हजार छात्र छात्राएं रहते हैं. सरकार के आंकड़ों के अनुसार इनमें से 58% छात्राएं हैं. इन स्कूलों में आदिवासी लड़कियों के गर्भवति होने की कई घटनाएं मिली हैं. इस सिलसिले में स्कूलों के हेटमास्टरों को छात्राओं के नियमित स्वास्थ्य परीक्षण की हिदायत दी गई थी.

ओडिशा सरकार के एसटी और एससी विकास, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग ने गुरुवार को आवासीय आदिवासी लड़कियों के स्कूल और छात्रावासों में कार्यरत स्टाफ़ को चेतावनी जारी की है.

इस चेतावनी में शिक्षण और गैर-शिक्षण कर्मचारियों को कहा गया है कि अगर उन्हें किसी भी प्रकार के यौन दुर्व्यवहार का दोषी पाये जाने पर सेवा से बर्खास्त कर दिया जाएगा.

एक प्रेस विज्ञप्ति में विभाग ने कहा कि उसने लड़कियों के खिलाफ किसी भी प्रकार के यौन अपराध के लिए “जीरो टॉलरेंस नीति” लेकर आए है. राज्य में आवासीय विद्यालयों का प्रबंधन एससी और एसटी विकास (एसएसडी) विभाग द्वारा किया जाता है.

इस प्रेस विज्ञप्ति में यह भी लिखा गया है कि यौन अपराध से जुड़े मामले की नीति के उल्लंघन को तुरंत और सबसे कड़े तरीके से निपटा जाएगा.

इसके साथ ही किसी भी छात्र के खिलाफ किसी भी प्रकार का यौन अपराध होने पर उस मामले को ओसीएस (सीसी एंड ए) नियम 1962 के तहत एक बड़ा अपराध माना जाएगा और सेवा से बर्खास्तगी के लिए उत्तरदायी होगा.

एसटी और एससी विभाग के अनुसार पिछले पांच सालों में राज्य के विभिन्न छात्रावासों में रहने वाली कम से कम 22 लड़कियों को यौन उत्पीड़न का सामना करना पड़ा है.

राज्य सरकार ने लड़कियों के छात्रावासों में लेडी मैट्रॉन (वार्डन) के 3,000 पद सृजित किए हैं. सरकार का कहना है कि इस कदम से स्कूलों के हॉस्टल में सुरक्षित माहौल तैयार होगा और साथ ही आदिवासी परिवारों में अपनी लड़कियों की सुरक्षा के प्रति विश्वास भी पैदा होगा.

सरकार ने कहा है कि शैक्षणिक संस्थानों के आसपास एक सुरक्षित महौल बनाने का प्रयास किया जा रहा हैं.

इसके साथ ही छात्रों को “गुड टच और बैड टच” को पहचानने के लिए पर्याप्त और आयु-उपयुक्त जानकारी प्रदान की जाती है और उन्हें उनके प्रति किए गए किसी भी अवांछित प्रगति के बारे में किसी भी डर की रिपोर्ट करने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है.

राज्य में 6,000 छात्रावासों में रहने वाले 520,000 हजार बोर्डर्स में से 58% छात्राएं हैं. पिछले कुछ सालों में ऐसे स्कूलों से गर्भधारण की घटनाएं सामने आने के बाद राज्य सरकार ने हेडमास्टरों को नियमित स्वास्थ्य जांच करने का निर्देश दिया था.

इसके अलावा विभाव ने बताया कि आवासीय विद्यालयों में सभी छात्रों के लिए बुखार, मलेरिया, दस्त, चिकन पॉक्स और तीव्र श्वसन संक्रमण के अलावा किशोर प्रजनन और यौन स्वास्थ्य मुद्दों के लिए स्वास्थ्य जांच किया जाता है.

एसएसडी स्कूलों और छात्रावासों में छात्रों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एसओपी यानी विस्तृत दिशानिर्देश और मानक संचालन प्रक्रिया (SOP- Detailed guidelines and Standard Operating Procedures) भी जारी कराया गया हैं.

इसके साथ ही प्रेस विज्ञप्ति में लिखा गया है कि ये दिशानिर्देश आचरण संहिता और कर्मचारियों के कर्तव्यों, छात्रावासों में अपनाए जाने वाले पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों, स्कूलों और छात्रावास परिसर में बोर्डर्स और आगंतुकों की आवाजाही की रिकॉर्डिंग आदि को निर्दिष्ट करते हैं.

इससे पहले एसटी और एससी विकास, अल्पसंख्यक और पिछड़ा वर्ग कल्याण राज्य मंत्री, जगन्नाथ सारका ने सितंबर 2023 में राज्य विधानसभा के पटल पर आदिवासी हॉस्टलों में लड़कियों के यौन-शोषण के कुछ आंकड़े रखे थे.

एक सवाल का जवाब देते हुए उन्होंने कहा था कि पिछले पांच वर्षों में विशेष रूप से आदिवासी लड़कियों के लिए बनाए गए 188 आवासीय उच्च विद्यालयों में यौन उत्पीड़न का सामना करने वाली लड़कियों के 22 मामले थे. जिनमें 34 लोगों को आरोपी के रूप में नामित किया गया था. इनमें से 12 छात्राओं ने शिशुओं को जन्म दिया था. इन स्कूलों में 62,385 लड़कियां पढ़ती हैं.

अगर विभाग के अंतर्गत कार्यरत सभी 1,737 स्कूलों को ध्यान में रखा जाए तो संकट बहुत बड़ा हो सकता है.

सरकारी रिकॉर्ड के अनुसार इन स्कूलों में 4 लाख 26 हज़ार 903 छात्र पढ़ते हैं, जिनमें ज्यादातर आदिवासी हैं. सूचना के अधिकार अधिनियम के तहत प्राप्त जवाब के हवाले से एक न्यूज रिपोर्ट के मुताबिक, 2010 और 2015 के बीच इन 1,737 स्कूलों से यौन शोषण के 16 मामले सामने आए.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments