HomeAdivasi Dailyओडिशा: जिला में टॉप करने वाली लड़की पढ़ाई के लिए मज़दूरी करती है

ओडिशा: जिला में टॉप करने वाली लड़की पढ़ाई के लिए मज़दूरी करती है

सरकारी उच्च माध्यमिक विद्याल से पढ़ाई कर बारहवीं में जिला में टॉप करने का सफर कर्मा के लिए आसान नहीं रहा है. कोरोना काल में दो सालों के लिए स्कूल और कॉलेज बंद होने के चलते मुदुली को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था.

पिछले साल ओडिशा के मल्कानगिरी जिले के बोंडा जनजाति की कर्मा मुदुली 12वीं कक्षा में कॉमर्स स्ट्रीम से 82.66 प्रतिशत अंक हासिल कर जिला टॉपर स्थान हासिल करने के लिए सुर्खियों में रही थी. इस साल वह एक बार फिर सुर्खियों में हैं लेकिन इस बार वजह कुछ और है.

इन दिनों कर्मा चिलचिलाती धूप में एक दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रही हैं ताकि अपनी आगे की पढ़ाई का खर्चा उठा सके. क्योंकि उसके माता-पिता शिक्षा का खर्च उठाने में असमर्थ हैं. कर्मा की मां और पिता भी दिहाड़ी मजदूर हैं. उसके माता-पिता को मिलने वाली एकमात्र सरकारी सहायता अल्प वृद्धावस्था पेंशन है.

मजबूत इच्छाशक्ति और आत्म-प्रेरणा से भरी कर्मा को दिहाड़ी मजदूरी करने में शर्म नहीं आती है. बल्कि उसके चेहरे पर गर्व का भाव है क्योंकि वह जानती है कि सिविल सेवा परीक्षा को पास करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का कोई शॉर्टकट नहीं है.

कर्मा ने कहा, “मेरा 12वीं का रिजल्ट आने के बाद मायरा चैरिटेबल ट्रस्ट मेरे सपने को साकार करने में मेरी मदद करने के लिए आगे आया. उन्होंने मुझे भुवनेश्वर में रमा देवी यूनिवर्सिटी में एडमिशन दिलाया. लेकिन मुझे मेरी शिक्षा का खर्च उठाना मुश्किल लगा क्योंकि मेरा परिवार बहुत गरीब है. मेरे पास कोई दूसरा विकल्प नहीं बचा है इसलिए मैं दिहाड़ी मजदूर के रूप में काम कर रही हूं. मुझे पता है कि पैसे के बिना मैं अपना सपना पूरा नहीं कर सकती हूं.”

जब उनसे पूछा गया कि उन्होंने विश्वविद्यालय में एक साल कैसे बिताया? तो उन्होंने कहा, “यूनिवर्सिटी में अमीर लड़कियां हैं. उन्हें देखकर मैं अक्सर सोचती थी कि उनका जैसा लाइफस्टाइल अपनाया जाए. मैं वही खाऊंगी जो वो खा रहे हैं और मैं वही पहनूंगी जो उन्होंने पहना है. लेकिन फिर हकीकत ने मेरी आंखें खोल दी.”

कर्मा ने आगे कहा, “क्योंकि मैं बहुत सारी कॉपी नहीं खरीद सकती थी इसलिए मैं पेंसिल से लिखती थी, उस लिखे हुए को मिटा देती थी और उन पर फिर से लिखती थी.”

यह पूछे जाने पर कि क्या वह अपने सपने को पूरा कर पाएंगी, उन्होंने कहा, “जहां चाह है, वहां राह है. अगर मैं कोशिश करूं तो मैं सब कुछ संभव कर सकती हूं. आने वाले दिनों में मैं निश्चित रूप से सिविल सेवा परीक्षा को क्रैक करने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करुंगी.”

सरकारी उच्च माध्यमिक विद्याल से पढ़ाई कर बारहवीं में जिला में टॉप करने का सफर कर्मा के लिए आसान नहीं रहा है. कोरोना काल में दो सालों के लिए स्कूल और कॉलेज बंद होने के चलते मुदुली को कई परेशानियों का सामना करना पड़ा था. कोरोना काल में स्कूल में ऑनलाइन पढ़ाई हो रही थी लेकिन कर्मा के गांव में नेटवर्क की समस्या आम बात थी. साथ ही उसके पास मोबाइल नहीं होने के चलते ऑनलाइन क्लास करनी संभव नहीं था.

दोस्तो से मोबाइल लेकर पढ़ने के लिए और नेटवर्क की तलाश में उसे रोजाना 2 से 3 किलोमीटर चलना पड़ता था. इसके बाद वो घर आकर उसे पढ़ा करती थी. इस मेहनत के दम पर ही कर्मा बारहवीं में जिला टॉपर बन सकी.

दरअसल, ओडिशा का मलकानगिरी जिला एक नक्सली प्रभावित क्षेत्र रहा है. यहां कि पहाड़ियों पर बोंडा समुदाय के लोग कई दशकों से रह रहे हैं.

इस समुदाय का एक बड़ा हिस्सा अब पहाड़ों से उतर कर नीचे मैदानी इलाकों में आ गया है. उनका यह हिस्सा अब कमोबेश मुख्यधारा में शामिल हो चुका है.

लेकिन अभी भी इस समुदाय को कई तरह के भेदभाव का सामना करना पड़ता है.

पहाड़ी बोंडाओं के पास जीवन जीने की पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं हैं और शिक्षा का बेहद अभाव है. उन्हें शिक्षा, स्वास्थ्य सेवाओं, बिजली आदि के लिए मीलों चलना पड़ता है.

सरकार ने इन्हें पीवीटीजी यानि विशेष रूप से पिछड़ी जनजाति के तौर पर वर्गीकृत किया है.

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