दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी इलाकों में ज़िला प्रशासन वैक्सीन की हिचकिचाहट और कोविड-19 से जुड़े मिथकों को दूर करने के लिए स्थानीय वागड़ी भाषा में मीम्स, पोस्टर और गीतों का सहारा ले रहा है.
बांसवाड़ा और डूंगरपुर के अधिकारियों के मुताबिक़ आदिवासियों को कोविड-19 और उसके वैक्सीन के बारे में बताना ज़रूरी है, क्योंकि एक मिथक फैल रहा था कि शहरों और गांवों में अलग-अलग टीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.
डूंगरपुर के ज़िला कलेक्टर सुरेश कुमार ने मीडिया को बताया कि प्रशासन ने वागड़ी रचनाकारों और YouTubers को कोविड-19 की जानकारी फैलाने के लिए रोपित किया है. एक लाख दर्शकों वाले क्रिएटर्स से संपर्क किया गया, और अब उनके वीडियो गांव-गांव में भेजे जा रहे हैं.
स्थानीय बूथ स्तर के अधिकारियों (BLO), ब्लॉक डेवलपमेंट अधिकारियों (BDO) और सरपंचों ने वागड़ी में बने इन संदेशों को आगे आदिवासियों को फ़ॉरवर्ड किया.
इस प्रयास का फ़ायदा भी नज़र आ रहा है. अब तक ऑनलाइन मैसेजिंग के माध्यम से बुज़ुर्ग नागरिकों के एक बड़े प्रतिशत को टीका लगाया जा चुका है.
“काका जाजू, काकी जाजू, वैक्सिनेशन करवा आवजू” (काका और काकी कृपया टीकाकरण के लिए आएं) जैसे संदेश वायरल हो रहे हैं.
वागड़ी या वाघरी भाषा दक्षिणी राजस्थान के कई आदिवासी बहुल गांवों में बोली जाती है.
बांसवाड़ा के ज़िला कलेक्टर अंकित कुमार सिंह ने एक अखबार को बताया कि उनके सोशल मीडिया ग्रुप में 2 लाख लोग हैं. प्रशासन ने स्थानीय नेताओं और सरपंचों को पहले वैक्सीन लगवाया, और उनकी तस्वीरें ग्रुप पर भेजीं. इन तस्वीरों को देखकर कई लोग आगे आए.
दरअसल, आदिवासी गांवों में यह भ्रम फैल रहा है कि टीकाकरण से नपुंसकता हो सकती है. सोशल मीडिया के ज़रिये इसी तरह के मिथकों को दूर करने की कोशिश हो रही है.